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Sunday, February 23, 2020

नवगीत होश नहीं खोता संजय कौशिक 'विज्ञात'





नवगीत 
होश नहीं खोता 
संजय कौशिक 'विज्ञात' 

मापनी 16/16 

बीज रोप दे बंजर में कुछ,
यूँ कोई होश नहीं खोता।
फिर यूँ सपना हो कब पूरा,
यदि घोड़े बेच यहाँ सोता॥

1
चीर मिनारी दीवारों को,
हुआ अंकुरित है पौधा जब।
खड़ा हुआ ये देखो तरुवर,
जिसने चीरा पर्वत को अब। 

साहस विरला जन कर पाता, 
वह साहस की उपमा होता।
बीज रोप दे बंजर में कुछ,
यूँ कोई होश नहीं खोता।

2
बढ़ता मानव सम्बल पाकर, 
और लता का ये ज्ञान सुनो। 
कली खिली ये महकी बगिया, 
भँवरे का गुंजन गान सुनो। 

मधुमक्खी का श्रम दिखता है,
मघु सागर में लगता गोता।
बीज रोप दे बंजर में कुछ,
यूँ कोई होश नहीं खोता।

3
स्वयं नियोजित करने हैं सब, 
अपने पथ धरती सब अम्बर।
क्षमता के अनुरूप उड़ें सब, 
जाते हैं फिर देख समंदर।

नकल करे तो फँसे पिंजरे,
ये देखो आप भले तोता।
बीज रोप दे बंजर में कुछ,
यूँ कोई होश नहीं खोता।

संजय कौशिक 'विज्ञात' 
@vigyatkikalam

33 comments:

  1. बहुत सुंदर कविता

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  2. अद्भुत
    वाहः वाहः वाहः वाहः

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  3. स्वयं नियोजित करने हैं सब,
    अपने पथ धरती सब अम्बर।
    क्षमता के अनुरूप उड़ें सब,
    जाते हैं फिर देख समंदर।
    बहुत सुन्दर गीत

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  4. बहुत सुन्दर गीत सर जी

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  5. अद्भुत सूंदर भावाभिव्यक्ति। उत्तम शब्द चयन आदरणीय

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  6. सार्थक सृजन !
    सक्रियता , मेहनत और निश्चय के बल कर ही व्यक्ति ,समाज ,देश और विश्व का कल्याण संभव है ।
    सुंदर भाव लिए सुंदर रचना ।

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  7. सादर नमन 🙏🙏🙏 बहुत ही सुंदर,सार्थक और प्रेरणादायक सृजन 👌👌👌 सत्य कहा कि परिश्रम कभी विफल नही होता बल्कि सपने उन्ही के साकार होते है जो सही दिशा में सार्थक प्रयास करते है....बहुत ही शानदार सृजन 👏👏👏 बधाई आदरणीय लाजवाब सृजन की 💐💐💐

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  8. बेहतरीन, अनुपम नवगीत 🙏🏻
    आ.सर जी शुभकामनाएं 🙏

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  9. बहुत सुन्दर गीत । लाजवाब सृजन आदरणीय । बधाई आपको

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  10. सार्थक सृजन आ0

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  11. लाजवाब नवगीत👌👌👌👌👏👏👏👏👏👏सच कहा आपने श्रम से ही सब कुछ संभव है।

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  12. लाजवाब सृजन आदरणीय

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  13. बहुत सुंदर नवगीत आपका आदरणीय लाजवाब सृजन

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  14. बहुत मनमोहक गीत

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  15. अन्न प्रसविनी वसुधा में परिश्रम ही सफलता की कुंजी है। उन्नत भाव युक्त रचना के लिए विज्ञात जी!सादर बधाई!!!

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  16. स्वयं नियोजित करने है सब....सही👌

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  17. उत्कृष्ट लेखन ,बधाई

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