नवगीत
गुलाब
संजय कौशिक 'विज्ञात'
देख गुलाब खिला डाली पर,
तितली कितनी दमक उठी।
लाल कपोल अधर रतनारे,
रक्तिम आभा चमक उठी।
1
बाग बहारों से सम्मोहित,
पंख मयूरा खोल रहे।
देख बौर जो टहनी लटके,
कोयल से कुछ बोल रहे।
तीव्र अनेक स्वरों की लहरें,
कवि सागर को तोल रहे।
और रहस्य बहुत से देखे,
मिश्री में रस घोल रहे।
अंबर छोड़ धरा पर पसरी,
इंद्रधनुष की रमक उठी।
देख गुलाब खिला डाली पर,
तितली कितनी दमक उठी।
2
विकसित पुलकित उस यौवन पर,
उपमाओं की झड़ी लगी।
कुंड भरा भावों से दौड़ा,
स्वर्णाभा जब जड़ी लगी।
सुंदरता में रति से उत्तम,
दूर परी भी खड़ी लगी।
चोर सुरभि पाटल अवलोकनि,
इन शब्दों से बड़ी लगी।
सृजन किये गीतों से ज्यादा,
अलंकार की छमक उठी।
देख गुलाब खिला डाली पर,
तितली कितनी दमक उठी।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
बहुत ही शानदार नवगीत 👌👌👌 प्राकृतिक बिम्ब और श्रृंगार का अनोखा मिश्रण ....शब्द चयन तो हमेशा ही लाजवाब होता है ...आपकी हर रचना शानदार होती है। बहुत बहुत बधाई शानदार सृजन की 💐💐💐💐
ReplyDeleteप्रकृति के सौंदर्य से लबरेज,सुन्दर नवगीत 👌👌👌👌👌👌👌👏👏👏👏👏👏👏👏
ReplyDeleteअति प्रशंसनीय नवगीत, कौशिक जी
ReplyDeleteशानदार प्रकृति चित्रण से सुसज्जित नवगीत
ReplyDeleteवाह वाह!! प्राकृतिक सौंदर्य को सुंदर शब्द दिया आपने। अद्भुत कविता।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर आदरणीय प्रकृति पर आपकी यह रचना
ReplyDeleteBht badhiya😊
ReplyDeleteसृजन किये गीतों से ज्यादा,
ReplyDeleteअलंकार की छमक उठी।
देख गुलाब खिला डाली पर,
तितली कितनी दमक उठी।
वाहहहहह अद्भुत सृजन 👌👌👌👌
लाजवाब
ReplyDeleteअति सुंदर रचना।
ReplyDeleteलाजवाब
ReplyDeleteदेख अनेक स्वरों की लहरें,
ReplyDeleteकवि सागर को तोल रहे।
और रहस्य बहुत से देखे,
मिश्री में रस घोल रहे।
बहुत ही बेहतरीन सृजन
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteअति उत्तम रचना सर जी
ReplyDeleteवाह वाह वाह
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ।
प्राकृतिक बिम्ब से सराबोर ये रचना खिल उठी
उसी गुलाब की भाँति जिसे देखकर आपने यह रचना की होगी । अनुपम सृजन आदरणीय ।
बेहद खूबसूरत
ReplyDeleteआपकी हर रचना शानदार होती है।
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई शानदार सृजन की
अच्छा प्रयास है
ReplyDeleteप्रकृति को उसके वास्तविक रपमे देख उसमें खो जाना और उसे उचित अलंकारों से जडना कठिनतम कार्य जिसमें आप सफल है। बहुत सुंदर नवगीत। बधाई 💐
ReplyDeleteअति सुन्दर प्रकृति चित्रण किया है आप ने। शब्द चयन एवं अलंकारों के प्रयोग से उत्कृष्ट नवगीत सृजन हेतु बहुत-बहुत बधाई।
ReplyDeleteबहुत ही जोरदार प्रकृति चित्रण सर जी
ReplyDeleteमनोहर गीत
ReplyDeleteमनोहर गीत
ReplyDeleteमधुमास की गीत,लय सुहावन।
ReplyDeleteपढ़कर पाठक जन मन पावन।
बधाई हो विज्ञात जी।
वाह वाह वाह जी खूब 👌👌👌☺️
ReplyDeleteअत्यंत उत्कृष्ट रचना
ReplyDeleteप्रकृति के छायांकन का भान कराती अनुपम कृति
ReplyDelete