नवगीत
होश नहीं खोता
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मापनी 16/16
बीज रोप दे बंजर में कुछ,
यूँ कोई होश नहीं खोता।
फिर यूँ सपना हो कब पूरा,
यदि घोड़े बेच यहाँ सोता॥
1
चीर मिनारी दीवारों को,
हुआ अंकुरित है पौधा जब।
खड़ा हुआ ये देखो तरुवर,
जिसने चीरा पर्वत को अब।
साहस विरला जन कर पाता,
वह साहस की उपमा होता।
बीज रोप दे बंजर में कुछ,
यूँ कोई होश नहीं खोता।
2
बढ़ता मानव सम्बल पाकर,
और लता का ये ज्ञान सुनो।
कली खिली ये महकी बगिया,
भँवरे का गुंजन गान सुनो।
मधुमक्खी का श्रम दिखता है,
मघु सागर में लगता गोता।
बीज रोप दे बंजर में कुछ,
यूँ कोई होश नहीं खोता।
3
स्वयं नियोजित करने हैं सब,
अपने पथ धरती सब अम्बर।
क्षमता के अनुरूप उड़ें सब,
जाते हैं फिर देख समंदर।
नकल करे तो फँसे पिंजरे,
ये देखो आप भले तोता।
बीज रोप दे बंजर में कुछ,
यूँ कोई होश नहीं खोता।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
@vigyatkikalam
बहुत सुंदर कविता
ReplyDeleteआत्मीय आभार बीनू जी
Deleteअद्भुत
ReplyDeleteवाहः वाहः वाहः वाहः
आत्मीय आभार तेज सहाब
Deleteस्वयं नियोजित करने हैं सब,
ReplyDeleteअपने पथ धरती सब अम्बर।
क्षमता के अनुरूप उड़ें सब,
जाते हैं फिर देख समंदर।
बहुत सुन्दर गीत
आत्मीय आभार चमेली जी
Deleteबहुत सुन्दर गीत सर जी
ReplyDeleteआत्मीय आभार बोधन जी
Deleteअद्भुत सूंदर भावाभिव्यक्ति। उत्तम शब्द चयन आदरणीय
ReplyDeleteआत्मीय आभार
Deleteसार्थक सृजन !
ReplyDeleteसक्रियता , मेहनत और निश्चय के बल कर ही व्यक्ति ,समाज ,देश और विश्व का कल्याण संभव है ।
सुंदर भाव लिए सुंदर रचना ।
आत्मीय आभार कुसुम जी
Deleteसादर नमन 🙏🙏🙏 बहुत ही सुंदर,सार्थक और प्रेरणादायक सृजन 👌👌👌 सत्य कहा कि परिश्रम कभी विफल नही होता बल्कि सपने उन्ही के साकार होते है जो सही दिशा में सार्थक प्रयास करते है....बहुत ही शानदार सृजन 👏👏👏 बधाई आदरणीय लाजवाब सृजन की 💐💐💐
ReplyDeleteआत्मीय आभार विदुषी जी
Deleteबेहतरीन, अनुपम नवगीत 🙏🏻
ReplyDeleteआ.सर जी शुभकामनाएं 🙏
आत्मीय आभार सविता जी
Deleteबहुत सुन्दर गीत । लाजवाब सृजन आदरणीय । बधाई आपको
ReplyDeleteआत्मीय आभार अनिता जी
Deleteसार्थक सृजन आ0
ReplyDeleteआत्मीय आभार अनिता जी
Deleteलाजवाब नवगीत👌👌👌👌👏👏👏👏👏👏सच कहा आपने श्रम से ही सब कुछ संभव है।
ReplyDeleteआत्मीय आभार अनुपमा जी
Deleteलाजवाब सृजन आदरणीय
ReplyDeleteआत्मीय आभार राधा जी
Deleteबहुत सुंदर नवगीत आपका आदरणीय लाजवाब सृजन
ReplyDeleteआत्मीय आभार पूनम जी
Deleteबहुत मनमोहक गीत
ReplyDeleteआत्मीय आभार अतिया जी
Deleteअन्न प्रसविनी वसुधा में परिश्रम ही सफलता की कुंजी है। उन्नत भाव युक्त रचना के लिए विज्ञात जी!सादर बधाई!!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteख़ूब
ReplyDeleteस्वयं नियोजित करने है सब....सही👌
ReplyDeleteउत्कृष्ट लेखन ,बधाई
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