नवगीत
मुखड़ा/पूरक पंक्ति~16/16
अंतरा~16/14
कष्ट विरह के अपने पन की,
बाँसुरिया भी टूटी-फूटी ...
1
घोर घटा छाई दिखती थी,
कहाँ बरस के चली गई।
शुष्क आँख में नमी बहुत है,
थमी हुई या टली गई।
एक हवा के झोंके की वो,
साथी बनकर छली गई।
व्यथित,परिष्कृत से इस मन की,
झांझरिया भी टूटी-फूटी ...
कष्ट विरह के अपने पन की,
बाँसुरिया भी टूटी-फूटी ...
2
तपिश लगे तो ठंडा माँगे,
ठंड माँगती पुनः तपिश।
किसकी कितनी कहनी- सुननी,
क्रोध-अग्नि पे कहाँ दबिश।
यही परवरिश कहलाती है,
संस्कृति सीखें वासर-निश।
रोग भरे अनगिन इस तन की,
गागरिया भी टूटी-फूटी ...
कष्ट विरह के अपने पन की,
बाँसुरिया भी टूटी-फूटी ...
3
सोच धरा की लता,सुता भी,
स्वयं खड़ी निज पैरों पर।
झाड़-पेड़ पर चढ़ती फिर भी,
करे भरोसा गैरों पर।
पुलकित नव तरुणाई फँसती,
जाकर देखो कैरों पर।
मर्म-पर्श से विचलित छन की,
पंखुड़िया भी टूटी-फूटी ...
कष्ट विरह के अपने पन की,
बाँसुरिया भी टूटी-फूटी ...
संजय कौशिक 'विज्ञात'
@vigyatkikalam
👌👌🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteBehtarin
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteहूं बहुत सुन्दर बहुत प्यारी रचना आपकी
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका
Deleteअति सुन्दर सर जी
ReplyDeleteबोधन जी आत्मीय आभार
Deleteआ.सर जी बेहतरीन नवगीत 🙏🏻
ReplyDeleteसविता जी आत्मीय आभार
Deleteबहुत ही सुंदर हृदयस्पर्शी नवगीत ...मन की व्यथा सुनाती भाव भरी अभिव्यक्ति 👌👌👌....बहुत बहुत बधाई आदरणीय खूबसूरत सृजन की💐💐💐
ReplyDeleteआत्मीय आभार नीतू जी
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteआभार
Deleteअच्छा नवगीत बधाई आदरणीय संजय कौशिक सर ।
ReplyDeleteआत्मीय आभार
Deleteशब्दों का चयन प्रभावित करता है।
ReplyDeleteउम्दा सृजन।प्रेरित करती रचना 👌👌
आत्मीय आभार पाखी जी
Deleteबेहतरीन सृजन
ReplyDeleteबधाई
आत्मीय आभार पम्मी जी
Deleteआत्मीय आभार अनिता जी
ReplyDeleteसूचना के लिए पुनः आभार
बहुत ही सुंदर मौलिक लेखन, मनमुग्ध हो गया। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीय "विज्ञात" जी।
ReplyDeleteआत्मीय आभार सिन्हा साहेब
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteआत्मीय आभार नदीश साहेब
Deleteतपिश लगे तो ठंडा माँगे,
ReplyDeleteठंड माँगती पुनः तपिश।
किसकी कितनी कहनी- सुननी,
क्रोध-अग्नि पे कहाँ दबिश। ... कौशिक जी ने अद्भुत कथा कह दी इस कविता के माध्यम से ...वाह
आत्मीय आभार अलकनंदा सिंह जी
Deleteआपकी सराहना प्रेरणादायक सिद्ध मंत्र से कम नहीं पुनः आभार
बहुत सुंदर सरस भाव, सारगर्भित सृजन ।
ReplyDeleteअप्रतिम नव गीत।
आत्मीय आभार वीणा जी
Deleteबहुत ही लाजवाब नवगीत
ReplyDeleteवाह!!!
आत्मीय आभार सुधा जी
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन
ReplyDeleteआत्मीय आभार ज्योति खरे जी
Deleteबाँसुरिया,गागरिया,पंखुड़िया,झांझरिया .....
ReplyDelete*टूटी फूटी*
अप्रतिम सृजन