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Thursday, December 8, 2022

नवगीत ; विरहन ; संजय कौशिक 'विज्ञात'

नवगीत
विरहन
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मुखडा - 14/9
अन्तरा - 14/14

यामिनी को मौन कुछ यूँ 
कर गई विरहन।
एक बाती सी बुझी जब
मर गई विरहन।।

उस तिमिर की आस झूठी 
सो गए खद्योत सारे
बादलों की आड़ लेकर
ओट में बैठे सितारे
मौन अवगुंठन दहकता 
भर गई विरहन।।

व्याप्त चहुँदिश सनसनाहट
वेदना की तान लहरें
वो मल्हारी नेत्र बरसे
शुष्क थी पर कोर नहरें 
पतझड़ी बहकर बयारी 
झर गई विरहन।।

द्वैत की जलती कथा का 
सार विरही उर तड़पता
आहटों का शोर गूँजे 
शांति को जो नित हड़पता
घूम कर पगडंडियों पर 
घर गई विरहन।।

©संजय कौशिक 'विज्ञात' 


11 comments:

  1. सादर नमन गुरुदेव 🙏
    विरह वेदना से भरी आकर्षक अभिव्यक्ति। बहुत ही प्रेरणादायक सृजन 💐💐💐
    शानदार नवगीत 👌

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  2. बहुत सुंदर नवगीत विरह वेदना की सुंदर चित्रण सादर प्रणाम गुरुदेव🙏🙏🙏🙏

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  3. लाजवाब विरहन नवगीत
    यामिनी को मौन कुछ ....... विरह पर शानदार चित्रण👌👌👌👌 सादर नमन 🙏🙏🙏

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  4. बेहद हृदयस्पर्शी नवगीत आदरणीय 👌👌

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  5. बहुत बहुत बधाई
    शानदार सर्जन के लिए।

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  6. विरह पर हृदय स्पर्शी सृजन 👌👌
    नमन गुरुदेव 🙏

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  7. नव शब्द से सृजन हुई👌👌👌👌👌 नवगीत की अनुपम रचना 👏👏👏👏👏👏बहुत-बहुत हार्दिक बधाई गुरुदेव🙏🙏🙏🙏🙏

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  8. बहुत बढ़िया सृजन है गुरुदेव को सादर नमन ।

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  9. वाह! अत्यंत कारुणिक!🙏🙏

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  10. बहुत सुंदर सृजन आ0 गुरु देव 🙏🙏

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