*ताटंक छंद* ◆दिल्ली पुनर्वास की सोचे◆
■संजय कौशिक 'विज्ञात'■
ताटंक छन्द अर्द्धमात्रिक छन्द है। ताटंक छंद में भी दोहा की तरह चार चरण होते हैं, इसके विषम पद में 16 मात्राएं होती हैं और सम पद में 14 मात्राएँ होती हैं। सम चरणों का तुकांत समुकान्त रखा जाता है।
इसमें विषम पद के अन्त को लेकर कोई विशेष आग्रह नहीं है। परंतु, चरणान्त तीन गुरुओं से होना अनिवार्य है। यानि सम पद का अंत 3 गुरु से होना आवश्यक है।
16 मात्रिक वाले पद का विधान और मात्रा बाँट ठीक चौपाई छंद वाला है। 14 मात्रिक पद की अंतिम 6 मात्रा सदैव 3 गुरु SSS होती है।
ताटंक छंद
पुनर्वास का हो प्रयास अब, अब अपनाओ हे दिल्ली।
हत्या ब्रह्म दोष की गुत्थी, कुछ सुलझाओ हे दिल्ली॥
कश्मीरी का विप्र पलायन, दर्द बना कब सीने में।
बाध्य रहे चुप्पी से तेरी, नित मर मर के जीने में॥
टूटी मानवता की धारा, कब-कब जोड़ी जाती है।
कितने घर बर्बाद हुए थे, हृदय पीर थर्राती है॥
जातपात के नाम मची है, लूट यहाँ कुछ वोटों की।
आरक्षण की आड़ बनाकर, भ्रष्टाचारी चोटों की॥
कश्मीरी पंडित की वोटें, तुमने खाक मिला डाली।
छाया कैसा नशा अहम् का, ये पहचान हिला डाली॥
द्वापर काल राजधानी की, बात बताई जाती है।
रक्षक कृष्ण विप्र के बनते, सदा सुनाई जाती है॥
गिरधारी ने दूर किया था, सब दुख विप्र सुदामा का।
तब से सृष्टि कीर्ति यश गाती, पुनर्वास के जामा का॥
सियाराम ने मुक्ति हेतु तब, महाकाल को पूजा था।
वैसे वो कुछ काल और था, सतयुग कहते दूजा था॥
एक नहीं दो चार नहीं हैं, लाखों बेघर सोते हैं।
दिल्ली तेरी असफलता पर, अश्रु रक्त के रोते हैं॥
शब्द कहा है पंडित हमने, धर्मों से मत तोलो ये।
लज्जावान प्रशासन उत्तम, कलम चला कुछ बोलो ये॥
विधि वैधानिक बन सकती है, आगे तुमको आना है।
मानवता भी लज्जित अब तक, उसको हक दिलवाना है॥
सत्ता की कुर्सी में दीमक, घुण अच्छा कब होता है।
वैद्य अगर बीमार पड़ा हो, रोगी दुगना रोता है॥
दिल्ली की कुर्सी अब सोचे, सारा देश चलाना है।
जातपात की ठेकेदारी, भेद धर्म मिटवाना है॥
आज पलायन वादी सारे, उनको पुनः बसाना है।
दिल्ली भारत सारे की है, सबको आज बताना है॥
इनके आँसूँ पी जाने की, कैसी जिद्द तुम्हारी है।
हत्या ब्रह्म दोष है तुझ पर, रखना मत जो जारी है॥
संजय कौशिक 'विज्ञात'
बहुत सुंदर...👌💐💐💐
ReplyDeleteआत्मीय आभार सुमा जी
Deleteआज पलायन वादी सारे, उनको पुनः बसाना है।
ReplyDeleteदिल्ली भारत सारे की है, सबको आज बताना है॥ बहुत सुंदर और सार्थक रचना आदरणीय 👌👌
आत्मीय आभार अनुराधा चौहान जी
Deleteनिर्वासित अन्तर्मन की व्यथा हेतु पुनर्वास व्यवस्था का यथार्थ आह्वान। राष्ट्र हित के दिव्य सोच का परिचायक है।अशेष बधाई।
ReplyDeleteआत्मीय आभार प्रधान जी
Deleteबहुत सुन्दर सर जी बधाई हो
ReplyDeleteआत्मीय आभार बोधन जी
Deleteबहुत ही सुन्दर 👌
ReplyDeleteआत्मीय आभार अनंत जी
Deleteनमन लेखनी को
ReplyDeleteआभार अनिता जी
Deleteसामायिक ज्लंत मुद्दे पर जन चेतना का आह्वान देती ये रचना, काव्य की हर धारा पर सटीक है, साहित्यकार का दायित्व वहन करती अभिनव रचना है ये ।
ReplyDeleteअप्रतिम।
अभ्यागतों के पुनर्वास के लिए ये धरा आज नहीं सहस्त्रों वर्षों से मन खोल सब करती रही है ।
त्रेता से आज तक या फिर और भी आगे सतयुग से ,
पलायन को रोकना बहुत जरूरी है वर्ना फिर नये इतिहास बनेंगे जो शायद देश पीड़ा को बढ़ाने वाले होंगे ।
आपकी रचना श्रेष्ठ है हर दृष्टि से काव्य और भाव सभी पक्ष सुदृढ़।
आत्मीय आभार कुसुम कोठारी जी
Deleteसुंदर समीक्षा, प्रोत्साहित करती टिप्पणी
पुनः आत्मीय आभार
बहुत ही लाजवाब सृजन
Deleteवाह!!!
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका
Deleteबहुत सुन्दर और शिक्षाप्रद रचना।
ReplyDeleteआत्मीय आभार डॉ. सरला जी
DeleteAdbhud rachna
ReplyDeleteआत्मीय आभार बीनू जी
DeleteGreat sir ji👌👌
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका
Deleteअतुलनीय सृजन
ReplyDeleteआ.सर जी शुभकामनाएं 🙏🏻
आत्मीय आभार सविता जी
Deleteबहुत सुंदर बधाई हो आपको इतना सुन्दर रचना
ReplyDeleteआत्मीय आभार पूनम जी
Delete
ReplyDeleteये दीजिए....
आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 23 जनवरी 2020 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आत्मीय आभार पम्मी जी
Deleteबहुत ही सुन्दर 👌
ReplyDeleteआभार पुत्तर जी
Deleteबहुत सुंदर..
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका
Deleteसराहनीय
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका
Deleteबहुत अच्छी एवम शिक्षा परैड रचना
ReplyDeleteआत्मीय आभार अतिया जी
Deleteबहुत ही ओजपूर्ण सुन्दर समसामयिक रचना आदरणीय 👌👌👌👌👌👌👌
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका
Deleteवाह वाह आद.
ReplyDeleteआत्मीय आभार मुकेश जी
Deleteआत्मीय आभार डॉ मयंक शास्त्री जी
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