कुण्डलिनी छंद
संजय कौशिक 'विज्ञात'
यह छंद एक दोहा और अर्ध रोला के संयोग से निर्मित होता है। अर्थात 4 पंक्तियों में इस छंद को लिखा जाता है। मात्रा भार इसमें प्रथम 2 पंक्ति में 13,11 यति के साथ फिर अग्रिम 2 पंक्तियों 11,13 यति के साथ लिखा जाता है। दोहे का अंतिम चरण तीसरी पंक्ति में पुनः दोहराया जाना अनिवार्य होता है। साथ ही इस बात का भी विशेष ध्यान रखना होता है कि जिस शब्द से शुरू किया है उसी शब्द से अंत करना भी अनिवार्य होता है।साथ एक बात और ध्यान रहे कि इसके तुकांत क्रमागत 2 , 2 पंक्ति के समतुकांत रहेंगे।
ध्यान रहे यह कुण्डलियाँ नहीं है। आप कुण्डलियाँ के शिल्प के लिए मेरी पहले की पोस्ट देख सकते हैं ।
कुंडलिनी
दोहा + अर्ध रोला
ध्यान रहे इस छंद को मापनी से नहीं लिखा जाता पर व्यवस्थित कलन लय के अवरोध समाप्त करने में सफल सिद्ध होते हैं
22 22 212, 22 22 21
22 22 212, 22 22 21
22 22 21, 12/21 2 22 22
22 22 21, 12/21 2 22 22
आइये इसे उदाहरण से देखते और समझते हैं ....
कुंडलिनी
संजय कौशिक 'विज्ञात'
सावन भादों में पड़े, रिमझिम नित्य फुहार।
गौरी गीतों में करे, अपनी विरह पुकार॥
अपनी विरह पुकार, मिले साजन मन भावन।
बाहर बरसे बून्द, आग भीतर दे सावन॥
भारत में अभियान नित, चला रहे हैं लोग।
सीख सिखाते योग हैं, यही मिटाये रोग॥
यही मिटाये रोग, सभी को प्राप्त महारत।
सब हों लोग निरोग, तभी चमकेगा भारत॥
टूटी खटिया में पड़े, चारों वर्ण उदास।
बिन पाए की खाट ये, केवल मेरे पास॥
केवल मेरे पास, कहें सब ऐसी बूटी।
तोड़े को दे जोड़, जुड़ी फिर दिखती टूटी॥
खूंटी के जो लाभ हैं, समझें कब परिवार।
कितना भी सामान हो, टांगो वो तैयार॥
टांगो वो तैयार, नहीं टपके ज्यूँ टूंटी।
ले लेती सब भार, हमारे घर में खूंटी॥
चोटी भी गुणवान है, देती ये संदेश।
तीन लटा में गूंथ दो, अपना ये परिवेश॥
अपना ये परिवेश, सभ्यता संस्कृति घोटी।
मानव के आदर्श, दिखाती है ये चोटी॥
संजय कौशिक 'विज्ञात'
कुण्डलिनी छंद की सुंदर जानकारी के साथ लाजवाब उदाहरण भी 👌👌👌 सभी एक से बढ़कर एक 👏👏👏 सादर नमन 🙏🙏🙏
ReplyDeleteअत्यंत प्रभाशाली
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत।
ReplyDeleteबहुत सुंदर 👏👏👏👏👏👏👍👍👏👏एक से बढ़कर एक
ReplyDeleteआशा शुक्ला🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
वाह बेहतरीन प्रस्तुति, बढ़िया जानकारी
ReplyDeleteवाह बहुत खूब, विशिष्ट की विशेषता बतलाती पंक्तियाँ वाकई विशेष
ReplyDeleteलता सिन्हा ज्योतिर्मय
बहुत खूब सर जी
ReplyDeleteवाह वाह जी खूब
ReplyDeleteवाह वाह
ReplyDeleteविभिन्न प्रसंग पर बोधगम्य कुंडलिनी।सराहनीय।
ReplyDeleteशानदार रचना आदरणीय
ReplyDeleteहूं बहुत ही सुन्दर आदरणीय आपकी कुंडलियां छंद और लय बद्द भी बहुत ही सुन्दर प्रभावशाली
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर आदरणीय कुंडलियां छंद और लय बद्द भी जानकारी के साथ साथ प्रभावशाली भी बहुत बढ़िया
ReplyDeleteजी बहुत सुन्दर छन्द आ.
ReplyDeleteजी बहुत सुन्दर छन्द आ.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कुंडलियां छंद आदरणीय ।उत्तम जानकारी ,सुन्दर प्रस्तुति 👌👌👌
ReplyDeleteबेहतरीन कुंडलियां छंद
ReplyDeleteआ.सरजी शुभकामनाएं 🙏
ज्ञानवर्धक लेख
ReplyDeleteवाह वाह बहुत खूब संदेश देती सृजन
ReplyDeleteबढ़िया रचना
ReplyDeleteवाह बहुत सुन्दर विधान सहित रचना । सीखने में भी सभी के लिए मददगार साबित हो रही है ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर कुंडलिनी छंदों की रचना।
ReplyDeleteबहुत सुंदर जानकारी सर।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 19 फरवरी 2020 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब।
बहुत बढ़िया रचना सर जी
ReplyDeleteअद्भुत! विस्तृत जानकारी के साथ सुंदर शिल्प सृजन ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर जानकारी साझा की आपने आदरणीय 👏👏👏👏और हर कुंडलिनी एक से बढ़कर एक👌👌👌👌👌
ReplyDeleteसुंदर सृजन
ReplyDeleteवाहः
ReplyDeleteआज कुंडली को कुछ-कुछ समझा
ReplyDeleteउत्कृष्ट सृजन
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कुंडलिया छंद
ReplyDeleteगौरी शब्द को गोरी से बदलने पर विचार करें।