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Friday, February 14, 2020

लावणी छंद ◆प्रतिबिम्ब◆ ●संजय कौशिक 'विज्ञात'●



लावणी छंद
◆प्रतिबिम्ब◆
●संजय कौशिक 'विज्ञात'●
          लावणी छंद एक सम मात्रिक छंद है। इस छंद में भी कुकुभ और ताटंक छंद की तरह 30 मात्राएं होती हैं। 16,14 पर यति के साथ कुल चार चरण होते हैं । और क्रमागत दो-दो चरण तुकांत समतुकांत रहते हैं। इसके चरणान्त में वर्णिक मात्रा भार का कोई विशेष सुझाव नहीं है।बस अंत गाल नहीं हो सकता है। रचना के अनेक बन्ध के अंत में 1 गुरु 2 लघु 2 गुरु आ सकते हैं यही लावणी है
30 मात्रा ,16,14 पर यति,अंत वाचिक {गा} द्वारा करें
चौपाई (16 मात्रा)+ 14 मात्रा
आइये देखते हैं लावणी की एक रचना .....


लावणी छंद (आधारित गीत)
शिल्प विधान
16,14 पर यति
दो-दो पंक्ति समतुकांत
अंत में गुरु लघु अनिवार्यता मुक्त

बिम्ब पुत्र प्रतिबिम्ब पौत्र हैं, जहाँ बुढापा रीत गया।
उत्तम और श्रेष्ठ था बचपन, अपना था जो बीत गया॥

खो-खो कँचें रस्सी कूदो, और पुराना खेल गया।
गिल्ली डंडा, चोर सिपाही, गिट्टे का वो मेल गया।
तेल कहाँ वो सरसों में अब, रहटों का संगीत गया।
उत्तम और श्रेष्ठ था बचपन, अपना था जो बीत गया॥

नीचे घर ऊंची मर्यादा, गाँव गाँव में मिलती थी।
सिर पे पल्लू हया आँख में, सुंदरता तब खिलती थी।
देख आधुनिक चलन काल के, मन क्यों हो भयभीत गया।
उत्तम और श्रेष्ठ था बचपन, अपना था जो बीत गया॥

बागों के वो ताज़ा फल जो, चोरी चुपके खाते थे।
माली लिये शिकायत घर तक, पीछे-पीछे आते थे।
झूल झूलते थे सावन में, आधा रह वो गीत गया।
उत्तम और श्रेष्ठ था बचपन, अपना था जो बीत गया॥

केवल कागे स्वर आलापें, कोयल का स्वर भूल गए।
मित्र निभाते जहाँ मित्रता, अब तो वो घर भूल गए॥
धरा धारती हरित वसन जब, सरसों बूटी चीत गया।
उत्तम और श्रेष्ठ था बचपन, अपना था जो बीत गया॥

संजय कौशिक 'विज्ञात'

38 comments:

  1. बहुत सुंदर विज्ञात जी ...👌👌
    बचपन तो गया पर बचपना नही जाना चाहिए

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    1. आत्मीय आभार राजकुमार मसखरे जी

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    2. बहुत सुंदर छंद सृजन आदरणीय 👌

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  2. बागों के वो ताज़ा फल जो, चोरी चुपके खाते थे।
    माली लिये शिकायत घर तक, पीछे पीछे आते थे।
    झूल झूलते थे सावन में, आधा रह वो गीत गया।
    उत्तम और श्रेष्ठ था बचपन, अपना था जो बीत गया वाह!! बेहतरीन प्रस्तुति आदरणीय 👌👌

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  3. क्या बात
    उत्कृष्ट बचपन की यादें

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  4. अद्भुत आद. । सच में लगता है सब गया।

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  5. बहुत ही सुन्दर बचपन कंचे खिलौने रहट करता कुछ नहीं पिरोया आपने लावणी छंद में हमभी उस जमाने में पहुंच गए जो वो सब कुछ बित गया..... बहुत खूब

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  6. खो-खो कँचें रस्सी कूदो, और पुराना खेल गया।
    गिल्ली डंडा, चोर सिपाही, गिट्टे का वो मेल गया।
    वाह वाह बहुत खूब बेहतरीन सृजन बचपन की यादें ताजा हो गय

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  7. बहुत सुंदर छंदबद्ध गीत

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  8. बचपन याद आ गया वाहः

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  9. बचपन याद आ गया वाहः

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  10. बहुत ही सुन्दर मार्मिक रचना।

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  11. पुत्र बिम्ब प्रतिबिंब पौत्र
    कितना प्यारा वर्णन 👌👌

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  12. सच में!क्या ऐसा भी प्रतिबिंब होता है???न जाने कितनी ही बचपन की यादें ताज़ा हो गयीं आपकी इस रचना को पढ़कर।हृदय को छूती पंक्तियाँ 👌👌👌👌👌👌👌👌

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  13. चरणान्त खाते थे...आते थे वाली पँक्तियाँ देख लें।बाकी बहुत खूबसूरत।👌

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  14. छंद के बारे में विस्तृत जानकारी उपयोगी , बहुत सुंदर सृजन बचपन के दिनों की मधु स्मृति।
    अभिनव ।

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  15. वाह वाह वाह जी बचपन के पल याद आ गए 👌👌👌👌☺️

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  16. वाह बहुत तरीके से गीत छंदों की विधा को प्रेषित करती आपकी रचना बेहद खुबसूरत है,
    बचपन ऩ रीते हर दुख बीते,अधरों पे सिसकता गीत गया
    जीवन के कोलाहल में न जाने क्यों स्वर से संगीत गया..!
    लता सिन्हा ज्योतिर्मय

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  17. बहुत सुंदर आदरणीय बहुत सुंदर

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  18. अनुपम, बेहतरीन सृजन
    आ.सर जी शुभकामनाएं 🙏

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  19. अपना बचपन बीत गया सही में

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  20. बेहतरीन रचना

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  21. लावणी छंद आधारित गीत पढ़ कर मन आनंदित हुआ

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