copyright

Wednesday, February 5, 2020

नवगीत: ◆ भूचालों की बुनियादों पर ◆ *संजय कौशिक 'विज्ञात'*


नवगीत: ◆ भूचालों की बुनियादों पर ◆ 
*संजय कौशिक 'विज्ञात'*

मुखड़ा/पूरक पंक्ति~16/10
अंतरा~16/16

भूचालों की बुनियादों पर,
है सपनों का घर।

छली जा रही छोड़ आरजू,
मलहम जैसी अपनेपन की।
दृश्य झलक दर्पण प्रतिबिंबित,
अवलम्बित दर्शित उस छन की।
हार गया रण मन-कौशल का,
चतुर चपल नियमन ही वन की।
चंदन की परिमल से तुलसी,
महक उठी पावनता छनकी।

मन की रार रही फिर तत्पर,
जिनसे लगता डर।
भूचालों की बुनियादों पर,
है सपनों का घर।

2  
अल्पित कल्पित दीवारों की,
मर्यादा ने कब-कब रोका।
स्वाति-डगर ज्यों सीप ताकती,
रसभीनी वर्षा का मौका।
यूँ अवसर मिलते ही लगता,
देख समय के छक्का-चौका।
सागर की लहरों पर तैरे,
पार लगे मझधारी नौका।

भौंक रहे हैं श्वान गली में,
अक्सर इधर-उधर।
भूचालों की बुनियादों पर,
है सपनों का घर।

3
जलती लौ पर मिटा पतंगा,
ये जुगनू बनता कब तारा।
भ्रमित देश के वासी हैं सब,
योग रोग केवल ये सारा।
मूल्यवान माँ की ममता का,
समझे कितने एक इशारा।
ढूँढ़ धरोहर ऐसी सारी,
जिनसे होता सदा गुजारा।

अंतस्-पीर अग्नि में जलकर,
रोज रही है मर।
भूचालों की बुनियादों पर,
है सपनों का घर।

लाभ-हानि,जय और पराजय,
सुख-दुख-झंझावात खड़े ज्यों।
सरल समझ लो इतना जीवन,
रुई जुलाहे कात खड़े ज्यों।
साथी हैं सब अपने मानो,
कृष्ण-पक्ष की रात खड़े ज्यों।
कौन यहाँ पर है इक ऐसा,
संगी बन बिन बात खड़े ज्यों।

मायावी का रूप बनाकर,
छलिया खड़े निडर।
भूचालों की बुनियादों पर,
है सपनों का घर।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

@vigyatkikalam

38 comments:

  1. बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना 👌👌👌 जीवन की हकीकत बखूबी उतारी है रचना में ...स्वार्थ में डूबे रिश्ते हों या भ्रमित लोग 👌👌👌

    भूचालों की बुनियादों पर
    है सपनों का घर

    बहुत बहुत बधाई इस शानदार रचना की 💐💐💐💐

    ReplyDelete
    Replies
    1. This comment has been removed by the author.

      Delete
    2. मेरे रचनाघर में आपका हार्दिक स्वागत
      https://drramkumarramarya.blogspot.com/2020/01/blog-post.html?m=1

      Delete
    3. आत्मीय आभार विदुषी जी

      Delete
  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 11 जनवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
    Replies
    1. मेरे रचना घर में आपका हार्दिक स्वागत
      https://drramkumarramarya.blogspot.com/2020/01/blog-post.html?m=1

      Delete
    2. आत्मीय आभार यशोधरा जी

      Delete
  3. सार्थक एवं पठनीय उत्तम रचना!

    ReplyDelete
    Replies
    1. मेरे रचनाघर में आपका हार्दिक स्वागत
      https://drramkumarramarya.blogspot.com/2020/01/blog-post.html?m=1

      Delete
  4. बहुत सुंदर ...मगर मुझे नहीं आता छंद में लिखना

    ReplyDelete
  5. बहुत सुंदर

    ReplyDelete
  6. बहुत सुंदर

    ReplyDelete
  7. उत्कृष्ट ,आप की रचना पढ़ नवगीत सीखने का प्रयास कर रहे आ0

    ReplyDelete
    Replies
    1. आत्मीय आभार आपका
      आपकी सशक्त कलम किसी भी विधा को लिख सकती है
      स्वागत है आपका, सादर नमन

      Delete
  8. अति सुन्दर सर जी

    ReplyDelete
  9. बहुत ही जबरदस्त आदरणीय आपकी रचना बहुत उत्कृष्ट शब्द बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
  10. बेहतरीन भावों से सजा यथार्थ परक आलंकारिक
    नवगीत👌👌👌

    ReplyDelete
    Replies
    1. आत्मीय आभार आपका अभिलाषा जी
      सादर नमन

      Delete
  11. बहुत सुंदर नवगीत आदरणीय

    ReplyDelete
    Replies
    1. आत्मीय आभार आपका अनुराधा जी

      Delete
  12. बहुत ही लाजवाब नवगीत
    वाह!!!

    ReplyDelete
  13. बहुत सुंदर आपकी यह रचना भूचालो की इस ......... बहुत सुंदर

    ReplyDelete