नवगीत: संजय कौशिक 'विज्ञात'
मुखड़ा/पूरक पंक्ति - 14/14
अंतरा - 14/14
व्यंजना बिखरी पड़ी हैं,
स्वर रहित ये गीत, कैसा ?
टूटती सरगम मधुर जब,
साँस को बिन ताल देखा।
आ रहा है याद फिर से,
वो लड़क पन ख्याल देखा।
आज टूटी खाट में वो,
ये समय का हाल देखा।
टूटता संगीत देखा,
सोचता ये मीत, कैसा ?
व्यंजना बिखरी पड़ी हैं,
स्वर रहित ये गीत, कैसा ?
बिक चुका था पुष्प महँगा,
टूट कर निज डाल से भी।
जो महकता था हवा सा,
बेखबर था चाल से भी।
आज मुरझाया विमुख है,
थे परागी लाल से भी।
सोचता सब वे कहाँ पर,
रंग निखरा पीत, कैसा ?
व्यंजना बिखरी पड़ी हैं,
स्वर रहित ये गीत, कैसा ?
वो भ्रमित गुंजित भ्रमर था,
गूंज कलियों ने सुनी थी।
बाग मोहित हो चुका था,
धुन अलग इसकी धुनी थी।
बांसुरी का स्वर बना वो,
जो कन्हैया ने चुनी थी।
बंद आँखें श्वास टूटी,
सोच कौशिक नीत, कैसा ?
व्यंजना बिखरी पड़ी हैं,
स्वर रहित ये गीत, कैसा ?
संजय कौशिक 'विज्ञात'
@vigyatkikalam
बहुत सुंदर भावपूर्ण नवगीत...बार बार पढ़ने का मन करे ऐसी सुंदर अभिव्यक्ति ...मन में उठते प्रश्नों को खूबसूरत शब्दों से सजाया है...बहुत बहुत बधाई आदरणीय शानदार सृजन की 💐💐💐💐
ReplyDeleteनीतू जी आत्मीय आभार
Deleteबार बार पढ़ने का मन कह मन प्रफुल्लित हुआ सृजन साकार, पुनः आभार
बहुत सुंदर नवगीत बधाइयाँ। संजय कौशिक सर।
ReplyDeleteआभार आपका
Deleteअत्युत्तम भावाभियक्ति 👌👌👌
ReplyDeleteआत्मीय आभार
Deleteअति उत्तम भावपूर्ण गीत
ReplyDeleteभाव आप तक पहुँचे आपका आत्मीय आभार अनिता सुधीर जी
Deleteनिशब्द 🙏🙏
ReplyDeleteआभार
Deleteबहुत सुन्दर सर जी
ReplyDeleteबोधन जी आप तो अपने प्रान्त के प्रसिद्ध गीतकार हैं, आपसे प्रशंसा पाकर सृजन सफल हुआ
Deleteआत्मीय आभार आपका
उत्कृष्ट सृजन आपकी लेखनी को नमन आदरणीय ।
ReplyDeleteडॉ. मीता अग्रवाल जी आत्मीय आभार
Deleteअनुपम रचना... वाह...
ReplyDeleteआत्मीय आभार
Deleteबेहतरीन नवगीत आ.सर जी🙏🏻
ReplyDeleteआत्मीय आभार सविता जी
Deleteवाह वाह क्या कहने बहुत ही सुन्दर रचना आदरणीय
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका
Deleteबहुत बढ़िया गीत आदरणीय
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका
Deleteवाह!
ReplyDeleteआपकी एक वाह से ही व्यंजना का सृजन सफल हुआ विश्वमोहन जी आत्मीय आभार
Deleteबहुत ही सुन्दर भावपूर्ण नवगीत
ReplyDeleteआत्मीय आभार
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (07-01-2020) को "साथी कभी साथ ना छूटे" (चर्चा अंक-3573) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी अपना स्नेह बनाये रखिये, आत्मीय आभार , चर्चा के लिए रचना के चयन की सूचना के लिए पुनः आत्मीय आभार
Deleteबहुत सुन्दर नवगीत । एक एक शब्द भाव बिखेरते हुए से । लयबद्ध पंक्तियाँ इस नवगीत की जान है । बधाई सुन्दर सृजन के लिए ।
ReplyDeleteआत्मीय आभार
Deleteबहुत सुन्दर गीत
ReplyDeleteजब एक बड़ा गीतकार ऐसा कहे तो मन प्रफ्फुलित होता है
Deleteआत्मीय आभार
वाह...
ReplyDeleteअति सुंदर गीत...🙏
आत्मीय आभार
Deleteगज्जज्जज्जज्जजब का सृजन बधाई हो
ReplyDeleteसब आपका ही आशीष है अग्रजा बहन जी
Deleteबहुत सुंदर सृजन...आदरणीय कौशिक जी बधाई हो।
ReplyDeleteआत्मीय आभार
Deleteशानदार भावगीत आदरणीय
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका
Deleteअद्भुत नवगीत वाहः मन आनन्दित हो गया
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका तेज जी
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