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Wednesday, January 29, 2020

ताटंक छंद ◆दिल्ली पुनर्वास की सोचे◆ ■संजय कौशिक 'विज्ञात'■


*ताटंक छंद*  ◆दिल्ली पुनर्वास की सोचे◆
■संजय कौशिक 'विज्ञात'■

ताटंक छन्द अर्द्धमात्रिक छन्द है। ताटंक छंद में भी दोहा की तरह चार चरण होते हैं, इसके विषम पद में 16 मात्राएं होती हैं और सम पद में 14 मात्राएँ होती हैं। सम चरणों का तुकांत समुकान्त रखा जाता है।  

इसमें विषम पद के अन्त को लेकर कोई विशेष आग्रह नहीं है। परंतु, चरणान्त तीन गुरुओं से होना अनिवार्य है। यानि सम पद का अंत 3 गुरु से होना आवश्यक है।

16 मात्रिक वाले पद का विधान और मात्रा बाँट ठीक चौपाई छंद वाला है। 14 मात्रिक पद की अंतिम 6 मात्रा सदैव 3 गुरु SSS होती है।  

ताटंक छंद 

पुनर्वास का हो प्रयास अब, अब अपनाओ हे दिल्ली।
हत्या ब्रह्म दोष की गुत्थी, कुछ सुलझाओ हे दिल्ली॥

कश्मीरी का विप्र पलायन, दर्द बना कब सीने में।
बाध्य रहे चुप्पी से तेरी, नित मर मर के जीने में॥

टूटी मानवता की धारा, कब-कब जोड़ी जाती है।
कितने घर बर्बाद हुए थे, हृदय पीर थर्राती है॥ 

जातपात के नाम मची है, लूट यहाँ कुछ वोटों की।
आरक्षण की आड़ बनाकर, भ्रष्टाचारी चोटों की॥

कश्मीरी पंडित की वोटें, तुमने खाक मिला डाली।
छाया कैसा नशा अहम् का, ये पहचान हिला डाली॥

द्वापर काल राजधानी की, बात बताई जाती है।
रक्षक कृष्ण विप्र के बनते, सदा सुनाई जाती है॥ 

गिरधारी ने दूर किया था, सब दुख विप्र सुदामा का।
तब से सृष्टि कीर्ति यश गाती, पुनर्वास के जामा का॥

सियाराम ने मुक्ति हेतु तब, महाकाल को पूजा था।
वैसे वो कुछ काल और था, सतयुग कहते दूजा था॥

एक नहीं दो चार नहीं हैं, लाखों बेघर सोते हैं।
दिल्ली तेरी असफलता पर, अश्रु रक्त के रोते हैं॥

शब्द कहा है पंडित हमने, धर्मों से मत तोलो ये।
लज्जावान प्रशासन उत्तम, कलम चला कुछ बोलो ये॥ 

विधि वैधानिक बन सकती है, आगे तुमको आना है।
मानवता भी लज्जित अब तक, उसको हक दिलवाना है॥ 

सत्ता की कुर्सी में दीमक, घुण अच्छा कब होता है। 
वैद्य अगर बीमार पड़ा हो, रोगी दुगना रोता है॥ 

दिल्ली की कुर्सी अब सोचे, सारा देश चलाना है। 
जातपात की ठेकेदारी, भेद धर्म मिटवाना है॥ 

आज पलायन वादी सारे, उनको पुनः बसाना है।
दिल्ली भारत सारे की है, सबको आज बताना है॥ 

इनके आँसूँ पी जाने की, कैसी जिद्द तुम्हारी है।
हत्या ब्रह्म दोष है तुझ पर, रखना मत जो जारी है॥

संजय कौशिक 'विज्ञात'

42 comments:

  1. आज पलायन वादी सारे, उनको पुनः बसाना है।
    दिल्ली भारत सारे की है, सबको आज बताना है॥ बहुत सुंदर और सार्थक रचना आदरणीय 👌👌

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    1. आत्मीय आभार अनुराधा चौहान जी

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  2. निर्वासित अन्तर्मन की व्यथा हेतु पुनर्वास व्यवस्था का यथार्थ आह्वान। राष्ट्र हित के दिव्य सोच का परिचायक है।अशेष बधाई।

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  3. बहुत सुन्दर सर जी बधाई हो

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  4. सामायिक ज्लंत मुद्दे पर जन चेतना का आह्वान देती ये रचना, काव्य की हर धारा पर सटीक है, साहित्यकार का दायित्व वहन करती अभिनव रचना है ये ।
    अप्रतिम।
    अभ्यागतों के पुनर्वास के लिए ये धरा आज नहीं सहस्त्रों वर्षों से मन खोल सब करती रही है ।
    त्रेता से आज तक या फिर और भी आगे सतयुग से ,
    पलायन को रोकना बहुत जरूरी है वर्ना फिर नये इतिहास बनेंगे जो शायद देश पीड़ा को बढ़ाने वाले होंगे ।
    आपकी रचना श्रेष्ठ है हर दृष्टि से काव्य और भाव सभी पक्ष सुदृढ़।

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    1. आत्मीय आभार कुसुम कोठारी जी
      सुंदर समीक्षा, प्रोत्साहित करती टिप्पणी
      पुनः आत्मीय आभार

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    2. बहुत ही लाजवाब सृजन
      वाह!!!

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  5. बहुत सुन्दर और शिक्षाप्रद रचना।

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  6. अतुलनीय सृजन
    आ.सर जी शुभकामनाएं 🙏🏻

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  7. बहुत सुंदर बधाई हो आपको इतना सुन्दर रचना

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  8. ये दीजिए....

    आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 23 जनवरी 2020 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  9. बहुत ही सुन्दर 👌

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  10. बहुत सुंदर..

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  11. बहुत अच्छी एवम शिक्षा परैड रचना

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  12. बहुत ही ओजपूर्ण सुन्दर समसामयिक रचना आदरणीय 👌👌👌👌👌👌👌

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  13. आत्मीय आभार डॉ मयंक शास्त्री जी

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