नवगीत: प्रीत अवगुंठन हटाकर
◆ संजय कौशिक 'विज्ञात' ◆
मुखड़ा/पूरक पंक्ति~16/16
अंतरा~16/14
दिव्य ज्योति प्रभा परी सी,
जगमगाई रात भर।
प्रीत अवगुंठन हटा कर,
खिलखिलाई रात भर।
बैठ तरुवर ज्यों चकोरी,
चाँदनी बिखरी छटा में।
शाख-पल्लव-ओट में थी,
उमड़ती काली घटा में।
एकटक नैना निहारें,
रश्मियों की घन लटा में।
चाँदनी छनकर द्रुमों से,
झिलमिलाई रात भर।
प्रीत अवगुंठन हटा कर,
खिलखिलाई रात भर।
भाव की ठंडी बयारें,
कुछ तरंगें छोड़ती-सी।
ओढ़नी को ओढ़ कर वो,
यूँ झरोखे मोड़ती-सी।
आह निकली एक मुख से,
और साँसें तोड़ती-सी।
कोकिला अवरुद्ध स्वर से,
तिलमिलाई रात भर।
प्रीत अवगुंठन हटा कर,
खिलखिलाई रात भर।
झींगुरों की घंटियों से,
तेज धड़कन हो रही कुछ।
सनसनाहट मौन पसरा,
प्रीत की धारा बही कुछ।
दीप की वो गुनगुनाहट,
सुन सही बाती रही कुछ।
ले पतंगा लौ जली फिर,
कसमसाई रात भर।
प्रीत अवगुंठन हटा कर,
खिलखिलाई रात भर।
मोहिनी नाजुक अदाएँ,
देखता सब वक्त छुपके।
प्रीति की मधु रागिनी को,
सुन रहे दिग्पाल चुपके।
हर भ्रमर कहता कली से,
प्रीत मधुरस खूब टपके।
उर्मि,सागर-सीप क्रीड़ा,
लहलहाई रात भर।
प्रीत अवगुंठन हटा कर,
खिलखिलाई रात भर।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
@vigyatkikalam
अतिसुंदर वर्णन, बाकी मैं बहुत अदना हूं इस रचना की तारीफ़ करने के लिए, आप तो बहुत ज्ञानी हैं, ,मैं तो अज्ञानी हूं, काश मुझको भी छंद, वर्ण और भाषा का इतना ज्ञान होता
ReplyDeleteआभार चित्रलेखा जी
Deleteआपका आभार जो इतनी सुंदर रचना हमें पढ़ने को मिली
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteआभार
Deleteभावों की तूलिका चली
ReplyDeleteसुंदर शब्दों का आधार
कोई तारा पथ छोड़ आया
करने कविता का श्रृंगार ।
विलक्षण "वियोग शृंगार" का सरस सृजन, अनुपम शब्द संयोजन ,
भाव गहराई तक उतरते
अलंकारों का यथोचित गतिमय प्रवाह
अभिनव गीत प्रस्तुति,छाया वाद का सुंदर छंद सृजन।
कुसुम कोठारी।
आत्मीय आभार कुसुम जी
Deleteइतने सुंदर सुंदर शब्दों से प्रोत्साहना के लिए पुनः आभार
अद्वितीय नवगीत आ.सर जी🙏🏻
ReplyDeleteसविता जी आत्मीय आभार
Deleteबहुत सुन्दर सर जी बधाई हो
ReplyDeleteआत्मीय आभार बोधन जी
Deleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteआत्मीय आभार
Deleteबहुत सुंदर नवगीत आपकी रचना आदरणीय बहुत प्यारी
ReplyDeleteआत्मीय आभार
Delete
ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना ....... ,.8 जनवरी 2020 के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद
आत्मीय आभार पम्मी जी
Deleteबहुत ही सुंदर रचना 👌👌👌 इस रचना में प्रेम की अभिव्यक्ति के साथ विरह की वेदना भी है ....प्रीत का मानवीकरण बहुत सुंदर लगा 👏👏👏 शब्द चयन इतना लाजवाब है कि हर दृश्य स्पष्ट उभर रहा है ...आप के शानदार नवगीतों की माला में एक अनमोल मोती और जुड़ा ...बहुत बहुत बधाई 💐💐💐💐
ReplyDeleteआत्मीय आभार नीतू जी
Deleteखुले शब्दों में प्रेरित करती टिप्पणी के लिए पुनः आभार
बहुत सुन्दर नवगीत आदरणीय
ReplyDeleteआत्मीय आभार
Delete🙏👏👏👏🌌
ReplyDeleteआत्मीय आभार
Delete🙏👏👏👏🌌
ReplyDeleteआत्मीय आभार
Delete🙏👏👏👏🌌
ReplyDeleteआत्मीय आभार
Deleteविज्ञात जी प्रणाम, आपके ब्लॉग पर प्रथम बार मेरा आगमन है परन्तु प्रथम दृष्टया ही आपके ब्लॉग के सबसे ऊपर लिखे शब्द छंदबद्ध कविता जो कि आज के परिदृश्य से सार्थक सन्देश दे रहा है। सत्य कहूँ तो यही चमत्कार एक कवि को आमजन से पृथक करता है और शेष आपकी रचना से स्वतः ही ज्ञात हो रहा है ! आपकी रचना काव्य के प्रत्येक आयाम को स्पर्श करती है। और क्या कहूँ, मेरे शब्दकोष में शब्द ही शेष नहीं रहे इस रचना की सराहना हेतु ! सादर 'एकलव्य'
ReplyDeleteआपने तो गागर में सागर भर दिया। पूरे ब्लॉग की इतनी सुंदर और सटीक समीक्षा दी है। आपके ये सुंदर शब्द सदैव मेरा पथ प्रदर्शक बन प्रेरित करते रहेंगे।आपका आत्मीय आभार।
Deleteवाह!!अद्भुत!
ReplyDeleteआत्मीय आभार शुभा जी
Deleteअनिता सैनी जी आपके सहयोग भाव और रचना को असंख्य पाठकों तक पहुंचाने के इस प्रशंसनीय कार्य को नमन करते हुए बधाई सहित शुभकामनाएं प्रेषित करता हूँ आप इस कार्य में अवश्य सफल सिद्ध हों
ReplyDeleteआपके प्रयास से हमारे ब्लाग पर भी पाठकों की संख्या दिन प्रतिदि बढ़ रही है। आपका आत्मीय आभार
बहुत अच्छे अच्छे पाठकों का परिवार बन रहा है। पुनः आत्मीय आभार
निशब्द,भावों.की गहराई असीम है।पाखी
ReplyDeleteनिशब्द,भावों.की गहराई असीम है।पाखी
ReplyDeleteअद्वितीय रचना
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