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Wednesday, February 5, 2020

नवगीत चाँद के पार संजय कौशिक 'विज्ञात'



नवगीत 
चाँद के पार 
संजय कौशिक 'विज्ञात' 

*****
मापनी- 14/10 

मुखड़ा ..…..
क्या चलोगे साथ मेरे,
चाँद  के उस पार।
प्रश्न इकतारा करे ये 
कर मधुर झंकार॥ 

1
अंतरा ......
आज सहसा बोलता है,
सरगमी आलाप।
मौन धारे ऋषि खड़ा है,
कर रहा वो जाप।

पूरक पंक्ति ......
चाँद-सूरज सम अडिग ये,
नाद है ओंकार।
क्या चलोगे साथ मेरे,
चाँद  के उस पार।

2
कर रहे गुंजार भौंरे,
बन रहे स्वर राग।
रागिनी शृंगार प्रेमिल,
 है मधुर अनुराग।

उड़ रहीं मधुमक्खियाँ, 
लेकर शहद का भार।
क्या चलोगे साथ मेरे,
चाँद  के उस पार।

3
चारु अंतरिक्ष किन्तु,
तेज हिय की आस।
देखता विचलित खड़ा है,
बन रहा विश्वास।

अर्द्ध रात्री में हुई है,
उल्लुओं की हार।
क्या चलोगे साथ मेरे,
चाँद  के उस पार।

4
प्रेम की अनुरक्ति करती,
लक्ष्य का संधान।
हंस बैठे हैं ठिकाने,
मिट गए व्यवधान।

विजय श्री पद चूमती है,
जीतते संसार। 
क्या चलोगे साथ मेरे,
चाँद  के उस पार।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

@vigyatkikalam

38 comments:

  1. बहुत बहुत बधाई आपको इतना सुन्दर नवगीत बहुत बढ़िया

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  2. सुन्दर कल्पना,सुन्दर शब्द संयोजन

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  3. बहुत खूब अति सुन्दर

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  4. बहुत सुंदर नवगीत आदरणीय

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  5. बहुत ही सुन्दर नवगीत आदरणीय,

    चारु अंतरिक्ष किन्तु,
    तेज हिय की आस।
    देखता विचलित खड़ा है,
    बन रहा विश्वास।

    बहुत ही सुन्दर लगा मुझे यह अंतरा जो हृदय में जिज्ञासा जाग्रत कर रहा है।यह संपूर्ण नवगीत का
    सबसे सशक्त और सार्थक अंतरा है। भावनाओं की
    अभिव्यक्ति 👌👌 नमन आपकी लेखनी को👌👌🙏🌹

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  6. अनुरोध शैली की बेहतरीन कृति ..

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  7. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति और कल्पना शीलता उत्कृष्ट।बेहतरीन गीत,शब्द संयोजन गजब का ।मुझे आपका ये नवगीत बहुत भाया आदरणीय।

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  8. सुशीला जोशी ,मुजफ्फरनगर ।।

    बेहद खूबसूरत गीत । मनलचाई गति और लय ।सुंदर शब्दावली । सुगठित कलेवर । उतने ही सुंदर भाव ।
    कोटि कोटि बधाई ।

    सुशीला जोशी
    मुजफ्फरनगर

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  9. नाद है ओंकार ,ब्रह्मांड को प्रतिबिंबित करता हुआ ,और ध्यान की अवस्था में यही ओंकार अंदर गूंजता ,
    बिम्ब प्रतिबिम्ब से सजी रचना ,
    शहद का भार ,शायद आपने इच्छाओं के लिए लिखा है
    नमन

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  10. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति नवगीत के रूप में।
    दमक रहे पलाश ज्यों शरद ऋतु की धूप में।
    नवगीत क्या,,,एक सुखद अनुभूति है,,,,खुशबू के ताजे झोंके की तरह 🌺🌺🌺👌👌👌👌👍👍👍लाजवाब सृजन🌺🌺🙏🏻🙏🏻🌺🌺

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  11. बहुत ही शानदार बहुत ही उम्दा कविता है दिल को छू गई बहुत ही उत्कृष्ट

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  12. बहुत ही खूबसूरती के साथ आपने अपनी भावनाओं को शब्दों में पिरोया है इस नवगीत में।सुन्दर भावनात्मक सृजन 👌👌👌👌👌👌👌

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  13. वाह वाह, बहुत खूब आद.

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  14. सुंदर सृजन आदरणीय..

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  15. उत्कृष्ट सृजन... बधाई

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  16. लाजवाब प्रस्तुति

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  17. .मनोरम एवं सरस नवगीत *

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  18. छायावादी रचनाओं के टक्कर की रचना। नमन आपकी लेखनी को।

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  19. शानदार अभिव्यक्ति, शानदार रचना 👌👌

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  20. बहुत सुंदर सृजन।

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  21. वाह बहुत सुंदर नव गीत गेय सुमधुर।
    बहुत सुंदर उपमाएं ,ऋषि मौन और एकतारा ओंकार नाद कर रहा है ,एक का काम दूसरा वो भी सरगम लय में ।
    हंस का ठिकाने बैठना आसा का सुंदर सौपान ।
    बहुत सुंदर छाया वादी सृजन प्रकृति और उसके सजीव घटकों का स्वभाव अनुरूप सुंदर चित्रण।
    उल्लू बेचारे जब सबसे ताकतवर होते हैं उसी समय में हारे, शायद अतंरिक्ष का अनुपम उजला सौंदर्य ही उन्हें पर भ्रमित कर गया।
    अभिनव, अभिराम।

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  22. अति उत्तम नव गीत आपको हृदय से बधाई,,,,,,👌👌👌👌🌺🌺🌺👏👏👏

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  23. बहुत सुंदर नवगीत, बेहतरीन अभिव्यक्ति 👌👌

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  24. प्रकृति के उपमानों को बखूबी प्रयोग किया है ।अद्भुत भाव संयोजन ।नमन है आपके सृजन को 💐🙏

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  25. प्रकृति के उपमानों को बखूबी प्रयोग किया है ।अद्भुत भाव संयोजन ।नमन है आपके सृजन को 💐🙏

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  26. नैसर्गिक उपमाओं का सङ्गोपांग चित्रण। जीवन में विश्वास की डोरी मजबूत होती है। दिव्य भाव ,श्लाघनीय रचना। विज्ञात जी! भूरी- भूरी प्रशंसा के पात्र हैं।

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  27. बहुत सुंदर गीत

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  28. स्वर्णीम रचना 😊😊

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  29. बहुत ही भावप्रवण व सुंदर नवगीत। बहुत बधाई हो कौशिक जी।👌💐

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  30. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

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  31. बहुत ही सुंदर गीत के माध्यम से सन्देश

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  32. सुंदर अभिव्यक्ति

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  33. बहुत सुन्दर कृति
    उपमाओं में नए और लुभावने प्रयोग
    मोहक शब्द रचना
    काव्यमयता उत्तम

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