कुण्डलियाँ शिल्प विधान .... *संजय कौशिक 'विज्ञात'*
सर्वप्रथम विषम मात्रिक छंद कुण्डलियाँ लिखने के लिए दोहा+ रोला = कुण्डलियाँ के सूत्र को समझते हैं ...
दोहा चार चरणों में लिखा जाने वाला अर्धसम मात्रिक छंद है जिसके प्रथम एवं तृतीय चरण में 13-13 मात्राएँ तथा द्वितीय एवं चतुर्थ चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं दोहे के सम चरणों का अंत 'गाल' अर्थात गुरु लघु से होता है और इसके विषम चरणों के आदि में जगण अर्थात 121 मात्रा भार का प्रयोग सदैव वर्जित कहा जाता है। साथ ही ध्यान रहे कि दोहे में उत्तम लय प्रावह बना रहे इस उद्देश्य से इसके विषम चरणों के अंत में रगण (राजभा 212) या नगण(नसल 111) का प्रयोग ध्यान पूर्वक किया जाना चाहिए।
एक बात का और विशेष ध्यान रहे कि दोहा केवल 13,11 और 13,11 मात्रा भार नही समझना चाहिए। बल्कि निम्नलिखित साधारण सी बातों से दोहा विशेष गेयता के साथ उत्तम दिखाई देगी इनका अनुकरण अवश्य करना चाहिए ।
1 दोहे के विषम चरण अर्थात प्रथम एवं तृतीय चरण में शब्द संयोजन त्रिकल से प्रारम्भ किया जाए तो संयोजन 3, 3, 2, 3, 2 के क्रमानुसार होने चाहिए तीसरा त्रिकल गाल अनिवार्य रहेगा जिससे चरणांत रगण (ऽ।ऽ) या नगण (।।।) आ सके।
2 दोहे के विषम चरण अर्थात प्रथम एवं तृतीय चरण में शब्द संयोजन द्विकल या चौकल से प्रारम्भ किये जायें तो संयोजन 4, 4, 3, 2 के अनुसार होगा। ध्यान रहे इसमें भी 8 मात्रा के बाद त्रिकल गाल का प्रयोग अनिवार्य रहेगा। जिससे चरणांत पुनः रगण (ऽ।ऽ) या नगण (।।।) ही आ सकेंगे।
अब सारणी न. 1 के पाँच कलों के विन्यास में चौथा कल त्रिकल दिख रहा है और सारणी-2 के चार कलों के विन्यास का तीसरा कल भी त्रिकल दिख रहा है इन दोनों का रूप गुरु लघु ही रहेगा जो सारणी में पहले भी स्पष्ट किया जा चुका है।
एक बात और सरल है जिसे दोहा लेखन के समय सदैव कंठस्थ रखना चाहिए हृदय 111, पवन 111, जैसे शब्द का वाचिक कलन 12 के प्रवाह में लघु गुरु ही रहेगा। तो इस प्रकार का त्रिकल, त्रिकल के बताए स्थान पर त्याज्य रहेगा यदि भावों के अनुरूप 111 मात्रा भार का त्रिकल चरण में आ रहा है तो वो चरणांत में प्रयोग किया जाएगा जिससे चरणान्त रगण या नगण बन कर गेयता की उत्तम लय प्राप्त कर सके
3 दोहे के सम चरण का शब्द संयोजन 4, 4, 3 या 3, 3, 2, 3 के अनुसार होता है. मात्रिक रूप से दोहों के सम चरण का अंत यानि चरणांत गुरु लघु या ऽ। या 2 1 से ही होना चाहिए।
*एक दोहा देखें* ******
*अनुपम* मुझको लिख रही, लिखे पत्र में मित्र।
खुशबू कहे गुलाब की, कभी कहे वो इत्र॥
*संजय कौशिक 'विज्ञात'*
*रोला* *****
*रोला एक सम-मात्रिक छंद होता है इसमें भी दोहा की तरह 24 मात्राएँ होती हैं, अर्थात विषम चरणों में 11-11 मात्राएँ और सम चरणों में 13-13 मात्राएँ होती हैं 11वीं व 13 वीं मात्राओं पर यति अर्थात विराम होता है। यति से पूर्व (SI 21) अर्थात् गुरु लघु तथा अंत में वर्जित जगण को छोड़ कर चौकल अर्थात् 112, 22, 211 रखने से लय सुन्दर और सधी हुई मिलती है।*
*एक रोला देखें* ******
कभी कहे वो इत्र, पृष्ठ की स्याही महकी।
अक्षर स्वर्णी वर्ण, कहीं मात्राएं बहकी॥
कह कौशिक कविराय, परे हैं विवाद से हम।
कहती है वो मित्र, तुम्हीं हो जग में *अनुपम*॥
*संजय कौशिक 'विज्ञात'*
*कुण्डलियाँ*
अब आते हैं मूल कुण्डलियाँ के स्वरूप पर आइये इसे भी समझते हैं। कुण्डलिया एक विशिष्ट विषम मात्रिक छंद है जो दो छंदों के मेल से निर्मित हुआ कुण्डलियाँ का अपना मनोहारी स्वरूप है। जिसके प्रथम भाग में दोहा लिखा जाता है और द्वितीय भाग में रोला लिखा जाता है अर्थात दोहा की दो पंक्ति के पश्चात रोला की चार पंक्तियाँ से नया छंद कुण्डलियाँ छः पक्तियों में लिखी जाती है
दोहा और रोला के विशिष्ट नियम साझा हो चुके हैं. इसके आगे, इनके संयुक्त को प्रारूप को कुण्डलिया छंद बनने के लिए थोड़ी और विशिष्टता अपनानी पड़ती है :.
1 दोहा के पहले चरण (विषम चरण) का पहला शब्द या पहला शब्दांश या पहला शब्द-समूह रोला के आखिरी चरण (सम चरण) का शब्द या शब्दांश या शब्द-समूह क्रमशः समान होता है।
2 दोहा का चतुर्थ चरण अर्थात द्वितीय सम चरण रोला का प्रथम विषम चरण बनता है। पुनः समझें दोहा का द्वितीय सम चरण रोला के प्रथम विषम चरण में ज्यों का त्यों उठा कर पुनः प्रयोग किया जाता है
3 शेष सभी नियमों में दोहा अपने मूल नियमों से लिखा जाता है और रोला के भी अपने मूल नियमों को निभाना आवश्यक होता है।
पोस्ट को अधिक लंबी न करते हुए सरलता के उद्देश्य से कुण्डलियाँ की मापनी प्रत्येक पंक्ति की प्रेषित कर रहा हूँ जिसका अनुकरण कर पाना नवोदित के लिए सहज और सरल रहेगा। और हर सम्भव प्रयास करे कि चौकल शब्द से ही कुण्डलियाँ के दोहे को शुरू करे। अंत तक उत्तम लय प्राप्त होगी आइये आते हैं अब अपने मुख्य छंद कुण्डलियाँ को देखें और समझें
जो मापनी अथवा मीटर पर लिख सकते हैं उनके लिए
*22* 22 212, 22 22 21
22 22 212, *22 22 21*
*22 22 21*,12 2 22 22
22 22 21,12 2 22 22
22 22 21,12 2 22 22
22 22 21,12 2 22 *22*
अब दोहा और रोला को एक साथ जोड़ कर समझते हैं
एक शरारत भरे पत्र के माध्यम से आप सभी को समर्पित है
🙏🙏🙏😃😀😀
कुण्डलियाँ देखें
(1)
*अनुपम* मुझको लिख रही, लिखे पत्र में मित्र।
खुशबू कहे गुलाब की, कभी कहे वो इत्र॥
कभी कहे वो इत्र, पृष्ठ की स्याही महकी।
अक्षर स्वर्णी वर्ण, कहीं मात्राएं बहकी॥
कह कौशिक कविराय, परे हैं विवाद से हम।
कहती है वो मित्र, तुम्हीं हो जग में *अनुपम*॥
संजय कौशिक 'विज्ञात'
(2)
*कविता* कल्पित क्यों कहूँ, मेरा यही यथार्थ
सोच सको तो सोचलो, क्या है इसमें स्वार्थ
क्या है इसमें स्वार्थ, साधना साधक किसका
जो कुछ भी हूँ आज, सभी फल यश है इसका
कह कौशिक कविराय, योग्य को वरती भविता
करे कृपा बुध योग, *कुंडली* में है *कविता*
संजय कौशिक 'विज्ञात'
एक और प्रयोग देखें, कुण्डलियाँ में सर्प
(3)
*बचपन* सरगम मय कथन, वचन शहद मय करम।
अनबन तब अटपट समझ, अटक-अटक कह मरम॥
अटक-अटक कह मरम, अचल रह सच वह भगवन।
हवन परक सब धरम, अटल पथ पर पय अचवन॥
सकल चलन मन भरम, शतक सम अब यह पचपन।
सबक रबक लय शरम, सरल भय रखकर *बचपन*॥
संजय कौशिक 'विज्ञात'
एक प्रयास और देखें कुण्डलियाँ में सर्प
(4)
*हरपल* मन-मन कर मनन, चरण शरण हर करम।
हर-हर हरदम हर वरण, अटल अचल कर धरम॥
अटल अचल कर धरम, भजन मय रटकर सरगम।
जगत भगत कह भरम, तपन कर जमकर हरदम॥
समझ भवनमय अरथ, समय पर बस सरवर चल।
चटक मटक लय खरज, सफल तब वह लय *हरपल*॥
संजय कौशिक 'विज्ञात'
एक प्रयोग और देखें कुण्डलियाँ में सर्प
(5)
*अनपढ़* रह कर मत ठहर, चल बढ़कर कर करम।
सब सत जन कह लह डगर, चल मन रख अब नरम॥
चल मन रख अब नरम, सतत रहकर तज अनबन।
सरजन कर नव सरग, सनक कम मत कर तनमन॥
अवसर पर कर धरम, सकल जग गढ़ यह अनगढ़।
छलन हरण यह मरम, समझ सच दरपण *अनपढ़*॥
संजय कौशिक 'विज्ञात'
अब पत्र नहीं मित्र 📞 करती है और हुई चर्चा का कुछ अंश 😃😍😀😀😀
कुण्डलियाँ
(6)
*लगते* हो अनुपम मुझे, कहे सपेरा मित्र
कुण्डलियाँ से सर्प के, छाप रहे हो चित्र
छाप रहे हो चित्र, महारत कैसे पाई
कैसे बजती बीन, कला किसने सिखलाई
कह कौशिक कविराज, कलम से मात्रा ठगते
स्वर ले एक 'अ' बीन, उसी को लिखने *लगते*
संजय कौशिक 'विज्ञात'
विशेष:- सम्भव है कहीं शिल्प बताने में या निभाने में कोई त्रुटि रह गई हो तो निवेदन है सूचित करके शुद्ध करने में सहयोग अवश्य करें.....
कुण्डलियाँ के विषय में बहुत ही ज्ञानवर्धक जानकारी दी है ...दोहा और रोला के विषय में भी विस्तार से बताया है। यह लेख हम जैसे नवांकुरों के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगा ...बहुत बहुत आभार आदरणीय 🙏🙏🙏 उदाहरण एक से बढ़कर एक 👌👌👌 कुण्डलियाँ में सर्प का प्रयोग बहुत ही कमाल का लगा और अनुपम तो अनुपम ही है 🙏🙏🙏
ReplyDeleteविदुषी जी आत्मीय आभार इतने खुले शब्दो में प्रशंसा सुन कर ऐसा प्रतीत होता है प्रयास सफल हुआ पुनः आत्मीय आभार
Deleteबहुत सुन्दर और उपयोगी।
ReplyDeleteजब एक शास्त्री जी और ऊपर से वह डॉ. है सुंदर और उपयोगी कह दे तो प्रयास की दिशा और दशा के सुदृढ होने का प्रमाण हो सकती है। आपका आत्मीय आभार डॉ. साहेब
Deleteवाह वाह आद. । सुन्दर और सार्थक जानकारी।
ReplyDeleteछंद के जानकार वाह कहें तो निःसंदेह प्रयास सफल समझ लेना चाहिए, और अगले प्रयास में और अधिक मेहनत करनी चाहिए ताकि प्रयास की दशा और दिशा का पता लग सके मुकेश जी आपका आत्मीय आभार
Deleteप्राचीन भारत की विपुल साहित्यिक भंडार के छंद विधानों में से एक कुण्डलियाँ छंद के बारे में आपने जिस सरलता से यहाँ उदाहरणों के माध्यम से समझाया है वह अद्वितीय है। वर्तमान समय में इन विधाओं के प्रति छा रही उदासीनता को दूर करने में आपका यह लेख और प्रयास निश्चित ही मील का पत्थर बनने वाला है। आपके लेखनी, आपके कौशल और आपके साहित्य प्रेम को नमन। ढेर सारी शुभकामनाएँ आपको कि आप अपने उद्देश्य में सफल हों
ReplyDeleteअनंत सहाब आत्मीय आभार आपका
Deleteसंस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान के मुखारविंद से इतने खुले शब्दों में इतनी ढ़ेर सारी प्रशंसा सुन कर प्रयास के सार्थक रहने का अंदाजा लाग्या जा सकता है निकट भविष्य में आपके साहयोग एवं मार्गदर्शन से ही यह सब सम्भव हो सकेगा आत्मीय आभार अनंत जी
बहुत बढ़िया जानकारी सर जी
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका माटी साहेब
Deleteबहुत खूब सुन्दर जानकारी सर जी
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका बोधन जी
Deleteबहुत सार्थक मैं ग़ज़ल तो लिखता हूँ और इसमें ह्वाट्सएप ग्रुप 'महफ़िल ए ग़ज़ल' ने जैसी मदद की है वैसी ही मदद आपके ब्लॉग से मिल रही है छंद को समझने में... ज्ञान का अलख जगाने के लिए साधुवाद.. गोविन्द राकेश
ReplyDeleteप्रिय मेहुल लूथरा, नजर द्विवेदी जी और हीरालाल जी की कक्षाओं में आप निरन्तर नियमित उपस्थित रहते हैं, आप एक बेहतरीन ग़ज़लकार हैं आपको पढ़ना सौभाग्य की बात है नमन आपकी सृजन धर्मिता को आत्मीय आभार आपका
Deleteअत्यंत उपयोगी पाठ , आपको अनंत साधुवाद !
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका अनुपमा जी
Deleteअत्यंत महत्वपूर्ण जानकारी साझा करने के लिए हार्दिक आभार।आ0
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका अनिता सुधीर जी
Deleteबहुत सरल और ज्ञानवर्धक विवेचना की है आपने। सामान्य व्यक्ति भी इन नियमों की सहायता से कुंडलियां लिख सकेगा यदि अभ्यास करें तो। बहुत-बहुत बधाई।
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका विद्याभूषण जी प्रोत्साहना पाकर प्रयास सफल हुआ पुनः आभार
Deleteबहुत सरल और ज्ञानवर्धक विवेचना की है आपने। सामान्य व्यक्ति भी इन नियमों की सहायता से कुंडलियां लिख सकेगा यदि अभ्यास करें तो। बहुत-बहुत बधाई।
ReplyDeleteबहुत सरल और ज्ञानवर्धक विवेचना की है आपने। सामान्य व्यक्ति भी इन नियमों की सहायता से कुंडलियां लिख सकेगा यदि अभ्यास करें तो। बहुत-बहुत बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुंदर और ज्ञानवर्धक जानकारी दी है आपने। इसकी सहायता से कोई भी सरलतापूर्वक कुंडलियां लिख सकेगा। बहुत-बहुत बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएं।
ReplyDeleteबहुत सरल और ज्ञानवर्धक विवेचना की है आपने। सामान्य व्यक्ति भी इन नियमों की सहायता से कुंडलियां लिख सकेगा यदि अभ्यास करें तो। बहुत-बहुत बधाई।
ReplyDeleteआदरणीय आपने बहुत आसान तरीके से समझाया बहुत बहुत धन्यवाद l
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका
Deleteबहुत सुन्दर और उपयोगी।
ReplyDeleteआभार
Deleteअत्यंत उपयोगी पाठ , आपको अनंत साधुवाद !
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका
Deleteबहुत ही उम्दा प्रस्तुति
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका बीनू जी
Deleteबेहतरीन कुण्डलियां बहुत ही ज्ञानवर्धक जानकारी आ.सर जी शुभकामनाएं 🙏🙏
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका सविता जी
Deleteबहुत सुंदर जानकारी बहुत सुन्दर आपकी कुंडलियां क्या कहने है दिल से नमन है आपको
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका
Deleteबहुत ही उपयोगी पोस्ट, नये सीखने वालों के लिए ,और बहुत सुंदर तरीके से विवेचनात्म उदाहरण देकर सब स्पष्ट समझाया गया है ।
ReplyDeleteबस समय-समय पर पढ़ना जरूरी है,तो अच्छा शिल्प सधेगा।
आपकी लिखी सभी कुण्डलियाँ
अद्भुत बेजोड़ ।
बहुत ही सुन्दर जानकारी आपने कुंडलियां छंद के विषय में दी है आदरणीय!एक से बढ़कर एक उदाहरण के साथ।👌👌👌👌👌👌👏👏👏👏👏👏
Deleteआत्मीय आभार आपका कुसुम कोठारी जी आप वरिष्ठ सहित्यकारा हैं आपसे प्रशंसा पाकर आज का प्रयास अपनी सफलता की कहानी स्वयं कह रहा है, यह सब आपके मार्गदर्शन से ही सम्भव हो सका है। आपका पुनः आभार
Deleteज्ञानवर्धक व उपयोगी जानकारी सर। नमन आपको।
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका डॉ. सरला जी
DeleteBahut Sundar jankari, aabhar
ReplyDeleteआत्मीय आभार
Deleteबहुत अच्छी जानकारी है सर जी हमको सीखने में बहुत मदद मिलेगी । धन्यवाद सर 🙏
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका
Deleteउपयोगी तो बहुत हैं पर जो हैं साहित्यकार
ReplyDeleteहम जैसे नों सिखिया कैसे सीखे जाय ।
जगण मगण न जानते ना मात्रा का ज्ञान
साहित्य रस अमि घट भरा केवल पीने की चाह ।
भाव प्रधानता सर्वोपरि अभिव्यक्ति को भाव
शब्द मात्रा के लिखे तो भाव लुप्त हॊ जाय ।
भाव लुप्त हॊ जाय व्यर्थ तब लेखन लगता
कहे यथार्थ एक बात आगे कलम ना चलता ।
क्षमा सहित कुछ लिख दिया आपने मन की बात
अच्छी लगे तो पढ़िए वरना बिसरी जाय ॥
डॉ़ इन्दिरा गुप्ता यथार्थ
बहुत सुंदर रचना लिखी है आपने
Deleteआत्मीय आभार आपका इंदिरा जी
नमन आपको
आपका छंद में इस तरह का प्रयोग ऐसे भी बहुत अनुपम होता है । कुण्डलिया लिखने में बहुत ही उपयोगी होगी ये जानकारी ।
ReplyDeleteप्रयास यही है सब लिखें और छंद सहज बनें
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (17-01-2020) को " सूर्य भी शीत उगलता है"(चर्चा अंक - 3583) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता 'अनु '
आत्मीय आभार आपका
Deleteअनिता जी
आपके द्वारा किये जा रहे प्रयास की जितनी प्रशंसा की जाए उतनी कम है नए नए हजारों की संख्या के पाठक वर्ग से जोड़ देते हैं आप
नमन आपके इस प्रयास को
आपकी साहित्यिक साधना के लिए मेरे पास शब्द
कम पड़ रहे हैं
पुनः आत्मीय आभार आपका
अद्भुत कुण्डलियाँ के साथ बहुत सुंदर और ज्ञानवर्धक जानकारी आदरणीय।
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका अनुराधा जी
Deleteअत्यंत ज्ञान वर्धक व उपयोगी जानाकारी जिसे आपने सरल सटीक सारगर्भित रूप से समझाया है।
ReplyDeleteहम नवसृजनकारों के लिए अत्यंत उपयोगी साबित होगी।
आत्मीय आभार एवं नमन आपको ।
धनेश्वरी " धरा"
आत्मीय आभार आपका धरा जी
Deleteसादर नमन
🙏🙏🙏
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका
Deleteआत्मीय आभार आपका
ReplyDeleteआप की दी हुई जानकारी मेरे लिये बहुत उपयोगी है आप इसी तरह हम सभी का मार्गदर्शन करते रहै आप को छोटे भाई का सादर प्रणाम
ReplyDeleteसरल शब्दों में सुन्दर ढंग से बताया गया उत्तम जानकारी से हम नवांकुर सहज ही सीख जायेंगे,नमन आपको गुरु जी।
ReplyDeleteसुंदर जानकारी सारगर्भित
ReplyDelete