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Saturday, February 29, 2020

नवगीत समर्पण संजय कौशिक 'विज्ञात'




नवगीत 
समर्पण 
संजय कौशिक 'विज्ञात' 

मापनी ~~ 14/14 

फिर समर्पण के बिना भी, 
प्रीत पूरी कौन कहता।
देख कलियों में भ्रमर के, 
गान गुंजन स्नेह महता।

1
प्रीत का यह रूप पावन,
जो बहुत ऊँचा बताया।
कृष्ण धारे मुरलिया को, 
भाव राधा ने दिखाया।
फिर छिटक नभ से धरा पर, 
लहलहाई चांदनी जब
चातकी कुछ बोलती है, 
चांद देखो मौन रहता।

स्वाति की अनुपम कथा सुन, 
सीप में मोती चमकता।
बादलों से प्रीत निभती, 
मूसलाधारी बरसता।
नेह गरजे मोर नाचे, 
इंद्रधनुषी बन निखरता।
सीख लेता सागरों से,
धड़कनों के साथ बहता।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

8 comments:

  1. प्रतीकों के माध्यम से समर्पण के भाव को शब्दों में बहुत सुंदर तरीके से पिरोया है। सुंदर,सटीक,लाजवाब सृजन 👏👏👏 सादर नमन 🙏🙏🙏

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  2. लाजवाब सृजन आदरणीय 👏👏👏👏👌👌👌👌

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  3. नेह गरजे मोर नाचे,
    इंद्रधनुषी बन निखरता।
    वाह वाह बहुत खूब बेहतरीन सृजन आदरणीय

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  4. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (02-03-2020) को 'सजा कैसा बाज़ार है?' (चर्चाअंक-3628) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    *****
    रवीन्द्र सिंह यादव

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  5. बहुत सुन्दर

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  6. वाह!!!
    अद्भुत ...लाजवाब ।

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  7. बहुत ही लाजवाब

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