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Friday, December 23, 2022

गीत : युग वंदन श्री राम को : संजय कौशिक 'विज्ञात'


गीत
युग वंदन श्री राम को
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मापनी - 16/13

कष्ट निकंदन खलदल गंजन 
रघु नंदन श्री राम को।
कोटि कोटि यूँ नमन करे नित 
युग वंदन श्री राम को।।

भक्ति करें उर बोल-बोल के
राम नाम ही सार है।
भाव बूंद दृग द्रवित अगर हो
बने यही आधार है।
कर्म जड़ित हरसी पर घिसके 
दे चंदन श्री राम को।।

श्रेष्ठ तपस्या योग साधना 
नीलकंठ भी धारते।
पद्माकर का चक्र बताता
अजपाजप उच्चारते।
राम-नाम से अनहद महके
दे गंधन श्री राम को।।

अष्ट खण्ड यूँ दसों दिशा के
स्वामी वे हर लोक के।
उनका जम्बू द्वीप निरन्तर 
तर्क प्रमाणित ठोक के।
नित्य सनातन विश्व मानता
हिय बंधन श्री राम को।।

©संजय कौशिक 'विज्ञात'

Tuesday, December 13, 2022

आदियोगी : संजय कौशिक 'विज्ञात' : मापनी ~21/21



आदियोगी
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मापनी ~21/21

सौर मण्डल में चमकते सूर्य अगणित
उष्ण ऊर्जा दह रहे हैं आदि योगी।
चन्द्र सा शीतल किया अम्बर धरा को
धार बन कर बह रहे हैं आदि योगी।।

ज्ञान के विज्ञान का दे रूप अनुपम।
तेज उज्जवलमय तथा उत्तम निरुपम।।
अनुकरण कर सुषम्ना का श्रेष्ठ अद्भुत।
योगियों का है सनातन योग अच्युत।।
नाद अनहद ॐ बन अन्तस् समाये।
वाद्य सुर बन कह रहे हैं आदि योगी।।

केंद्र आज्ञा चक्र स्थावर और जंगम।
मौन पद्मासन हुए योगी विहंगम।।
सप्त तन के भेद करते से प्रमाणित।
एक आत्मा ही रहे कहते सदा नित।।
सृष्टि के इस कष्ट का हर काल कहता।
नित हृदय में रह रहे हैं आदि योगी।।

भाव व्याख्या सूक्ष्म विस्तृत के विचारक।
शब्द संज्ञा व्याकरण के एक कारक।।
गूढ़ से हर वेद शास्त्रों के प्रणेता।
बन विषय नित इंद्रियों को हर्ष देता।।
पंच तत्वों का स्वयं ये सार बोले।
दाह विष की सह रहे हैं आदि योगी।।

नित महामुद्रा महाबंधी हठीले।
खेचरी मुद्रा महावेधी सजीले।।
यूँ सदा हठ योगियों का योग ख़िलता।
ध्यान के अंतःकरण में नेह मिलता।।
खिलखिलाकर चित्त हँसते की तरंगें।
बोल उठती यह रहे हैं आदियोगी।।

©संजय कौशिक 'विज्ञात'


Thursday, December 8, 2022

नवगीत ; विरहन ; संजय कौशिक 'विज्ञात'

नवगीत
विरहन
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मुखडा - 14/9
अन्तरा - 14/14

यामिनी को मौन कुछ यूँ 
कर गई विरहन।
एक बाती सी बुझी जब
मर गई विरहन।।

उस तिमिर की आस झूठी 
सो गए खद्योत सारे
बादलों की आड़ लेकर
ओट में बैठे सितारे
मौन अवगुंठन दहकता 
भर गई विरहन।।

व्याप्त चहुँदिश सनसनाहट
वेदना की तान लहरें
वो मल्हारी नेत्र बरसे
शुष्क थी पर कोर नहरें 
पतझड़ी बहकर बयारी 
झर गई विरहन।।

द्वैत की जलती कथा का 
सार विरही उर तड़पता
आहटों का शोर गूँजे 
शांति को जो नित हड़पता
घूम कर पगडंडियों पर 
घर गई विरहन।।

©संजय कौशिक 'विज्ञात' 


Friday, November 25, 2022

मेंहदी-महावर संजय कौशिक 'विज्ञात'


कविता / गीत
मेंहदी-महावर
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मापनी ~ 16/16

मेंहदी रचाती जब सजनी
देख महावर करे प्रतीक्षा
राग विराग हृदय की तड़पन
करे परीक्षण दृष्टि तिरीक्षा।।

बिंदी की आभा विचलनमय
अंगारों सी जगी तितिक्षा 
फेरों की वे स्मृतियाँ उलझी
विस्मृति पाकर बहकी इक्षा
विरहन जैसी ज्वाला दहकी
विरह मिलन की करे समीक्षा 

करुण व्यथित सा नेत्र द्रवित कर
आहत उर की भूला रक्षा
कंगन की खनखन सूनी सी
सूनी पगडंडी ने भक्षा
व्याकुल अंतः करण प्रताड़ित 
हिय स्पंदन जब चली परीक्षा।।

नील कुरिंजी पुष्प सुगंधित 
देता सा गजरे को शिक्षा 
काल कुसुम स्थिर उर का खिलना
हर्षित क्षण की भूले भिक्षा
ठहर देखती व्याप्त वेदना
चंद्र-चकोरी प्राप्त निरीक्षा।।


©संजय कौशिक 'विज्ञात'

Sunday, September 18, 2022

गीत : हिन्दी को सम्मान मिला : संजय कौशिक 'विज्ञात'


गीत 
हिन्दी को सम्मान मिला
संजय कौशिक 'विज्ञात'

देवनागरी की स्तुति करके
हिन्दी को वरदान मिला
संस्कृत का कुल उत्तम वर्णित
हिन्दी को सम्मान मिला।।

स्वर व्यंजन का मेल मिला तब
शब्दों ने ली अँगड़ाई
बना व्याकरण मात्रा खिलती
भावों की यह चतुराई
मुकुट चंद्र बिंदी का धरके
वर्णों को अभिमान मिला।।

करे हलन्त वर्ण को आधा
शब्दों में उत्साह भरे
कर पग वंदन बैठ साथ में
कुछ के सिर पर राज करे
व्यर्थ नहीं है आधा भी कुछ 
उसको गौरव गान मिला।।

अनुस्वार का मार्ग नासिका
लघु भी गुरु हो जाते हैं 
यही श्वास मुख मण्डल विचरे
पृथक वर्ग कहलाते हैं
तीन मिलेंगे अंत खड़े जो 
उनको कुछ व्यवधान मिला।।

गुण विसर्ग का अनुस्वार सा
लघु गुरु हों नित संगत से
नहीं किसी को छोटा समझो
ज्ञान वर्ण दे इस रंगत से
वैज्ञानिक भी शोध करें अब 
उत्तम ये विज्ञान मिला।।

कण्ठ तालु मूर्द्धा उच्चारण 
दन्त ओष्ठ का बोल कहा
कण्ठतालु कण्ठोष्ठय फिर यूँ
दन्तोष्ठ्य भी खोल कहा
मुख मण्डल से वर्ण निकलते
योग्य इन्हें ये स्थान मिला।।

©संजय कौशिक 'विज्ञात'

Sunday, August 28, 2022

नवधा भक्ति के प्रकार, रूप, एवं उदाहरण : संजय कौशिक 'विज्ञात'


नवधा भक्ति के प्रकार, रूप, एवं उदाहरण

गत कई दिनों से पूछा जा रहा था नवधा भक्ति का क्या अर्थ है इसके रूप कैसे हैं और इनको करने वाले भक्तों के नाम आदि भी जिज्ञासा प्रकट रूप से मेरे समक्ष आई थी तो आज मैं नवधा भक्ति के साथ उपस्थित हुआ हूँ।
वैसे तो नवधा भक्ति को हम इस श्लोक के माध्यम से समझ सकते हैं। कुछ सरलता के उद्देश्य से मैंने कुछ दोहे कहे हैं देखिये और समझिए ये प्रयास सरलता से कहाँ तक स्पष्ट हो सका ..... 
श्लोक :-
श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्।
अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥

दोहे :-

भक्ति मार्ग प्रत्यक्ष कब, कहते इसे परोक्ष।
ध्यान धरे साधक अगर, भक्ति भुक्ति दे मोक्ष।।

करता नवधा भक्ति जो, पा लेता है लक्ष्य।
लख चौरासी योनियाँ, तत्क्षण होती भक्ष्य।।

श्रवण भेद नवधा प्रथम, कथा भक्त की प्यास।
श्रवण परीक्षित ने किया, पूर्ण हुई फिर आस।।

कीर्तन भेद द्वितीय है, इसमें स्तुति का गान।
नाम सुना शुकदेव जी, कीर्तन की पहचान।।

रखते 'स्मरण' तृतीय पर, नित्य स्मरण कर शक्ति।
यूँ बालक प्रह्लाद के, हृदय जगी थी भक्ति।।

भक्ति पादसेवन कही, यह चतुर्थ है रूप।
जैसे लक्ष्मी ने किया, पाया स्थान अनूप।।

अर्चन पंचम भेद है, कर्म वचन मन साध।
राजा पृथु ने ज्यों किया, अर्चन नित निर्बाध।।

वंदन षष्ठम भेद है, करना नित्य प्रणाम।
सेवक बन अक्रूर ज्यूँ, नमन करे निष्काम।।

दास्य भक्ति सप्तम कही, बन स्वामी का दास।
राम भक्ति हनुमान की, करती हृदय उजास।।

सख्य भेद अष्टम कहा, समझ ईश को मित्र।
पार्थ सुदामा द्रोपदी, सख्य सुगंधित इत्र।।

आत्मनिवेदन है नवम, भक्ति भाव का रूप।
जैसे राजा बलि हुए, आत्मनिवेदित भूप।।

मीरा के प्रेमी बने, कृष्णचन्द्र घनश्याम।
साध्य कहें निज प्रेमिका, अड़े सँवारे काम।।

शबरी के आतिथ्य से, हर्षे राम प्रचण्ड।
खाये जूठे बेर ज्यूँ, वो था भाव अखण्ड।।

भक्ति कही है भाव की, भावों का उद्योग।
योग साधना है पृथक, और पृथक हठयोग।।

इस नवधा से भी पृथक, हुए करोड़ों भक्त।
जिसकी जैसी भावना, वैसे देव सशक्त।।

मुक्त हुए वसुदेव जब, सांकल ताले तोड़।
पुत्र रूप भगवान का, ये था अद्भुत जोड़।।

गंगा से पावन कही, भक्त अश्रु की बूँद।
भजता है जो भाव से, अपनी आँखें मूँद।।

सुमरण खा जीवन चले, विद्या पी विद्वान।
भक्ति में खोकर मिले, भक्तों को भगवान।।

कोमल तथा सशक्त से, रहें भक्त के भाव।
केवट चरण पखारके, पार लगाते नाव।

नवधा भक्ति से खुले, विषय मुक्ति का द्वार।
प्रभु के सुमिरन के बिना, नही जीव उद्धार।।

©संजय कौशिक 'विज्ञात'

Wednesday, August 24, 2022

रुद्राक्ष के प्रकार, लाभ, सावधानी एवं मंत्र : संजय कौशिक 'विज्ञात'


*रुद्राक्ष के प्रकार, लाभ, सावधानी और मंत्र*

एक मुखी रुद्राक्ष के, देव रुद्र भगवान।
सिंह राशि ग्रह सूर्य से, मिले दिव्य वरदान।।
मंत्र- ।। ॐ ह्रीं नम: ।।

दो मुख जिस रुद्राक्ष के, ग्रहण करो दे शांति।
करें कृपा जब शिवशिवा, कर्क चंद्र दे कांति।।
मंत्र- ।। ॐ नम: ।।

तीन मुखी रुद्राक्ष से, मंगल पीड़ा अंत।
अग्नि देव रक्षा करें, धारण करते संत।।
मंत्र- ।। ॐ क्लीं नम: ।।

चार मुखी रुद्राक्ष से, दें बुध कृपा अपार।
मिले शक्ति ब्रह्मा कहें, लिखता रचनाकार।।
मंत्र- ।। ॐ ह्रीं नम: ।।

पाँच मुखी रुद्राक्ष नित, दे आध्यात्मिक शक्ति।
देव बृहस्पति की कृपा, जन करता गुरु भक्ति।।
मंत्र- ।। ॐ ह्रीं नम: ।।

छह मुख का रुद्राक्ष तो, भरे बुद्धि भण्डार।
कार्तिकेय भगवान का, शुक्र तुला आधार।।
मंत्र : ।। ॐ ह्रीं हूं नम:।।

सात मुखी रुद्राक्ष से, मिटते आर्थिक दोष।
माँ लक्ष्मी की हो कृपा, शांत वक्र शनि रोष।।
मंत्र- ।। ॐ हूं नम:।।

आठ मुखी रुद्राक्ष से, हो हर बाधा दूर।
गजमुख करते हैं कृपा, राहु न देखे घूर।।
मंत्र- ।। ॐ हूं नम:।।

नौ मुख का रुद्राक्ष यूँ, करे शक्ति संचार।
माँ दुर्गा रक्षक बने, केतु करे उद्धार।।
मंत्र- ।। ॐ ह्रीं हूं नम:।।

दस मुख का रुद्राक्ष ये, हरे वास्तु के दोष।
देव विष्णु रक्षा करें, शांत सभी ग्रह रोष।।
मंत्र- ।। ॐ ह्रीं नम: ।।

एकादश रुद्राक्ष मुख, बढ़े आत्मविश्वास।
मंगल से हनुमान जी, करें व्याधि का ह्रास।।
मंत्र- ।। ॐ ह्रीं हूं नम:।।

द्वादश मुख रुद्राक्ष के, करें सफल हर कार्य।
हर्षित रहते सूर्य तब, करें इसे जब धार्य।।
मंत्र- ।। ॐ रों शों नम: ऊं नम:।।

तेरह मुख रुद्राक्ष है, आकर्षण का केंद्र।
तुला वृषभ के शुक्र भी, हर्षित देव महेंद्र।।
मंत्र- ।। ॐ ह्रीं नम:।।

चौदह मुख रुद्राक्ष दे, षष्ठम इंद्री ज्ञान।
मकर कुम्भ शनि कंठ है, पहनें शिव भगवान।।
मंत्र- ।। ॐ नम:।।

ये रुद्राक्ष गणेश का, गजमुख इसका रूप।
मिटे अशुभता केतु की, धारण करते भूप।।
मंत्र- ।। ॐ श्री गणेशाय नम:।।

गौरी शंकर नाम का, पहनें जो रुद्राक्ष।
वैवाहिक बाधा सभी, हरे चंद्र चित्राक्ष।।
मंत्र- ।। ॐ गौरी शंकराय नम:।।

रुद्राक्षों में श्रेष्ठ है, श्वेत रंग रुद्राक्ष।
रंगों का भी भेद ये, सुनो उन्हीं के साक्ष।।

ताम्र रंग मध्यम कहा, मध्यम से कम पीत।
श्याम रंग कम पीत से, ये मनकों की रीत।।

माला जप रुद्राक्ष का, देता मुक्ति त्रिताप।
कंठ अगर धारण किया, हर लेता सब पाप।।

अक्षमालिका उपनिषद्, कहते शंख प्रवाल।
स्वर्ण रजत रुद्राक्ष से, मध्यम चंदन माल।।

रक्तचाप मधुमेह को, हर लेता रुद्राक्ष।
मानव तन चुम्बक दिखे, तन विद्युत दे साक्ष।।

धारण कर रुद्राक्ष को, करना मत ये कार्य।
जाना नहीं श्मशान में, कान खोल सुन आर्य।।

भोजन मत कर तामसिक, मद्यपान दे त्याग। 
अगर कंठ रुद्राक्ष है, बजा शुद्ध ही राग।।

शयन काल में मत पहन, कंठ कभी रुद्राक्ष।
स्नान ध्यान कर शुद्ध हो, पहन तभी ये आक्ष।।

पहनो मत रुद्राक्ष को, जन्मे जब नवजात।
स्थान वहाँ का त्याग दो, दिन हो चाहे रात।।

माला धारण कर विषम, एक तीन या पाँच।
सम संख्या देंगी जला, समझ भयंकर आँच।।

देना मत उपहार में, पहना जो रुद्राक्ष।
शक्ति तुहारे गात की, उपनिषदों के साक्ष।।

©संजय कौशिक 'विज्ञात'

Sunday, August 21, 2022

रुद्राक्ष : संजय कौशिक 'विज्ञात'


रुद्राक्ष 
संजय कौशिक 'विज्ञात'

ग्रीवा में बत्तीस हों, गिन मनके रुद्राक्ष।
हरता रक्त विकार ये, रोग रहित ताम्राक्ष।।

मनके सत्ताईस गिन, कंठ पहन रुद्राक्ष।
हरता देह विकार यूँ, गूँजे ज्यूँ ताम्राक्ष।।

लौह तत्व रुद्राक्ष में, जाए जल में डूब।
लकड़ी तिरती है सदा, भले देखलो दूब।।

मंत्र जाप रुद्राक्ष से, देता सिद्धि अनेक।
करते जो गुरुमंत्र जप, रखे सभी की टेक।।

सच्चा है रुद्राक्ष वो, नैसर्गिक हों छिद्र।
धारण करने मात्र से, मिटता योग दरिद्र।।

माला हो या गोमुखी, शुद्ध सदा रुद्राक्ष।
धरणी पर मत गेरना, दिखे न पग चित्राक्ष।।

जपमाला रख गोमुखी, कंठ कभी मत धार।
शिव का ये वरदान है, कर हिय से सत्कार।।

शिव के आँसूं से बना, पावन फल रुद्राक्ष।
निराकार आकार ले, स्वयं दे रहे साक्ष।।

रोग मिटें रुद्राक्ष से, मृत्युञ्जय का मंत्र।
शुक्राचार्य महर्षि का, प्रतिपादित ये तंत्र।।

मन में नित शुभता भरे, सिद्ध बनें संकल्प।
पहनें जो रुद्राक्ष को, बने न चिंता अल्प।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

Wednesday, August 10, 2022

गीतिका : संजय कौशिक 'विज्ञात'


गीतिका 
संजय कौशिक 'विज्ञात'

मापनी - 2122 2122 2122 2122

इन दिनों में मित्र का व्यवहार ऐसे हो रहा है।
सर्प की फुंकार सा उद्गार ऐसे हो रहा है।।

बिन तराजू तोल देते मित्र तज बंधन पुराना।
ब्याज खाते मूल बिन व्यापार ऐसे हो रहा है।।

टोपियों का खेल खेलें एक दूजे को चढ़ाकर।
मित्र ले माला पहन जयकार ऐसे हो रहा है।।

अब यहाँ पत्थर तिराकर बाँधते हैं सेतु कितने।
मित्र लुटिया दें डुबो उद्धार ऐसे हो रहा है।।

कौन वे बूंटी मँगाते प्राण रक्षा के लिए अब।
अब सखा विष दें पिला उपचार ऐसे हो रहा है।।

वो यहाँ पर कौन है जो पाँव धोकर जल पिये अब।
मित्र चुभता शूल सा परिवार ऐसे हो रहा है।।

आज यूँ विज्ञात ये पांडित्य फीका दे दिखाई।
मित्र बिन संसार का विस्तार ऐसे हो रहा है।।

©संजय कौशिक 'विज्ञात'

Saturday, July 30, 2022

नवगीत : खिल उठी रूखी कलाई : संजय कौशिक 'विज्ञात'


नवगीत 
खिल उठी रूखी कलाई 
संजय कौशिक 'विज्ञात' 

मापनी 14/14 

श्रावणी की दिव्यता ले
खिल उठी रूखी कलाई
यूँ बहन की साधना पर
हर्ष फिर बाँटे बधाई।।

इन क्षणों के राग अनुपम 
रागनी उनसे निराली
ताल थिरके मिल सुरों में
वाह लूटे ढेर ताली
नेह की किरणें चमकती
थालियों ने जब सजाई।।

सूत्र का विश्वास बढ़कर
छा गया अंतःकरण में
नेह बहनों का कवच ये
सौरमण्डल के चरण में
बन सुरक्षित बंध उत्तम 
नित महक मीठी जगाई।।

एक औषध है यही वो
कष्ट की घड़ियाँ मिटाती
पारलौकिक प्रेम बंधन 
जो हृदय से नित निभाती
राखियों का रंग चहके
पर्व की शुभता बताई।।

©संजय कौशिक 'विज्ञात'

Friday, July 29, 2022

तुकांत शब्द की परिभाषा, प्रकार एवं उदाहरण : संजय कौशिक 'विज्ञात'



तुकांत शब्द की परिभाषा, 
प्रकार एवं उदाहरण
संजय कौशिक 'विज्ञात' 

छंद अथवा कविता के अंत में समान वर्णों के या शब्दों के अंत पर उच्चारित होने वाले वर्णों या शब्दों की उपस्थिति को तुकांत कहा जाता है।
ये तुकांत मुख्यतया 3 प्रकार के होते हैं 
उत्तम तुकांत 
मध्यम तुकांत 
निम्न तुकांत 
सूचना :- परंतु आजकल एक और तुकांत देखा जाता है जो अन्य भाषाओं में लिखा जाता परंतु हिंदी व्याकरण के अनुसार यह स्वीकार्य नहीं है।
4 अति निम्न तुकांत

उत्तम तुकांत- अटकते, खटकते, चटकते, पटकते, गटकते, लटकते आदि कुछ और देखें जाइए, आइए, गाइए, खाइए, पाइए इत्यादि 
जिन तुकांत में समान मात्रा भार तथा उच्चारण में समान ध्वनि हो जो श्रोता वर्ग को अपने आकर्षण पाश में बांधकर मंत्र मुग्ध करते प्रतीत होते हैं। इनका मुख्य स्वरूप समता का स्वरूप पहचान में रखें। इस प्रकार के तुकांत सदैव उत्तम तुकांत कहे जाते हैं तथा हिन्दी व्याकरण के अनुसार ये तुकांत स्वीकृत हैं। 

मध्यम तुकांत- व्यथा, कथा, प्रथा, व्यवस्था आदि मध्यम प्रकार के तुकांत है इस प्रकार के तुकांत भी हिंदी व्याकरण की स्वीकृति नहीं है परंतु कुछ विशेष स्तर पा चुके साहित्यकारों ने इन्हें हिंदी भाषा में प्रयोग करने की स्वीकृति दी है। उसके पश्चात इस प्रकार के तुकांत देखने में आने लगे हैं आँगन, सावन, तड़पन, छनछन, अनबन इत्यादि मध्यम स्तर के तुकांत हैं।
 हार प्यार मध्यम हार व्यवहार निम्न हार सार उत्तम इस प्रकार से तुकांत के प्रयोग में सावधानी रखनी होगी । 
 
निम्न तुकांत - वियोग, सुयोग, आयोग, प्रयोग, उपयोग इत्यादि इस प्रकार के तुकांत में दो वर्ण समान चलते हैं परंतु तृतीय या चतुर्थ वर्ण के उच्चारण बिल्कुल पृथक हो जाते हैं कहीं इ स्वर है कहीं अ स्वर है कहीं उ स्वर है इस प्रकार के तुकांत हिंदी व्याकरण ने कभी स्वीकृत नहीं किए हैं। 

अति निम्न तुकांत- आज धार आप नाथ सास जाप पाप सांप चाल काट छांट 
इस प्रकार के तुकांत अतिनिम्न तुकांत कहे जाते हैं जो हिंदी व्याकरण के अनुसार अतुकांत ही होते हैं 

इन सबसे हट कर एक तुकांत और प्रचनलन में देखा गया है परंतु हिंदी भाषा ने उसे स्वीकार नहीं किया है अंतिम शब्द की कवि अपनी इच्छा से मात्रा घटाए या बढ़ाए 
जैसे 
आप पाप को चौपाई के अंत में आपा पापा करना या  दोहा सृजन के समय आये गाये को आय गाय करना 
इस प्रकार के तुकांत हिंदी व्याकरण द्वारा अस्वीकृत हैं। 


तुकांत के लाभ/हानि पर मंथन 
1 उत्तम तुकांत के प्रयोग से जहाँ रचनाकर की सतर्कता परिलक्षित होती है। वहीं मध्यम या निम्न स्तर के तुकांत प्रयोग से रचनाकर ढीला ढाला सा दिखता है 
2 पाठक या श्रोता को उत्तम तुकांत आकर्षित करते हैं वहीं मध्यम या निम्न तुकांत नीरस से प्रतीत होते हैं। 
3 कई बार अच्छा तुकांत ही पंक्ति का स्मरण करवा देता है वह कंठस्थ रह जाती है जबकि मध्यम या निम्न तुकांत से ऐसा कभी नहीं हो सकता। 
4 कई बार कविता जो छंदबद्ध नहीं है परंतु उत्तम तुकांत से युक्त है तो वह अपने आकर्षण पाश में श्रोता अथवा पाठक को बांधने में सफल सिद्ध होती है जबकि मध्यम तुकांत तथा निम्न तुकांत के साथ ऐसा होने की संभावना न के बराबर होती है। 
5 उत्तम तुकांत के चयन से विचार बंधे हुए तथा जमे हुए झलकते हैं वहीं मध्यम तुकांत में भावों के बिखराव की संभावना अधिक बलवती होती है। 
6 उत्तम तुकांत उत्तम रचना की और संकेत करता है तो मध्यम तुकांत और निम्न तुकांत अपने स्तर पर ले आएगा रचना को ऐसा कहें तो यह भी तर्क संगत ही होगा।

एक मंथन आपका ..... 
अच्छा पकवान दूध और चावल के मिश्रण से शुद्ध खीर बनती है चावल दाल और पानी के मिश्रण से खिचड़ी बनती है एक बात का और ध्यान रखिए खीर पकवान कहा जाता जबकि खिचड़ी रोगियों का भोज्य पदार्थ 
आप अपना स्तर तथा अपने सृजन का स्तर अपने विवेक से स्वयं निर्धारित करें। जिसे पढ़ रहे हैं उसके साथ ऐसा भी हो सकता है कि या तो वह स्वयं रोगी है या रोगियों के लिए खिचड़ी निर्मित कर रहा हो ..... 
ऐसे में आप को क्या करना चाहिए आप स्वयं विवेकशील प्राणी हैं मंथन करने में सक्षम भी हैं।

©संजय कौशिक 'विज्ञात'

Tuesday, July 26, 2022

गीतिका लिखना सरल है : संजय कौशिक 'विज्ञात'


गीतिका लिखना सरल है।
संजय कौशिक 'विज्ञात'

मापनी - 2122 2122 2122 212

गीतिका में छंद वार्णिक मापनी आधार हो।
शुद्ध सार्थक से कथन का भावमय आभार हो।।

कुछ अधूरा सा कथन कहना नहीं है पंक्ति में।
जब कथन हो स्पष्ट निखरे युग्म वो स्वीकार हो।।

दीर्घ लघु के वर्ण सारे रख चलो गिन गालगा।
शिल्प की ये ही कसौटी ध्यान ये हरबार हो।।

भाव यूँ ढलता दिखे आभूषणों की ज्यूँ ढलाई।
यूँ अलंकृत रस टपकता युग्म का शृंगार हो।

व्याकरण आदेश दे अनुपालना हो शिल्प की।
पंक्ति बस दो ही दिखें पर कुछ गहनमय सार हो।।

शीघ्रता की हड़बड़ी से नित खड़ी हों गड़बड़ी।
भाव मंथन के बिना कब कथ्य का परिहार हो।।

जानते पर कर रहे साधक मिलावट शब्द की।
शुद्ध भाषा से सदा साहित्य का उद्धार हो।

गीतिका लिखना सरल है और आकर्षक दिखे।
फिर जड़ाऊ युग्म खींचे मंच से उच्चार हो।।

दे चमक तुकांत उत्तम गीतिका विज्ञात की।
मोहिनी सी काव्य धारा मोड़ ले तैयार हो।।

संजय कौशिक 'विज्ञात' 

Sunday, June 19, 2022

अग्निपथ के अग्निवीर : संजय कौशिक विज्ञात



*अग्निपथ / अग्निवीर* 
*आग या ज्वालमुखी*

लाल बहादुर आकर देखो, भारत लालम लाल हुआ।
जय जवान फिर जय किसान का, आज प्रशासन काल हुआ।।
1
नित्य जवान किसान युवा की, सत्ता पक्ष परीक्षा ले।
लोकतन्त्र मतदान दिलाता, याद नहीं अब दीक्षा ले।।
शासक मद मतवाला होकर, भूल गया सब भिक्षा ले।
आर्यव्रत की करता बातें, न्याय किया कब शिक्षा ले।।
श्रेष्ठ धर्म का रक्षक बनकर, मिथ्या एक दलाल हुआ।
जय जवान फिर जय किसान का, आज प्रशासन काल हुआ।।
2
धर्म कर्म का अंधा शासन, शोर कराना आता है।
हुआ समाज अनिश्चित अस्थिर, इन्हें बनाना आता है।।
महँगाई भी लगे निरंकुश, मूल्य बढ़ाना आता है।
सरकारी सब बेच कम्पनी, कार्य छिपाना आता है।।
सब सौगंध शपथ भूला है, देख समाज निढाल हुआ।
जय जवान फिर जय किसान का, आज प्रशासन काल हुआ।।
3
स्वप्न विश्वगुरु होगा भारत, ऊँचा सिर ये काटेगा।
जुमलेबाजी में ये शासक, थूक सदा ही चाटेगा।।
और कम्पनी राज अटल कर, दूध मलाई बाँटेगा।
मतदान समाप्त कराकर के, नूतन भारत छाँटेगा।।
चंद्र तथा मंगल का सपना, लाक्षागृह सा हाल हुआ।
जय जवान फिर जय किसान का, आज प्रशासन काल हुआ।।
4
मौन रही जो आज तूलिका, सबको ही फिर रोना है।
पाने को कुछ शेष नहीं है, पल-पल ही सब खोना है।।
भय का कट्टा भ्रम का बोरा, सिर पे धर के ढोना है।
एक अराजक पापी सत्ता, पापों को अब धोना है।।
अहम वहम से देश न चलते, बंद विकास उछाल हुआ।
जय जवान फिर जय किसान का, आज प्रशासन काल हुआ।।

5
संविधान का विजय तिलक ये, अगर योजना मोड़े तो।
कृषक योजना हार गई है, हाथ यहाँ भी जोड़े तो।।
क्षमा याचना करले बढ़कर, लज्जित होकर थोड़े तो।
अग्निवीर की स्नातक शिक्षा, जीवित इसको छोड़े तो।।
कृष्ण स्वयं वो बन बैठा है, युवा वर्ग गोपाल हुआ।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

Friday, June 17, 2022

गीतिका लिखने की सरल विधि एव उदाहरण : संजय कौशिक 'विज्ञात'

गीतिका लिखने की सरल विधि एव उदाहरण 
संजय कौशिक 'विज्ञात'


गीतिका से परिचय :- 
निराला जी की गीतिका को सप्त स्वरों के समागम से आयोजित एक विशेष समारोह कहा जाता है। गीतिका हिन्दी साहित्य के लिए एक बहुत सुन्दर उपहार है। गीतिका में चित्रो की रेखाएँ, पुष्ट वरणों का विकास किसी सूर्य से कम नहीं है। गीतिका का दार्शनिक पक्ष अत्यंत  गम्भीर और व्यंजना मूर्तिमती होती है। आलम्बन के प्रतीक, उन्हीं के लिए अस्पष्ट होते होंगे जिन्होंने यह नहीं समझा है कि रहस्यमयी अनुभूति, युग के अनुसार अपने लिए विभिन्न आधार का चयन किया करती है। गीतिका विधा में केवल कोमलता ही कवित्व का मापदण्ड नहीं होता। गीतिका ओज, सौंदर्य भावना और कोमल-कल्पना सहित शक्ति-साधना की उज्ज्वल परिचायक है।

गीतिका को शिल्पीय दृष्टिकोण से कैसे देखते हैं ??

गीतिका को भी हिन्दी छंद विधा (वार्णिक तथा मात्रिक) की तरह ही लिखा जाता है जिसमें मात्रा पतन मान्य नहीं होती। 1 गुरु को 2 लघु के रूप में स्वीकार कर लिया जाता है वह नव स्वरूप मूल छंद का वाचिक स्वरूप कहलाता है। जिस मापनी में लघु का जो स्थान जहाँ सुनिश्चित है उसे वहीं रखना अनिवार्य है।

गीतिका विधा सरल भाषा में समझते हैं गीतिका क्या है? 
गीतिका दो-दो पंक्ति के युग्म पर आधारित बहुत ही सुंदर तथा आकर्षक विधा है। गीतिका के सृजन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण इसके शिल्पीय दृष्टिकोण के विषय में पहले ही बता चुका हूँ। फिर भी पाठक वर्ग सरलता से समझ सके इस उद्देश्य से गीतिका लेखन में प्रयुक्त होने वाली मापनी को उदाहरण स्वरूप लेकर युग्म सरलता से कैसे लिखना होगा ये भी समझते हैं। गीतिका का सबसे पहले हमें स्थाई युग्म लिखना होता है। स्थाई युग्म जिसकी दोनों पंक्तियों में तुकांत समान लिखने होते हैं तुकांत पर भी चर्चा करेंगे 
सर्व प्रथम मापनी देखते हैं 
12122 12122 12122 12122
मापनी को समझें 
इस मापनी में गण व्यवस्था पर चर्चा न करके सीधे इसके वर्णों को समझते हैं 
इस मापनी में कुल 20 वर्ण हैं 
वर्णों की संख्या बता रही है कि बात को जिस आकार में लिखना है तो उसके लिए एक अदृश्य यति की आवश्यकता पड़ेगी जो हमें सभी पंक्तियों में निभानी है। 
यह अदृश्य यति लगभग कुल वर्णों की संख्या के आधे में ले 10-10 वर्ण में या 12-8 या 13 -7 वर्णों की व्यवस्था करे। यह सृजनकार पर निर्भर करता है। पर ध्यान रखने की महत्वपूर्ण बात यह है कि जो प्रयोग स्थाई युग्म में कर लिया वही प्रयोग प्रत्येक युग्म में अनिवार्य रूप से करना होगा। अभी हम 10-10 के साधारण स्वरूप को समझते हैं। 20 वर्ण हुए तो 10 पर अदृश्य यति 16 वर्ण हुए तो 8 वर्ण पर अदृश्य यति अब आप इस विधि से अन्य वर्ण संख्या जो भी आपके समक्ष आएगी उसको देख कर साधारण वाले स्वरूप आधे-आधे को सरलता बाँट कर लेखन कार्य प्रारम्भ कर पाएंगे। 
अब बात करते हैं *तुकांत के विषय में*

12122 12122 12122 12122
मापनी है हमारे पास अंतिम 5 वर्णों के स्वरूप को देख कर समझते हैं तुकांत कैसे आएंगे इस मापनी में 
12122 
निशांत *आए*
विरुद्ध *पाए*
आए, पाए के तुकांत को देखें तो इससे पूर्व एक जगण अनिवार्य रूप से लिखा गया है। युग्म के कथन में नव्यता रहेगी जगण इस और संकेत करता है। यदि आप मात्रिक छंद के अभ्यास करने वाले विद्यार्थी रहे हैं तो मात्रिक छंदों में जगण प्रयोग वर्जित अनेक बार सुना होगा और जगण प्रतिबंध के कारण जिन शब्दों को कभी लिखा ही नहीं वे रचना में नव्यता का आभास देंगे यहाँ आप जगण के कुछ तुकांत ढूँढ सकते हैं हम जब इस मापनी में जगण के तुकांत ढूँढेंगे तब हमें एक समान्त के प्रयोग की भी आवश्यकता रहेगी। आइए समझते हैं इसे भी ... 
जैसे मैंने आप सरलता से समझ सकें इस उद्देश्य से जगण तुकांत संचय करने का एक प्रयास किया है ...... 

सुनीति - उत्तम नीति
अपीति - विनाश, प्रवेश, मृत्यु, प्रलय, विलय
अभीति - निर्भीक
अशीति - संख्या 80
प्रगीति - गीति काव्य, एक प्रकार का छंद 
प्रतीति - प्रतीत होने की क्रिया, जानकारी, ज्ञान
विनीति - विनय
प्रणीति 
समीति - (समिति का वर्तनी रूप) समाज ,सभा
अनीति - अनैतिक, अन्याय 
कुरीति - कुप्रथा 
विगीति - निंदा , झिड़की, परस्पर विरोधी

इन सभी तुकांत के साथ अब हम समान्त के प्रयोग पर भी चर्चा कर लेते हैं यह प्रत्येक तुकांत के पश्चात अनिवार्य रूप से स्थापित करना पड़ेगा। 
कुरीति *देखी*
अनीति *देखी*

चयनित शब्द में *कुरीति तथा अनीति तुकांत हैं* इनके पश्चात प्रयोग होने वाला शब्द *देखी समान्त के रूप में प्रयोग किया गया है* इसके स्थान पर अन्य कुछ और शब्द भी समान्त के रूप में प्रयोग किया जा सकता है जैसे *उसकी* शब्द को दोनों पंक्ति में प्रयोग करके देखें और ये भी समझें कि दोनों में प्रयोग सार्थक हो .......
कुरीति *उसकी* 
अनीति *उसकी*
जँचे तो ये भी समान्त बनाया जा सकता है 
यहाँ स्त्रीलिंग तुकांत है तो समान्त भी स्त्रीलिंग में ही रहेगा 
समान्त को पुल्लिंग करेंगे तो कथन में दोष दिखाई देगा
जैसे 
*कुरीति देखा* ❌
*अनीति देखा* ❌
*कुरीति उसका* ❌
*अनीति उसका* ❌
समान्त के प्रयोग के साथ साथ *हमने स्त्रीलिंग और पुल्लिंग के अंतर को भी सरलता से समझा है।*

अब प्रश्न है स्थाई युग्म की दोनों पंक्तियों में तुकांत अनिवार्य रूप से प्रयोग होंगे ऐसे में कौन से दो तुकांत लिए जाने चाहिए।

2 तुकांत नीति के हैं वे दोनों एक साथ स्थाई युग्म में आये तो ईति के तुकांत लेने पड़ेंगे और नी का प्रयोग आवश्यक हो जाएगा (नी की बंदिश हो जाएगी)
इसलिए ये दोनों तो नहीं आएंगे। 
प्रथम पंक्ति लिखते हैं 

प्रथम पंक्ति :- 
*समाज दिव्यांग सा खड़ा है विधान की ये कुरीति देखी।*

स्थाई युग्म लेखन में कथन तथा भावों के अनुसार पहली पंक्ति यदि संतुष्ट करती है तो दूसरी पंक्ति की तरफ बढ़ा जाए।
पर अब प्रश्न ये है कि युग्म की दूसरी पंक्ति में अपनी बात को सरलता से कहें तो कौन से तुकांत को लें 
यहाँ एक बात का और ध्यान रखना होगा हम जिस भी तुकांत का प्रयोग करें वह पहली पंक्ति में रमा हुआ गुँथा हुआ होना चाहिए भावों के अनुसार एक आकर्षक युग्म दिखाई दे गुँथी हुई वेणी के समान।

ऊपर लिखित बातों के मंथन के पश्चात मेरे मन ने मुझे संकेत दिया कि प्रथम पंक्ति कुरीति पर है तो अगली बात नीति पर हो तो मेरा स्थाई आकर्षक बन सकता है। इसके चयन का उत्तर भी सम्भवतया आगे मिल जाएगा। 
नीति के मेरे पास दो तुकांत हैं सुनीति तथा अनीति 
इन दोनों में से मुझे किसी एक तुकांत का यहाँ प्रयोग करना है।
तो आइए सबसे पहले दोनों तुकांत को लेकर अपनी पंक्ति कहने का प्रयास करता हूँ फिर पहली पंक्ति के साथ भावात्मक तथा कथनात्मक रूप से एकीकरण कर लेगी उसी पंक्ति को स्थाई युग्म में स्थापित करने का निर्णय कर लेंगे।

दूसरी पंक्ति पहले तुकांत के साथ 
*वहीं प्रशासन खड़ा विमुख हो यही अनैतिक अनीति देखी।।*

दूसरी पंक्ति दूसरे विकल्प वाले तुकांत के साथ 
*सदैव चिंतित विलुप्त चिंतन सुधारती कब सुनीति देखी।।*

अब स्थाई युग्म के लिए मेरे द्वारा किये गए प्रयास में तुकांत की व्यवस्था देखते हुए अपनी दो पंक्ति के उत्तम तथा गुँथे हुए भाव जो मुझे लिखने थे वह आप सभी के समक्ष प्रस्तुत है :- 
👇👇👇
प्रथम पंक्ति👇
समाज दिव्यांग सा खड़ा है विधान की ये कुरीति देखी।
द्वितीय पंक्ति 👇
1
वहीं प्रशासन खड़ा विमुख हो यही अनैतिक अनीति देखी।।
2
सदैव चिंतित विलुप्त चिंतन सुधारती कब सुनीति देखी।।

अब मंथन करने का विषय है यह है कि मेरे पास कुरीति तुकांत के साथ अगली पंक्ति के तुकांत को लिखने के दो विकल्प तैयार हैं 
मुझे एक का चयन करना है। तो मैं सीधे चयन करके आगे बात करता हूँ। 

*समाज दिव्यांग सा खड़ा है विधान की ये कुरीति देखी।*
*वहीं प्रशासन खड़ा विमुख हो यही अनैतिक अनीति देखी।।*

मेरा चयन आप ने देखा। मैं मेरे पहले विकल्प के साथ आया हूँ। आत्मा की प्रथम आवाज परमात्मा की होती है ऐसा भी समझ सकते हैं। पर सच जानते हैं सुनीति तुकांत को मैं विरोध में लिख रहा हूँ चिंतनीय विषय दिखा रहा हूँ पर उसमें विरोध के भाव पंक्ति का अंत होते होते स्पष्ट हो जाते हैं 
युग्म की कोमलता नष्ट सी प्रतीत हो रही है सुनीति वाली पंक्ति के भावों से 
कुरीति के साथ अनीति क्यों अधिक सटीक लग रही है इसका कारण भी मंथन करते हैं 
1 दोनों खड़े हैं और दोनों मौन हैं कुछ नही कर रहे। और यही कथन की गहनता से भी है।
2 भेद मात्र इतना है कि एक दुर्बल है तो दूसरा सबल है परस्पर विरोधाभास नहीं है। 
3 कुरीतियाँ ही अनीति की जन्मदात्री हैं। ऐसा कहें तो भी इस युग्म के दोनों तुकांत के चयन को उत्तम कहा जा सकता है। 
4 या ये कहें कि अनीति से ही कुरीतियाँ उपजती हैं और उन्हें बल मिलता है। ऐसा कहें तो भी दोनों पंक्ति अपनी बात को स्पष्ट करती प्रतीत होती हैं । 

विश्वास है अब युग्म लिखने में सभी को सरलता  रहेगी फिर भी यदि कोई चुनौती दिखाई देती है तो बिना किसी संदेह के अपनी जिज्ञासा व्यक्त करें ....

संजय कौशिक 'विज्ञात'

Thursday, June 16, 2022

गीतिका : संजय कौशिक विज्ञात : मापनी ~ 1212 212 122 1212 212 122



गीतिका 
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मापनी ~ 1212 212 122 1212 212 122

उधार खाता शुरू हुआ अब प्रबंध हुंडी नई-नई है।
महाजनी ऋण लिखा गया सब निखार मुंडी नई-नई है।।

पड़ाव अद्भुत विराट अनुपम समझ यही आ रहा प्रतिष्ठित।
निवास चौखट विशाल दिखती किवाड़ कुंडी नई-नई है।।

विभक्त हो छोड़ के गया घर रहस्य जीवन नहीं पता कुछ।
उदर अगन कष्ट भूख बिलखे अशांत टुंडी नई-नई है।।

उसे मिलें तो नहीं दिखे कुछ नहीं मिलें तो करे लड़ाई।
डरें सभी जन गली-गली में प्रसिद्ध गुंडी नई-नई है।।

पुकारता मन चला गया यूँ जगा नहीं नेह राग उसका।
ठहर अगर वो कहीं विचारे विरुद्ध मुंडी नई-नई है।।

बदल लिया आज धर्म उसने चला शिवाले उमंग लेकर।
प्रचार होता त्रिपुंड मस्तक विशेष चुंडी नई-नई है।।

विरोध जिसने किया तुम्हारा वही विरोधी तड़प उठे जब।
भड़ास मन में अटक गई वो खुली न घुंडी नई-नई है।।

किसान रोये खड़ा वहाँ पर उपज हुई वो विनष्ट जब से।
नहीं मिला जब सुझाव संजय बिसार सुंडी नई-नई है।।

कठिन शब्दों के अर्थ :- 
हुंडी - महाजन द्वारा गुप्त भाषा में लिखित राशि।
मुंडी - महाजन के बही खातों में लिखी जाने वाली भाषा 'हिंदी मुंडी' जिसे मुंडी भी कहते हैं। 
कुंडी - द्वार बंद करके ताला लटकता है जहाँ वह  यंत्र 
टुंडी - नाभि 'धरण का डिगना' जिससे पेट एकदम खाली हो जाता है अर्थात दस्त लगना 
गुंडी - स्त्री गुंडी जैसे पुरुष गुंडा होता है
मुंडी - चेहरा 
चुंडी - चोटी ( गंजा होने के बाद छोड़ी जाने वाली शिखा) 
घुंडी - मन में दबी हुई रहस्य की बात 
सुंडी - उपज को खराब करने वाला कीड़ा

©संजय कौशिक 'विज्ञात'

Thursday, June 9, 2022

गीतिका : छिपाया गया है : संजय कौशिक 'विज्ञात'


गीतिका
मापनी - 122 122 122 122

सदा सत्य जो भी छिपाया गया है।
उसे आज काँधे सजाया गया है।।

मरी कल्पना जब चढ़ी फूल माला।
लगे व्यर्थ बोझा चढ़ाया गया है।।

हरा पेड़ फल का दिखे आज हँसता।
लगे एक उपवन खिलाया गया है।।

दिखे स्वप्न कोई हुआ आज खंडित।
लगा शेख चिल्ली जगाया गया है।।

चुभा शूल देखा किया प्रेम चुम्बन।
उसे फिर गले से लगाया गया है।।

कहे व्यंजना के सभी गीत अनुपम।
सुना आज वो जो सुनाया गया है।।

पड़ी एक ठोकर गिरा शोर करके।
अपाहिज हुआ पर चलाया गया है।।

कहो आप संजय युगल फिर खटकता।
लगे मर्म कोई बताया गया है।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

Monday, June 6, 2022

गीतिका : फिर विश्व गुरु बनें हम : संजय कौशिक विज्ञात


*गीतिका*
फिर विश्व गुरु बनें हम 
मापनी :-221 2121 1221 212

फिर विश्व गुरु बनें हम उपहार चाहिए।
गूँजे सभी दिशा अब जयकार चाहिए।।

प्रतिशत व शून्य खोज निराला हमें करे।
दें ज्ञान इस तरह नित अधिकार चाहिए।।

शिक्षा विधान से जन बनते महान हैं।
कोई मिले यहाँ पद आधार चाहिए।।

कुरुक्षेत्र ने सुनी वह गीता पुकारती।
लड़ युद्ध धर्म का बस हथियार चाहिए।।

घनघोर जिस तिमिर पर चलता प्रकाश है।
उस दीप का कभी फिर आभार चाहिए।।

उस श्याम सी घटा पर ज्यूँ मोर नाचता।
यूँ हर्षमय दिखे नित त्यौहार चाहिए।।

निरपेक्ष गुट बनाकर हम शांति दूत हैं।
कल्याण नीति से नित उद्धार चाहिए।।

वसुधैव पर कुटुम्ब व विज्ञात ढूँढते
होना यहीं कहीं पर अवतार चाहिए।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

Sunday, May 29, 2022

गीतिका : हास्य व्यंग्य : संजय कौशिक विज्ञात



*गीतिका*

हास्य व्यंग्य की गीतिका
मापनी - 2212122 2212122

वो मार्ग है कठिन सा दिखता वहाँ न नाला।
उस पर समय हँसाता जब कीच से निकाला।।

यौवन ढले ठहर कर कुछ लोग भूल जाते।
बन मित्र ठोकरों ने दे हाथ है सँभाला।।

वह रोग था भयंकर मिथ्या प्रपंच सारे।
साहस तभी दिखाया इक और प्रेम टाला।।

नित माँगता रहा वो अपना प्रसाद चलकर।
यह गौर श्वेत वर्णी वो और श्याम काला।।

धन की कमी नहीं थी गंजा भले रहा वो।
कह कौन प्रेम अंधा काला दिखे उजाला।।

कुछ वृद्ध वे युवा से नित दौड़ते रहे हैं।
ढल आयु भी गई पर संबंध था निराला।।

चंचल नहीं रहा मन ठहराव आयु पचपन।
बिन जाड़ दाँत के रस यूँ ईख से निकाला।।

कौशिक सुधर गई है अब वृद्ध नीति इनकी।
परिवार जोड़ते पर सह मार और छाला।।

©संजय कौशिक 'विज्ञात'

Saturday, May 28, 2022

गीतिका : नव प्रीत : संजय कौशिक 'विज्ञात'


*गीतिका*
मापनी - 2212122 2212122 

नव प्रीत की कथा का ये खण्ड है अमर नित।
जब दीप पर मचलती वह लौ हुई समर्पित।।

उस इक भ्रमर कली की जब भी हुई न बातें।
पीड़ा विरह जलन की यह अग्नि सार गर्भित।।

सूंघे पराग तितली यह पुष्प का समर्पण।
यह प्रेम और अद्भुत जिसका विधान चर्चित।।

फिर चंद्र की चकोरी इक प्रेम की तपस्या।
जिनका मिलन असम्भव दिखती कभी न विचलित।।

कुछ प्रीत की परीक्षा संबंध से फलित है।
वह झूठ देह बंधन हो सत सदैव खंडित।।

सागर कहाँ सुनेगा धड़कन वहाँ धड़कती।
जब उर्मियाँ पुकारें कर भाव नेह निर्मित।।

बंधन प्रणय वही है जो जोड़ले ह्रदय को।
उर मुग्ध सा दिखे जब देखे कुटुम्ब हर्षित।।

घनघोर से तिमिर का विश्वास प्रेम बाती।
लौ पर जले पतंगे कर प्राण ही विसर्जित।।

बिन शब्द ज्ञान ढाई कुछ लोग हैं भटकते।
विज्ञात बोलते वो बस तन हुआ सुवासित।।

©संजय कौशिक 'विज्ञात'

गीतिका : संजय कौशिक विज्ञात




*गीतिका*
मापनी - 2212122 2212122 

इक हाथ में तिरंगा जन-जन लिए चलेंगे।
जय घोष यूँ लगाकर जय हिंद भी कहेंगे।।

दृग लाल कर हिमालय सागर लहर दहाड़ें।
रिपु जब इन्हें सुने तब कम्पित हुए डरेंगे।।

सैनिक सभी हमारे हैं विश्व में प्रमाणित।
उस साख को बढ़ाते आगे सदा बढ़ेंगे।।

तन ओढ़ते तिरंगा ये श्रेष्ठ हैं हुतात्मा।
सच स्वप्न देश के नित योद्धा यही करेंगे।।

रक्षक दिखें निरंतर प्रहरी सजग हमारे।
यूँ शौर्य की उमंगे हिय शौर्य से भरेंगे।।

अम्बर झुका सकें सब साहस यही पुकारे।
बन भूमि का पुजापा नित पूज के चलेंगे।।

कौशिक ठहर समय की देखे घड़ी अचंभित।
शव आवरण हँसाकर उस आग में जलेंगे।।

©संजय कौशिक 'विज्ञात'

Thursday, May 26, 2022

गीतिका संजय कौशिक विज्ञात



*गीतिका*
मापनी - 21221 21222

पीर भी गीत फिर सुनाती है।
जब सिसक ताल सुर लगाती है।।

रात का घाव है अँधेरा ये
चाँदनी लेप से मिटाती है।।

शूल की नोंक रक्त से भीगी
पाँव की चोट को छिपाती है।।

नेत्र की धार यूँ बहे झरना
तोड़ के स्वप्न सा रुलाती है।।

चैन की चोट यूँ करे क्रंदन
चीख हरबार ये बढ़ाती है।।

ये व्यथित झूल यूँ पड़ी सूनी
याद की गोद फिर झुलाती है।।

कष्ट की मोच त्रस्त यूँ करती
पाँव को तोड़ जो चलाती है।।

टीस की रीस क्यों करे कौशिक
देख दिन रात जब जगाती है।।

©संजय कौशिक 'विज्ञात'

Wednesday, May 18, 2022

हास्य रस. : गीतिका : संजय कौशिक 'विज्ञात'


हास्य रस
गीतिका 
संजय कौशिक 'विज्ञात'

212 1222 212 1222

बात बात पे इटली रोज वो घुमाती है।
इक जहाज पानी का स्वप्न में उड़ाती है।।

एक रेल गाड़ी को देख कर मुझे बोली
मार मार सीटी ये क्यों मुझे बुलाती है।।

गाँव में बुलाया मैं फोन पे रिझाया मैं 
बैठ एक झोटे पे सैर वो कराती है।।

प्यार फेसबुक वाला पड़ गया मुझे भारी
डायना बनी डायन बस नकद उड़ाती है।।

चैट फेसबुक वाली जब पढ़ी जरा सी ही 
मार-मार के बेलन पीठ को सुजाती है।।

कर रही बहाने है माँगती नहीं इमली
और वो कहे बाबू फिर मुझे नचाती है।।

खेत में चलो कौशिक झट निकाल के नैनो
भागती चली बुग्गी गाल से चलाती है।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

Saturday, May 14, 2022

हिन्दी गजल : सनातन चाय : संजय कौशिक 'विज्ञात'



हिन्दी गजल 
सनातन चाय 
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मापनी 28/28


चाय का आनंद चुस्की मौन तो पानी भला है।
फिर अगर है मौन पीना पीर पी जिसने छला है।।

चाय पत्ती कष्ट वाली कुछ घृणा मीठा समझले
चुस्कियों पर चुस्कियाँ ले रोग ये भूलो बला है।।

क्रोध उबले जब निकलता दूध डालो शांति वाला
फिर उबाले पर उबाले नेह की ये भी कला है।।

देख ईर्ष्या मान छलनी छानती जो अवगुणों को
छान देती रस गुणी वो स्वाद बन अदरक चला है।।

मोह मोहक बन सुगंधित लौंग का ये फूल घुलकर 
जो द्विषा लालच बिखेरे सोच ये किनसे टला है।।

लोभ प्याली एक कुनबा टूट कर बिखरे कभी क्यों 
चाय पीते सब रहें बस लो पकौड़ा भी तला है।।

चुस्कियाँ विज्ञात लेता कर सनातन चाय निर्मित
द्वंद्व अन्तस् का विजेता इस जगत में नित फला है।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

Thursday, March 3, 2022

गीत : लौट कर परदेस का सच : संजय कौशिक 'विज्ञात'


गीत 
लौट कर परदेस का सच
संजय कौशिक 'विज्ञात'

मापनी 14/14

लौट कर परदेस का सच 
यूँ तिरंगा बोलता है
प्राण का रक्षक प्रमाणित
भेद मुख हिय खोलता है।।

मर्म अधरों से खुला ये
एक संजीवन तिरंगा
वैद्य विद्यार्थी कहें अब
सार शिक्षा ज्ञान गंगा
विश्व गुरु भारत बिना अब
केंद्र धरणी डोलता है।।

शत्रुता के भाव मृत से
कर रहा ध्वज नेक छाया 
विश्व को कुनबा बनाकर
ध्वज दिखाता श्रेष्ठ माया 
शूल पथ के ये हटाकर 
नित पयोधर छोलता है।।

खंड विक्षत सा हृदय अब 
चाहता है लौट आये
और वंदे मातरम् के 
गीत फिर से गुनगुनाये 
पाक भारत में समाकर 
इक नया युग तोलता है।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

Thursday, February 24, 2022

नवगीत : मीठा राग मल्हार : संजय कौशिक 'विज्ञात'


नवगीत
मीठा राग मल्हार 
संजय कौशिक 'विज्ञात' 

मापनी 
स्थाई/पूरक पंक्ति 12/11
अंतरा 12/12 

फाल्गुनी गाती फिरे 
मीठा राग मल्हार
यूँ अबीरी साँझ का
गूंजे आज प्रचार।।

पंखुड़ी भी पुष्प की
ठोकती है तालियाँ 
प्रीत की गाथा यही
बोलती हैं बालियाँ
यूँ बयारी नृत्य का
देखा नव्य प्रकार।।

मस्त नाचे ये धरा 
गीत के आभार पे 
अम्बरों ने पुष्प से 
बात बोली सार पे 
भीगते से गात में 
दौड़ा प्रेम प्रसार।।

रंग की बातें नई 
यूँ वधू के मध्य में 
हास्य गूँजे मोहिनी 
पाश बाँधे वृध्य में 
कौन ऐसे रोक ले
मारे देख प्रहार।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

Tuesday, January 25, 2022

गीत : अपना ये गणतंत्र पुकारे : संजय कौशिक 'विज्ञात'



गीत 
अपना ये गणतंत्र पुकारे
संजय कौशिक 'विज्ञात'

मापनी 16/14 

अपना ये गणतंत्र पुकारे
राष्ट्र सुरक्षित रखना है
नित्य खिले केसर क्यारी सा
सुगठित पुलकित रखना है।।

माली अपने मुखिया अपने
सेवक बन प्रण लेते हैं
निर्भय रखते जन-मन को जो
निर्भयता नित देते हैं 
पुष्प लदे ये प्रान्त सरीखे
बाग सुगंधित रखना है।।

बाँट चुके पंद्रह टुकड़े से
टुकड़े करना बंद करो
रोग मिटा कर अब मजहब का
शांत स्वभावी भाव भरो 
नेह बने बूटी संजीवन
इसको चर्चित रखना है।।

सोचो ये गणतंत्र सफल हो 
एक अमिट लिख दे गाथा
विश्व हुआ नतमस्तक टेके 
इसके चरणों में माथा 
श्रेष्ठ बना सब देखें भारत 
जग को विस्मित रखना है।।

©संजय कौशिक 'विज्ञात'

Sunday, January 2, 2022

नवगीत : मुस्कुराते गीत मेरे : संजय कौशिक 'विज्ञात'

नवगीत 
मुस्कुराते गीत मेरे
संजय कौशिक 'विज्ञात'

मापनी ~ 14/14

पंक्तियों से छंद झरते 
मुस्कुराते गीत मेरे 
एक बासंती लहर बन
नित थिरकते मीत मेरे।।

इक कमल दल से हृदय को
जब विरह यूँ तोड़ बैठे
तब सुगंधित पल बिखरते
स्मृति उसी की जोड़ बैठे
कुछ मचलते गुनगुनाते 
ये अधर नवनीत मेरे।।

सप्त वारों ने सुनाए 
कष्ट नव रस के उमड़ते
ऋतु छहों से व्यंजना के 
भाव कुछ जम के उखड़ते
फाल्गुनी से कुछ सँवरते
स्वप्न पकते पीत मेरे।।

गूढ़ शब्दों सी कथा ने
वर्ण पाठन क्लिष्ट पहने
शुद्ध उच्चारण हठीले
नव्यता ने स्पष्ट पहने
कंठ में अटके भटकते
सुर करें भयभीत मेरे।।

©संजय कौशिक 'विज्ञात'