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Monday, February 24, 2020

नवगीत टूटे पंख संजय कौशिक 'विज्ञात'





नवगीत
टूटे पंख 
संजय कौशिक 'विज्ञात'

मापनी 16/16

टूटे पंखों से लिखदूँ मैं, 
बना लेखनी वो कविता।
भावों में तो श्रेष्ठ बनेगी, 
पृष्ठ बहेगी मसि सरिता॥ 

1
स्वर व्यंजन की बगिया से कुछ,
शब्द सुगंधित फूटेंगे। 
पुष्प बनेंगे सभी अंतरे,
भाव भ्रमर बन टूटेंगे। 
और चमत्कृत अलंकार से, 
अलि केसर रस लूटेंगे। 
सुनकर गुंजन गान बाग में, 
कोयल से स्वर छूटेंगे।

नेह बयार प्रवाहित होगी,
रश्मि खिलेगी बन सविता।
टूटे पंखों से लिखदूँ मैं, 
बना लेखनी वो कविता।

2
भेड़चाल के मार्ग मिटाकर, 
नई डगर सब पालेंगे।
दिवस सूर्य तो रात चन्द्र से, 
राह पथिक अपनालेंगे।
राग मेघ से सीख मल्हारी, 
बाजे सुर में गालेंगे।
और समय की ताल कहरवा, 
दादर सभी बजालेंगे।

ये अनुपम संगीत साधना, 
अंतःकरण बने क्षमिता।
टूटे पंखों से लिखदूँ मैं, 
बना लेखनी वो कविता।

3
नवधा रस से रहे प्रभावित, 
कलम सदा ही गीतों में।
सौहार्द प्रेम की ज्योत जले, 
हृदयंगम सी रीतों में।
प्रस्फुटित हुये संबंध खिलें, 
लिख स्वर्णाक्षर भीतों में। 
और प्रमोद खिले बन क्यारी, 
हारे कंटक जीतों में।

श्री गणेश करने को आतुर, 
चूंट चुका पावन हरिता।
टूटे पंखों से लिखदूँ मैं, 
बना लेखनी वो कविता।

संजय कौशिक 'विज्ञात' 

@vigyatkikalam

4 comments:

  1. बहुत ही खूबसूरत प्रेरित करता नवगीत।नए बिम्ब,नया कथन और सुंदर शब्दचयन आप के नवगीत को एक अलग पहचान दिलाते है ...बहुत बहुत बधाई 💐💐💐💐 सादर नमन आदरणीय 🙏🙏🙏

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  2. भेड़चाल के मार्ग मिटाकर,
    नई डगर सब पालेंगे।
    दिवस सूर्य तो रात चन्द्र से,
    राह पथिक अपनालेंगे।
    बहुत सुन्दर नवगीत

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