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Friday, December 23, 2022

गीत : युग वंदन श्री राम को : संजय कौशिक 'विज्ञात'


गीत
युग वंदन श्री राम को
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मापनी - 16/13

कष्ट निकंदन खलदल गंजन 
रघु नंदन श्री राम को।
कोटि कोटि यूँ नमन करे नित 
युग वंदन श्री राम को।।

भक्ति करें उर बोल-बोल के
राम नाम ही सार है।
भाव बूंद दृग द्रवित अगर हो
बने यही आधार है।
कर्म जड़ित हरसी पर घिसके 
दे चंदन श्री राम को।।

श्रेष्ठ तपस्या योग साधना 
नीलकंठ भी धारते।
पद्माकर का चक्र बताता
अजपाजप उच्चारते।
राम-नाम से अनहद महके
दे गंधन श्री राम को।।

अष्ट खण्ड यूँ दसों दिशा के
स्वामी वे हर लोक के।
उनका जम्बू द्वीप निरन्तर 
तर्क प्रमाणित ठोक के।
नित्य सनातन विश्व मानता
हिय बंधन श्री राम को।।

©संजय कौशिक 'विज्ञात'

Tuesday, December 13, 2022

आदियोगी : संजय कौशिक 'विज्ञात' : मापनी ~21/21



आदियोगी
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मापनी ~21/21

सौर मण्डल में चमकते सूर्य अगणित
उष्ण ऊर्जा दह रहे हैं आदि योगी।
चन्द्र सा शीतल किया अम्बर धरा को
धार बन कर बह रहे हैं आदि योगी।।

ज्ञान के विज्ञान का दे रूप अनुपम।
तेज उज्जवलमय तथा उत्तम निरुपम।।
अनुकरण कर सुषम्ना का श्रेष्ठ अद्भुत।
योगियों का है सनातन योग अच्युत।।
नाद अनहद ॐ बन अन्तस् समाये।
वाद्य सुर बन कह रहे हैं आदि योगी।।

केंद्र आज्ञा चक्र स्थावर और जंगम।
मौन पद्मासन हुए योगी विहंगम।।
सप्त तन के भेद करते से प्रमाणित।
एक आत्मा ही रहे कहते सदा नित।।
सृष्टि के इस कष्ट का हर काल कहता।
नित हृदय में रह रहे हैं आदि योगी।।

भाव व्याख्या सूक्ष्म विस्तृत के विचारक।
शब्द संज्ञा व्याकरण के एक कारक।।
गूढ़ से हर वेद शास्त्रों के प्रणेता।
बन विषय नित इंद्रियों को हर्ष देता।।
पंच तत्वों का स्वयं ये सार बोले।
दाह विष की सह रहे हैं आदि योगी।।

नित महामुद्रा महाबंधी हठीले।
खेचरी मुद्रा महावेधी सजीले।।
यूँ सदा हठ योगियों का योग ख़िलता।
ध्यान के अंतःकरण में नेह मिलता।।
खिलखिलाकर चित्त हँसते की तरंगें।
बोल उठती यह रहे हैं आदियोगी।।

©संजय कौशिक 'विज्ञात'


Thursday, December 8, 2022

नवगीत ; विरहन ; संजय कौशिक 'विज्ञात'

नवगीत
विरहन
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मुखडा - 14/9
अन्तरा - 14/14

यामिनी को मौन कुछ यूँ 
कर गई विरहन।
एक बाती सी बुझी जब
मर गई विरहन।।

उस तिमिर की आस झूठी 
सो गए खद्योत सारे
बादलों की आड़ लेकर
ओट में बैठे सितारे
मौन अवगुंठन दहकता 
भर गई विरहन।।

व्याप्त चहुँदिश सनसनाहट
वेदना की तान लहरें
वो मल्हारी नेत्र बरसे
शुष्क थी पर कोर नहरें 
पतझड़ी बहकर बयारी 
झर गई विरहन।।

द्वैत की जलती कथा का 
सार विरही उर तड़पता
आहटों का शोर गूँजे 
शांति को जो नित हड़पता
घूम कर पगडंडियों पर 
घर गई विरहन।।

©संजय कौशिक 'विज्ञात' 


Friday, November 25, 2022

मेंहदी-महावर संजय कौशिक 'विज्ञात'


कविता / गीत
मेंहदी-महावर
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मापनी ~ 16/16

मेंहदी रचाती जब सजनी
देख महावर करे प्रतीक्षा
राग विराग हृदय की तड़पन
करे परीक्षण दृष्टि तिरीक्षा।।

बिंदी की आभा विचलनमय
अंगारों सी जगी तितिक्षा 
फेरों की वे स्मृतियाँ उलझी
विस्मृति पाकर बहकी इक्षा
विरहन जैसी ज्वाला दहकी
विरह मिलन की करे समीक्षा 

करुण व्यथित सा नेत्र द्रवित कर
आहत उर की भूला रक्षा
कंगन की खनखन सूनी सी
सूनी पगडंडी ने भक्षा
व्याकुल अंतः करण प्रताड़ित 
हिय स्पंदन जब चली परीक्षा।।

नील कुरिंजी पुष्प सुगंधित 
देता सा गजरे को शिक्षा 
काल कुसुम स्थिर उर का खिलना
हर्षित क्षण की भूले भिक्षा
ठहर देखती व्याप्त वेदना
चंद्र-चकोरी प्राप्त निरीक्षा।।


©संजय कौशिक 'विज्ञात'

Sunday, September 18, 2022

गीत : हिन्दी को सम्मान मिला : संजय कौशिक 'विज्ञात'


गीत 
हिन्दी को सम्मान मिला
संजय कौशिक 'विज्ञात'

देवनागरी की स्तुति करके
हिन्दी को वरदान मिला
संस्कृत का कुल उत्तम वर्णित
हिन्दी को सम्मान मिला।।

स्वर व्यंजन का मेल मिला तब
शब्दों ने ली अँगड़ाई
बना व्याकरण मात्रा खिलती
भावों की यह चतुराई
मुकुट चंद्र बिंदी का धरके
वर्णों को अभिमान मिला।।

करे हलन्त वर्ण को आधा
शब्दों में उत्साह भरे
कर पग वंदन बैठ साथ में
कुछ के सिर पर राज करे
व्यर्थ नहीं है आधा भी कुछ 
उसको गौरव गान मिला।।

अनुस्वार का मार्ग नासिका
लघु भी गुरु हो जाते हैं 
यही श्वास मुख मण्डल विचरे
पृथक वर्ग कहलाते हैं
तीन मिलेंगे अंत खड़े जो 
उनको कुछ व्यवधान मिला।।

गुण विसर्ग का अनुस्वार सा
लघु गुरु हों नित संगत से
नहीं किसी को छोटा समझो
ज्ञान वर्ण दे इस रंगत से
वैज्ञानिक भी शोध करें अब 
उत्तम ये विज्ञान मिला।।

कण्ठ तालु मूर्द्धा उच्चारण 
दन्त ओष्ठ का बोल कहा
कण्ठतालु कण्ठोष्ठय फिर यूँ
दन्तोष्ठ्य भी खोल कहा
मुख मण्डल से वर्ण निकलते
योग्य इन्हें ये स्थान मिला।।

©संजय कौशिक 'विज्ञात'

Sunday, August 28, 2022

नवधा भक्ति के प्रकार, रूप, एवं उदाहरण : संजय कौशिक 'विज्ञात'


नवधा भक्ति के प्रकार, रूप, एवं उदाहरण

गत कई दिनों से पूछा जा रहा था नवधा भक्ति का क्या अर्थ है इसके रूप कैसे हैं और इनको करने वाले भक्तों के नाम आदि भी जिज्ञासा प्रकट रूप से मेरे समक्ष आई थी तो आज मैं नवधा भक्ति के साथ उपस्थित हुआ हूँ।
वैसे तो नवधा भक्ति को हम इस श्लोक के माध्यम से समझ सकते हैं। कुछ सरलता के उद्देश्य से मैंने कुछ दोहे कहे हैं देखिये और समझिए ये प्रयास सरलता से कहाँ तक स्पष्ट हो सका ..... 
श्लोक :-
श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्।
अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥

दोहे :-

भक्ति मार्ग प्रत्यक्ष कब, कहते इसे परोक्ष।
ध्यान धरे साधक अगर, भक्ति भुक्ति दे मोक्ष।।

करता नवधा भक्ति जो, पा लेता है लक्ष्य।
लख चौरासी योनियाँ, तत्क्षण होती भक्ष्य।।

श्रवण भेद नवधा प्रथम, कथा भक्त की प्यास।
श्रवण परीक्षित ने किया, पूर्ण हुई फिर आस।।

कीर्तन भेद द्वितीय है, इसमें स्तुति का गान।
नाम सुना शुकदेव जी, कीर्तन की पहचान।।

रखते 'स्मरण' तृतीय पर, नित्य स्मरण कर शक्ति।
यूँ बालक प्रह्लाद के, हृदय जगी थी भक्ति।।

भक्ति पादसेवन कही, यह चतुर्थ है रूप।
जैसे लक्ष्मी ने किया, पाया स्थान अनूप।।

अर्चन पंचम भेद है, कर्म वचन मन साध।
राजा पृथु ने ज्यों किया, अर्चन नित निर्बाध।।

वंदन षष्ठम भेद है, करना नित्य प्रणाम।
सेवक बन अक्रूर ज्यूँ, नमन करे निष्काम।।

दास्य भक्ति सप्तम कही, बन स्वामी का दास।
राम भक्ति हनुमान की, करती हृदय उजास।।

सख्य भेद अष्टम कहा, समझ ईश को मित्र।
पार्थ सुदामा द्रोपदी, सख्य सुगंधित इत्र।।

आत्मनिवेदन है नवम, भक्ति भाव का रूप।
जैसे राजा बलि हुए, आत्मनिवेदित भूप।।

मीरा के प्रेमी बने, कृष्णचन्द्र घनश्याम।
साध्य कहें निज प्रेमिका, अड़े सँवारे काम।।

शबरी के आतिथ्य से, हर्षे राम प्रचण्ड।
खाये जूठे बेर ज्यूँ, वो था भाव अखण्ड।।

भक्ति कही है भाव की, भावों का उद्योग।
योग साधना है पृथक, और पृथक हठयोग।।

इस नवधा से भी पृथक, हुए करोड़ों भक्त।
जिसकी जैसी भावना, वैसे देव सशक्त।।

मुक्त हुए वसुदेव जब, सांकल ताले तोड़।
पुत्र रूप भगवान का, ये था अद्भुत जोड़।।

गंगा से पावन कही, भक्त अश्रु की बूँद।
भजता है जो भाव से, अपनी आँखें मूँद।।

सुमरण खा जीवन चले, विद्या पी विद्वान।
भक्ति में खोकर मिले, भक्तों को भगवान।।

कोमल तथा सशक्त से, रहें भक्त के भाव।
केवट चरण पखारके, पार लगाते नाव।

नवधा भक्ति से खुले, विषय मुक्ति का द्वार।
प्रभु के सुमिरन के बिना, नही जीव उद्धार।।

©संजय कौशिक 'विज्ञात'

Wednesday, August 24, 2022

रुद्राक्ष के प्रकार, लाभ, सावधानी एवं मंत्र : संजय कौशिक 'विज्ञात'


*रुद्राक्ष के प्रकार, लाभ, सावधानी और मंत्र*

एक मुखी रुद्राक्ष के, देव रुद्र भगवान।
सिंह राशि ग्रह सूर्य से, मिले दिव्य वरदान।।
मंत्र- ।। ॐ ह्रीं नम: ।।

दो मुख जिस रुद्राक्ष के, ग्रहण करो दे शांति।
करें कृपा जब शिवशिवा, कर्क चंद्र दे कांति।।
मंत्र- ।। ॐ नम: ।।

तीन मुखी रुद्राक्ष से, मंगल पीड़ा अंत।
अग्नि देव रक्षा करें, धारण करते संत।।
मंत्र- ।। ॐ क्लीं नम: ।।

चार मुखी रुद्राक्ष से, दें बुध कृपा अपार।
मिले शक्ति ब्रह्मा कहें, लिखता रचनाकार।।
मंत्र- ।। ॐ ह्रीं नम: ।।

पाँच मुखी रुद्राक्ष नित, दे आध्यात्मिक शक्ति।
देव बृहस्पति की कृपा, जन करता गुरु भक्ति।।
मंत्र- ।। ॐ ह्रीं नम: ।।

छह मुख का रुद्राक्ष तो, भरे बुद्धि भण्डार।
कार्तिकेय भगवान का, शुक्र तुला आधार।।
मंत्र : ।। ॐ ह्रीं हूं नम:।।

सात मुखी रुद्राक्ष से, मिटते आर्थिक दोष।
माँ लक्ष्मी की हो कृपा, शांत वक्र शनि रोष।।
मंत्र- ।। ॐ हूं नम:।।

आठ मुखी रुद्राक्ष से, हो हर बाधा दूर।
गजमुख करते हैं कृपा, राहु न देखे घूर।।
मंत्र- ।। ॐ हूं नम:।।

नौ मुख का रुद्राक्ष यूँ, करे शक्ति संचार।
माँ दुर्गा रक्षक बने, केतु करे उद्धार।।
मंत्र- ।। ॐ ह्रीं हूं नम:।।

दस मुख का रुद्राक्ष ये, हरे वास्तु के दोष।
देव विष्णु रक्षा करें, शांत सभी ग्रह रोष।।
मंत्र- ।। ॐ ह्रीं नम: ।।

एकादश रुद्राक्ष मुख, बढ़े आत्मविश्वास।
मंगल से हनुमान जी, करें व्याधि का ह्रास।।
मंत्र- ।। ॐ ह्रीं हूं नम:।।

द्वादश मुख रुद्राक्ष के, करें सफल हर कार्य।
हर्षित रहते सूर्य तब, करें इसे जब धार्य।।
मंत्र- ।। ॐ रों शों नम: ऊं नम:।।

तेरह मुख रुद्राक्ष है, आकर्षण का केंद्र।
तुला वृषभ के शुक्र भी, हर्षित देव महेंद्र।।
मंत्र- ।। ॐ ह्रीं नम:।।

चौदह मुख रुद्राक्ष दे, षष्ठम इंद्री ज्ञान।
मकर कुम्भ शनि कंठ है, पहनें शिव भगवान।।
मंत्र- ।। ॐ नम:।।

ये रुद्राक्ष गणेश का, गजमुख इसका रूप।
मिटे अशुभता केतु की, धारण करते भूप।।
मंत्र- ।। ॐ श्री गणेशाय नम:।।

गौरी शंकर नाम का, पहनें जो रुद्राक्ष।
वैवाहिक बाधा सभी, हरे चंद्र चित्राक्ष।।
मंत्र- ।। ॐ गौरी शंकराय नम:।।

रुद्राक्षों में श्रेष्ठ है, श्वेत रंग रुद्राक्ष।
रंगों का भी भेद ये, सुनो उन्हीं के साक्ष।।

ताम्र रंग मध्यम कहा, मध्यम से कम पीत।
श्याम रंग कम पीत से, ये मनकों की रीत।।

माला जप रुद्राक्ष का, देता मुक्ति त्रिताप।
कंठ अगर धारण किया, हर लेता सब पाप।।

अक्षमालिका उपनिषद्, कहते शंख प्रवाल।
स्वर्ण रजत रुद्राक्ष से, मध्यम चंदन माल।।

रक्तचाप मधुमेह को, हर लेता रुद्राक्ष।
मानव तन चुम्बक दिखे, तन विद्युत दे साक्ष।।

धारण कर रुद्राक्ष को, करना मत ये कार्य।
जाना नहीं श्मशान में, कान खोल सुन आर्य।।

भोजन मत कर तामसिक, मद्यपान दे त्याग। 
अगर कंठ रुद्राक्ष है, बजा शुद्ध ही राग।।

शयन काल में मत पहन, कंठ कभी रुद्राक्ष।
स्नान ध्यान कर शुद्ध हो, पहन तभी ये आक्ष।।

पहनो मत रुद्राक्ष को, जन्मे जब नवजात।
स्थान वहाँ का त्याग दो, दिन हो चाहे रात।।

माला धारण कर विषम, एक तीन या पाँच।
सम संख्या देंगी जला, समझ भयंकर आँच।।

देना मत उपहार में, पहना जो रुद्राक्ष।
शक्ति तुहारे गात की, उपनिषदों के साक्ष।।

©संजय कौशिक 'विज्ञात'