●असंबधा छंद● ■संजय कौशिक 'विज्ञात'■
◆शिल्प विधान ◆
यह एक वार्णिक छंद है, जिसमें 14 वर्ण लिखे जाते हैं। जिसकी मापनी और गण क्रम निम्नलिखित हैं
तुकांत 2 चरण प्रति समनान्त
{222 221 111 112 22}
मगण तगण नगण सगण गुरु गुरु
गीत****
रोते क्यों वो भेज प्रणय वर बेटी को।
मानें हैं जो दीप किरण घर बेटी को॥
बेटे-सा दामाद अगर मिलता देखा।
तो ही लेते निर्णय जब खिलता देखा॥
सोने जैसा पीतल जब चलता देखा।
रोते क्यों ? क्या? सोच समझ कर बेटी को .....
रिश्ता तो माँ बाप चयन करते देखो ।
होता जो संजोग वरण वरते देखो॥
देते बेटी दान सदन भरते देखो ।
देखें रिश्ते लाल नयन भर बेटी को .....
रोती आँखें और सिसक उठती बेटी ।
कैसे हों ये शांत सुबक उठती बेटी॥
शीशे जैसी टूट चटक उठती बेटी ।
मारे क्यों ये मार बहन पर बेटी को ........
छोड़ो लेने यौतुक अब बदहाली के।
खोलो आँखें द्वार परम हरियाली के॥
होंगे ये साकार सपन बलशाली के।
सोचें ऐसे योग्य सफल हर बेटी को .......
संजय कौशिक 'विज्ञात'
वाह्ह्ह, बहुत धन्यवाद कौशिक जी आप के ब्लॉग से छंदों के बारे में बहुत सीख पाऊँगा
ReplyDeleteगोविंद राकेश जी सादर नमन ये आपका बड्डपन है आत्मीय आभार
Deleteअति सुन्दर आदरणीय सर बधाई हो
ReplyDeleteबोधन जी आपकी बधाई से कलम धन्य हुई आत्मीय आभार
Deleteबहुत ही सुन्दर रचना
ReplyDeleteअनंत जी आप जैसे प्रसिद्ध लेखक से प्रोत्साहित होकर कलम धन्य समझने लगती है स्वयं को, आत्मीय आभार आपका
Deleteबहुत बढ़िया रचना सर जी
ReplyDeleteबधाई हो
महेन्द्र देवांगन माटी
माटी सहाब आप स्वयं बहुत अच्छे छंदकार हैं आपसे प्रोत्साहित होकर कलम धन्य हुई आत्मीय आभार आपका
Deleteउपयोगी व अनुकरणीय कृति। सहृदय बधाईयाँ सर जी।
ReplyDeleteसाहू सहाब आप स्वयं बहुत अच्छे छंदकार हैं आपसे प्रोत्साहित होकर कलम धन्य हुई, आत्मीय आभार आपका
Deleteबहुत खूब आदरणीय
ReplyDeleteआत्मीय आभार कलम घिसाई हर विधा में निखार पर है और ऐसे में आपके द्वारा रचना प्रोत्साहना पाकर स्वयं को धन्य समझती है पुनः आभार आपका
Deleteबहुत खूबसूरत रचना विज्ञात जी. बहुत कुछ सीखना है आपसे 🙏 🙏
ReplyDeleteसुधा जी आत्मीय आभार हम स्वयं आपसे सीखते हैं नमन आपको....
Deleteबहुत ही सुन्दर और मार्मिक रचना आदरणीय 🙏
ReplyDeleteएक और छंद,सीखने की कोशिश करेंगे आदरणीय 🙏🌷
अभिलाषा जी आपके इस सहज भाविय आधारित बड्डपन को सादर नमन हम आपसे सीखते हैं इस विश्वास के साथ कि यह सीखने और सीखाने की परंपरा निरंतर इसी प्रकार चलती रहे .... आत्मीय आभार
Deleteअति उत्तम रचना ,
ReplyDeleteमैं भी कोशिश करती हूँ
आत्मीय आभार अनिता सुधीर जी, आपकी सशक्त कलम ऐसे अनेक वार्णिक छंद सृजन कर चुकी है और निखरी हुई लेखनी है आपकी सौभाग्य से कुछ रचनायें पढ़ी भी हैं हमने आपके द्वारा प्रोत्साहना पाकर कलम धन्य हुई पुनः आभार आपका
Deleteबहुत सुन्दर आदरणीय...
ReplyDeleteआभार
Deleteउपयोगी व अनुकरणीय कृति। सहृदय बधाईयाँ सर जी।
ReplyDeleteआभार
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ReplyDeleteTouching really
ReplyDeleteआत्मीय आभार बीनू जी
Deleteबहुत सुन्दर और शिक्षाप्रद सर।
ReplyDeleteडॉ. सरला जी आत्मीय आभार आपका
Delete🙏🏻 बेटियों के लिए बहुत सुन्दर रचना आ.सर जी बधाई व शुभकामनाएं
ReplyDeleteसविता जी आत्मीय आभार
Delete👌👌
ReplyDeleteआभार
DeleteNice👍👍
ReplyDeleteआभार
DeleteNice👍👍
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना बेटियों पर सही बात है
ReplyDeleteआभार आपका
DeleteNice ♥️♥️♥️♥️
ReplyDeleteआभार
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ReplyDeleteबहुत सुंदर!
ReplyDeleteआपके द्वारा हरदिन एक नया छंद समझने को मिलता है, हालांकि मैं देखकर भी प्रयोग नही कर पाती, हमेशा लगता है नया कुछ करने का समय ही नहीं है ,और इधर आपकी हरदिन कुछ नया सीखने सीखाने की प्रतिबद्धता सर्वोच्च मुखी है ,नमन है आपकी इस लग्न और मेहनत को।
बहुत सुंदर सृजन आपका।
भाव सुंदर हृदय स्पर्शी।
अभिनव लेखन।
कुसुम कोठारी जी आत्मीय आभार... आपके द्वारा इतने सुंदर शब्दों से प्रोत्साहना पाकर कलम स्वयं को धन्य समझने लगती है नमन आपकी सृजन धर्मिता को आप भी बहुत सुंदर-सुंदर छंद सृजन करती हैं... बधाई एवं शुभकामनाएं आपको पुनः आत्मीय आभार
Deleteवाहहहहह अद्भुत लेखन, एक और नया छंद, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति👌👌
ReplyDeleteआत्मीय आभार अनुराधा जी सादर नमन आपको ... आपकी प्रशंसा से कलम धन्य हुई
Deleteअत्युत्तम सृजन आदरणीय
ReplyDeleteआत्मीय आभार
Deleteबेटी और परिजन दोनों की व्यथा को सटीक शब्दों में लिखा आपने 👏👏👏 बहुत ही सुंदर रचना👌👌👌 एक और छंद के विषय में जानकारी देने के लिए बहुत बहुत आभार आदरणीय 🙏🙏🙏
ReplyDeleteआत्मीय आभार विदुषी जी सोने की चमक जब पीतल निकलती है तो निःसंदेह मन खिन्न होता है उसी खिन्नता को शब्द देने का प्रयास किया है आपने सहजता से इसे समझा और सराहना की पुनः आभार आपका
Deleteवाह वाह वाह जी बहुत बढिया 👌👌👌🙏
ReplyDeleteसाधुवाद साधुवाद
Delete👌👌💖💖
ReplyDeleteआभार
Deleteअत्यंत हृदयस्पर्शी रचना है आदरणीय 👌👌👌👌
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका
Deleteवाह बहुत सुन्दर रचना, बेटी और परिजनों के मन की भावनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति टंकित की है, बधाई ।
ReplyDeleteआत्मीय आभार मंजू जी आपने शब्दों को पढ़ा प्रयास सफल और सार्थक हुआ प्रोत्साहना पाकर कलम धन्य हुई पुनः आभार आपका
DeleteAti Sundar prastuti.
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका
Deleteबहुत सुन्दर आदरणीय...🙏🏼
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका टैगोर साहब
Deleteअति सुंदर व हृदय सप्रसी रचना
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका
Deleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर छन्दबद्धरचना साथ ही ज्ञानवर्धक शुरुआत.....।
सुधा जी आत्मीय आभार आपका
Deleteअनुपम व प्रशंसनीय छंद साधना!
ReplyDeleteछगनलाल जी आत्मीय आभार आपका
DeleteBahut sundar
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका पूजा जी
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ReplyDeleteअति सुन्दर आद. कमाल की रचना।
ReplyDeleteमुकेश जी आप स्वयं एक अच्छे छंदकार हैं आपसे प्रोत्साहना पाकर कलम धन्य हुई आत्मीय आभार आपका
Deleteअतीव सुंदर रचना ,आदरणीय !
ReplyDeleteअनुपमा जी आत्मीय आभार आपका ... आपसे प्रोत्साहना पाकर कलम धन्य हुई
DeleteBhut marmik Rachna h sir 👍👍
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका
Deleteवाह ,बहुत सुन्दर सृजन
ReplyDeleteबधाई हो अनुज
नवसृजन के लिए प्रेरणा बनो
प्रेरणा तो आप हैं छंद की आत्मीय आभार आपका
Deleteवाह.. बहुत सुंदर
ReplyDeleteआत्मीय आभार
Deleteअति सुंदर अप्रतिम मैं गा भी पा रही हूं ये. वाह कम है, सराहना से परे रचना है आपकी
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका
Deleteकुण्डलियाँ छन्द का सूक्ष्म विवेचन नवोदित रचनाकारों के लिए अनुकरणीय है। प्रभावोत्पादक शब्द विन्यास प्रेरक है।
ReplyDeleteविज्ञात जी!अशेष बधाई।
प्रधान जी आपके कमेंट अभी तक इनबॉक्स में प्राप्त होते थे आज आपको ब्लॉग पर लिखते देख मन प्रसन्न हुआ आत्मीय आभार आपका
Deleteआदरणीय कौशिक जी आप के ब्लाँग से छंद की बहुत ही सुन्दर और विस्तार से जानकारी प्राप्त होती है
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका चमेली जी
Deleteयशोदा जी आपके द्वारा किये जा रहे कार्य से पाठक वर्ग निरन्तर बढ़ रहा है,जितनी भी प्रशंसा की जाए उतनी कम है आत्मीय आभार आपका
ReplyDeletebahut khub sanjay sir jee bhut khub
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