गीतिका छंद (वर्णिक)
संजय कौशिक 'विज्ञात'
विधान: गीतिका वार्णिक छंद को गण और मापनी के माध्यम से देखते हैं .....
{सगण जगण जगण भगण रगण सगण+लघु गुरु}
{112 121 121 211 212 112 12}
20वर्ण, 10-10 वर्णों पर यति,
4 चरण, दो-दो चरण समतुकांत लेने हैं
अब हो गई अति देखिये,
नित पाप हों कलिकाल में।
जकड़े विकार विनाश के
सब रो रहे इस हाल में॥
यह क्रोध अग्नि जला रही ,
करते नहीं जन प्यार क्यों ?
सब ढोंग को पहचानते ,
पर कौनसा उपकार क्यों ?
परदा पड़ा यह मोह का ,
अपने सगे सब दूर हैं।
दृग बंद वो करके चलें
यह रोग भी भरपूर हैं॥
धनवान हों सब चाहते ,
नर लालची बन घूमते।
हक मारते निज भ्रात का ,
बरबाद वो कर झूमते॥
अपने अहम् मद में घिरे ,
सबको झुका कर यूँ चलें।
यह तर्क संगत है नहीं ,
फिरभी सभी कब हैं टलें॥
कहते पुराण व वेद जो ,
घटना घटे दिन रात वो।
कलिकाल पंचपदी चढ़ा ,
सिर नृत्य तांडव घात वो॥
इसका प्रभाव घटा सके ,
रट नाम केवल राम का।
पढ़ प्रेम "मानस" में लिखा
यह सार "कौशिक" काम का॥
संजय कौशिक 'विज्ञात'
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (12-02-2020) को "भारत में जनतन्त्र" (चर्चा अंक -3609) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'