नवगीत: ◆ भूचालों की बुनियादों पर ◆
*संजय कौशिक 'विज्ञात'*
मुखड़ा/पूरक पंक्ति~16/10
अंतरा~16/16
भूचालों की बुनियादों पर,
है सपनों का घर।
1
छली जा रही छोड़ आरजू,
मलहम जैसी अपनेपन की।
दृश्य झलक दर्पण प्रतिबिंबित,
अवलम्बित दर्शित उस छन की।
हार गया रण मन-कौशल का,
चतुर चपल नियमन ही वन की।
चंदन की परिमल से तुलसी,
महक उठी पावनता छनकी।
मन की रार रही फिर तत्पर,
जिनसे लगता डर।
भूचालों की बुनियादों पर,
है सपनों का घर।
2
अल्पित कल्पित दीवारों की,
मर्यादा ने कब-कब रोका।
स्वाति-डगर ज्यों सीप ताकती,
रसभीनी वर्षा का मौका।
यूँ अवसर मिलते ही लगता,
देख समय के छक्का-चौका।
सागर की लहरों पर तैरे,
पार लगे मझधारी नौका।
भौंक रहे हैं श्वान गली में,
अक्सर इधर-उधर।
भूचालों की बुनियादों पर,
है सपनों का घर।
3
जलती लौ पर मिटा पतंगा,
ये जुगनू बनता कब तारा।
भ्रमित देश के वासी हैं सब,
योग रोग केवल ये सारा।
मूल्यवान माँ की ममता का,
समझे कितने एक इशारा।
ढूँढ़ धरोहर ऐसी सारी,
जिनसे होता सदा गुजारा।
अंतस्-पीर अग्नि में जलकर,
रोज रही है मर।
भूचालों की बुनियादों पर,
है सपनों का घर।
4
लाभ-हानि,जय और पराजय,
सुख-दुख-झंझावात खड़े ज्यों।
सरल समझ लो इतना जीवन,
रुई जुलाहे कात खड़े ज्यों।
साथी हैं सब अपने मानो,
कृष्ण-पक्ष की रात खड़े ज्यों।
कौन यहाँ पर है इक ऐसा,
संगी बन बिन बात खड़े ज्यों।
मायावी का रूप बनाकर,
छलिया खड़े निडर।
भूचालों की बुनियादों पर,
है सपनों का घर।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
@vigyatkikalam
बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना 👌👌👌 जीवन की हकीकत बखूबी उतारी है रचना में ...स्वार्थ में डूबे रिश्ते हों या भ्रमित लोग 👌👌👌
ReplyDeleteभूचालों की बुनियादों पर
है सपनों का घर
बहुत बहुत बधाई इस शानदार रचना की 💐💐💐💐
This comment has been removed by the author.
Deleteमेरे रचनाघर में आपका हार्दिक स्वागत
Deletehttps://drramkumarramarya.blogspot.com/2020/01/blog-post.html?m=1
आत्मीय आभार विदुषी जी
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 11 जनवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteमेरे रचना घर में आपका हार्दिक स्वागत
Deletehttps://drramkumarramarya.blogspot.com/2020/01/blog-post.html?m=1
आत्मीय आभार यशोधरा जी
Deleteसार्थक एवं पठनीय उत्तम रचना!
ReplyDeleteमेरे रचनाघर में आपका हार्दिक स्वागत
Deletehttps://drramkumarramarya.blogspot.com/2020/01/blog-post.html?m=1
बहुत सुंदर ...मगर मुझे नहीं आता छंद में लिखना
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteउत्कृष्ट ,आप की रचना पढ़ नवगीत सीखने का प्रयास कर रहे आ0
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका
Deleteआपकी सशक्त कलम किसी भी विधा को लिख सकती है
स्वागत है आपका, सादर नमन
Bahut khub
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका
Deleteअति सुन्दर सर जी
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका बोधन जी
DeleteBahut Khub sanjay kaushik ji
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका
DeleteVery nice ������
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका बीनू जी
DeleteVery nice 👌👌
ReplyDeleteबहुत ही जबरदस्त आदरणीय आपकी रचना बहुत उत्कृष्ट शब्द बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका
Deleteबेहतरीन भावों से सजा यथार्थ परक आलंकारिक
ReplyDeleteनवगीत👌👌👌
आत्मीय आभार आपका अभिलाषा जी
Deleteसादर नमन
बहुत सुंदर नवगीत आदरणीय
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका अनुराधा जी
Deleteबहुत ही लाजवाब नवगीत
ReplyDeleteवाह!!!
आत्मीय आभार आपका सुधा जी
Deleteवाह वाह बहुत खूब बधाई हो
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका
DeleteBahut sundar
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका
Deleteबहुत सुंदर आपकी यह रचना भूचालो की इस ......... बहुत सुंदर
ReplyDelete