त्रिभंगी छंद संजय कौशिक 'विज्ञात'
आइये आज समझते हैं त्रिभंगी छंद का शिल्प विधान। त्रिभंगी छंद के प्रति चरण में ३२ मात्राओं का विधान है, और इसके प्रति चरण में प्रथम यति और द्वितीय यति में तुक समान रखे जाते हैं। कहीं-कहीं तृतीय और चतुर्थ यति का तुक भी देखने मे आता है पर यह अनिवार्य नहीं है। प्रत्येक चरण में अन्तिम वर्ण गुरु होता है।
32 मात्राओं को 10-8-8-6 यति होती है कहीं-कहीं अंतिम 2 यति 8-6 = 14 को बिना यति के भी लिखा जाता है। अतः अंतिम दो यति अनिवार्य नहीं मानी जाती है। पद के प्रथम दो चरणों यानि 10 मात्राओं के अन्तिम वर्ण और 8 मात्राओं के अन्तिम वर्ण में भी तुक बनता है। इस कारण इस छंद के त्रिभंगी होने की पुष्टि कही गई है। शास्त्रज्ञों द्वारा 10-8-14 यति का क्रम स्वीकारा जा चुका है। जगण प्रयोग से लय बाधित अवश्य होती है वो भले ही वाचिक जगण हो । संक्षेप में समझें त्रिभंगी की संरचना
इसमे 32-32 मात्राओं के चार चरण होते हैं।
चार चरण तुकांत समनान्त के साथ प्रथम एवं द्वितीय यति प्रति पंक्ति तुकांत होती है 👈
चरणान्त में एक गुरु आवश्यक है लेकिन दो गुरु हों तो सौन्दर्य और बढ़ जाता है। एक संकेत अनुकरणीय रहेगा कि प्रत्येक चरण के पहले शब्द को 2 गुरु या 11 वाचिक गुरु से प्रारम्भ करें। प्रारंभ 12 वर्जित रखें
त्रिभंगी छंद (आधारित) गीत
सर्वोच्च तिरंगा
संजय कौशिक 'विज्ञात'
सर्वोच्च तिरंगा, मन में गंगा, सैनिक हरदम, ये सोचे।
जब शेर दहाड़े, शत्रु पछाड़े, महाकाल बन, फिर नोचे॥
1
यह देख हिमालय, पूर्ण शिवालय, पूजन करते, मतवाले।
दहके हिय लावा, दृश्य डरावा, पुत्र निडर ये, डर टाले॥
ये उत्तम रक्षक, घाती भक्षक, सह जाते हैं, सब छाले॥
ये सौम्य स्वभावी, उग्र प्रभावी, शस्त्र प्रहारी, बिन भाले॥
सब बातें नैतिक, करते सैनिक, क्षण में गर्दन, जो मोचे ....
सर्वोच्च तिरंगा, मन में गंगा, सैनिक हरदम, ये सोचे।
2
निर्मम विध्वंसक, निर्दय व्यंंसक, थर-थर काँपे, सब डरते।
देते हुंकारे, छिपते सारे, रिपु मौतें सौ, सौ मरते॥
योद्धा हैं ऐसे, उपमा जैसे, देख रणी को, कवि करते।
जुगनू तारे सब, हैं दिखते कब, सूर्योदय पर, सब झरते॥
ये वीर सिपाही, अच्छे राही, राह चलें जब, अरि लोचे.....
सर्वोच्च तिरंगा, मन में गंगा, सैनिक हरदम, ये सोचे।
3
हिमखण्डों आगे, रातों जागे, पहरा देते, ये प्रहरी।
जब आग लगाये, बैंड बजाये, इनकी धुन पर, धुन बहरी॥
चिंतित है सागर, कैसे नागर, आन पधारे, ये लहरी।
ये देश समर्पित, सेवा चर्चित, बोल रहे हैं, सब शहरी॥
ये लोकाचारी, यूँ बीमारी, नित्य हरेंगे, सब दोचे .....
सर्वोच्च तिरंगा, मन में गंगा, सैनिक हरदम, ये सोचे।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
त्रिभंगी छंद के विषय में सुंदर जानकारी के लिए आभार 🙏🙏🙏 रचना बहुत ही शानदार है ....लाजवाब 👌👌👌 आपके कथन से पूर्ण सहमत की सिर्फ 2 पर्व नही प्रत्येक दिन भारत माता का गुणगान होना चाहिए🙏🙏🙏 ईश्वर का आभार जो इन पावन धरती पर जन्म दिया 🙏🙏🙏
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर आदरणीय आपका सानिध्य पाकर तो हम अपने आपको अति सौभाग्यशाली समझते हैं.... नमन आपके उच्चतम कोटि असाधारण व्यक्तित्व व आपकी निरत शिल्प सौंदर्य भाव लिखने वाली लेखनी को सादर नमन...🙏🙏🌷
ReplyDeleteबहुत खूब जय हिन्द
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना, वीररस से सराबोर ।नमन है आपकी लेखनी को।
ReplyDeleteबहुत सुंदर गीत व छंदबंध ।
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई डॉ साहब बहुत बधाई
सर्वोच्च तिरंगा, मन में गंगा, सैनिक हरदम, ये सोचे।यह भाव हर भारतीय के मन में होना चाहिए। देशभक्ति दिखाने के लिए कोई दिन नहीं होता। अद्भुत छंद लेखन, बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना
ReplyDeleteमहेन्द्र देवांगन माटी
त्रिभंगी छंद वाह बहुत सुन्दर जानकारी
ReplyDeleteबहुत खूब विज्ञात जी , मां शारदा का वरद हस्त बना रहे
ReplyDeleteवाह वाह बहुत सुंदर गीत जो देश की सरहद पर खड़े सैनिकों को समर्पित है
ReplyDeleteBehtareen shilp baddh rachna
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ReplyDeleteबहुत खूब आद.। जोशीला गीत। वाह वाह
ReplyDeleteबहुत सुंदर छंद विधान। राष्ट्रीय भावना से प्रेरित। हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteत्रिभंगी छन्द की उत्तम जानकारी ,देशप्रेम की वंदना सुंदर शब्द भंडार से करने के लिए साधुवाद आ0
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर छंद और देश भक्ति के भावों से ओत-प्रोत शानदार सृजन।सच ही तो है! क्या देश-भक्ति सिर्फ़ दो दिन का ही आडंबर मात्र है....विचारणीय ......
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteवाह बहुत सुन्दर रचना के साथ साथ त्रिभंगी छंद की विधिवत जानकारी, बहुत सही.
ReplyDeleteलता सिन्हा ज्योतिर्मय
एक सैनिक के मन को पढ़ने की कोशिश ,बेहतरीन निभाया त्रिभंगी को ।बधाई इस सृजन हेतु ।😊💐💐
ReplyDeleteएक सैनिक के मन को पढ़ने की कोशिश ,बेहतरीन निभाया त्रिभंगी को ।बधाई इस सृजन हेतु ।😊💐💐
ReplyDeleteअद्वितीय सृजन आ.सर जी शुभकामनाएं 🙏🙏
ReplyDeleteत्रिभंगी छंद पर वीर रस का ओजमयी सृजन,
ReplyDeleteछंद के बारे में विस्तृत जानकारी।
भाव प्रधान रचना।
त्रिभंगी छंद पर सजता वीर रस की रचना बहुत खूब बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआत्मविभोर है उत्तम प्रर्दशन
ReplyDeleteआपकी लेखनी ,आपका शब्द चयन और चिंतन बहुत उच्च स्तर का है ।.जय हिंद ..कौशिक जी
ReplyDeleteअतिउत्तम, प्रशंसनीय, निर्दोष रचना
ReplyDeleteहार्दिक बधाई ।
बहुत सुंदर भाव नई विधा की जानकारी के साथ...
ReplyDeleteअति सुंदर छन्द और रचना
ReplyDeleteविषय के साथ पूरा न्याय करते हुए सृजन शिल्प की शुचिता पर भी सजग कलम।
ReplyDeleteवीर रस का दमदार गीत।
त्रिभंगी छंद के विषय में बहुत ही सुंदर विस्तृत जानकारी
ReplyDeleteआप की सोच और आपकी लेखनी को नमन गुरु देव