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Sunday, June 19, 2022

अग्निपथ के अग्निवीर : संजय कौशिक विज्ञात



*अग्निपथ / अग्निवीर* 
*आग या ज्वालमुखी*

लाल बहादुर आकर देखो, भारत लालम लाल हुआ।
जय जवान फिर जय किसान का, आज प्रशासन काल हुआ।।
1
नित्य जवान किसान युवा की, सत्ता पक्ष परीक्षा ले।
लोकतन्त्र मतदान दिलाता, याद नहीं अब दीक्षा ले।।
शासक मद मतवाला होकर, भूल गया सब भिक्षा ले।
आर्यव्रत की करता बातें, न्याय किया कब शिक्षा ले।।
श्रेष्ठ धर्म का रक्षक बनकर, मिथ्या एक दलाल हुआ।
जय जवान फिर जय किसान का, आज प्रशासन काल हुआ।।
2
धर्म कर्म का अंधा शासन, शोर कराना आता है।
हुआ समाज अनिश्चित अस्थिर, इन्हें बनाना आता है।।
महँगाई भी लगे निरंकुश, मूल्य बढ़ाना आता है।
सरकारी सब बेच कम्पनी, कार्य छिपाना आता है।।
सब सौगंध शपथ भूला है, देख समाज निढाल हुआ।
जय जवान फिर जय किसान का, आज प्रशासन काल हुआ।।
3
स्वप्न विश्वगुरु होगा भारत, ऊँचा सिर ये काटेगा।
जुमलेबाजी में ये शासक, थूक सदा ही चाटेगा।।
और कम्पनी राज अटल कर, दूध मलाई बाँटेगा।
मतदान समाप्त कराकर के, नूतन भारत छाँटेगा।।
चंद्र तथा मंगल का सपना, लाक्षागृह सा हाल हुआ।
जय जवान फिर जय किसान का, आज प्रशासन काल हुआ।।
4
मौन रही जो आज तूलिका, सबको ही फिर रोना है।
पाने को कुछ शेष नहीं है, पल-पल ही सब खोना है।।
भय का कट्टा भ्रम का बोरा, सिर पे धर के ढोना है।
एक अराजक पापी सत्ता, पापों को अब धोना है।।
अहम वहम से देश न चलते, बंद विकास उछाल हुआ।
जय जवान फिर जय किसान का, आज प्रशासन काल हुआ।।

5
संविधान का विजय तिलक ये, अगर योजना मोड़े तो।
कृषक योजना हार गई है, हाथ यहाँ भी जोड़े तो।।
क्षमा याचना करले बढ़कर, लज्जित होकर थोड़े तो।
अग्निवीर की स्नातक शिक्षा, जीवित इसको छोड़े तो।।
कृष्ण स्वयं वो बन बैठा है, युवा वर्ग गोपाल हुआ।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

Friday, June 17, 2022

गीतिका लिखने की सरल विधि एव उदाहरण : संजय कौशिक 'विज्ञात'

गीतिका लिखने की सरल विधि एव उदाहरण 
संजय कौशिक 'विज्ञात'


गीतिका से परिचय :- 
निराला जी की गीतिका को सप्त स्वरों के समागम से आयोजित एक विशेष समारोह कहा जाता है। गीतिका हिन्दी साहित्य के लिए एक बहुत सुन्दर उपहार है। गीतिका में चित्रो की रेखाएँ, पुष्ट वरणों का विकास किसी सूर्य से कम नहीं है। गीतिका का दार्शनिक पक्ष अत्यंत  गम्भीर और व्यंजना मूर्तिमती होती है। आलम्बन के प्रतीक, उन्हीं के लिए अस्पष्ट होते होंगे जिन्होंने यह नहीं समझा है कि रहस्यमयी अनुभूति, युग के अनुसार अपने लिए विभिन्न आधार का चयन किया करती है। गीतिका विधा में केवल कोमलता ही कवित्व का मापदण्ड नहीं होता। गीतिका ओज, सौंदर्य भावना और कोमल-कल्पना सहित शक्ति-साधना की उज्ज्वल परिचायक है।

गीतिका को शिल्पीय दृष्टिकोण से कैसे देखते हैं ??

गीतिका को भी हिन्दी छंद विधा (वार्णिक तथा मात्रिक) की तरह ही लिखा जाता है जिसमें मात्रा पतन मान्य नहीं होती। 1 गुरु को 2 लघु के रूप में स्वीकार कर लिया जाता है वह नव स्वरूप मूल छंद का वाचिक स्वरूप कहलाता है। जिस मापनी में लघु का जो स्थान जहाँ सुनिश्चित है उसे वहीं रखना अनिवार्य है।

गीतिका विधा सरल भाषा में समझते हैं गीतिका क्या है? 
गीतिका दो-दो पंक्ति के युग्म पर आधारित बहुत ही सुंदर तथा आकर्षक विधा है। गीतिका के सृजन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण इसके शिल्पीय दृष्टिकोण के विषय में पहले ही बता चुका हूँ। फिर भी पाठक वर्ग सरलता से समझ सके इस उद्देश्य से गीतिका लेखन में प्रयुक्त होने वाली मापनी को उदाहरण स्वरूप लेकर युग्म सरलता से कैसे लिखना होगा ये भी समझते हैं। गीतिका का सबसे पहले हमें स्थाई युग्म लिखना होता है। स्थाई युग्म जिसकी दोनों पंक्तियों में तुकांत समान लिखने होते हैं तुकांत पर भी चर्चा करेंगे 
सर्व प्रथम मापनी देखते हैं 
12122 12122 12122 12122
मापनी को समझें 
इस मापनी में गण व्यवस्था पर चर्चा न करके सीधे इसके वर्णों को समझते हैं 
इस मापनी में कुल 20 वर्ण हैं 
वर्णों की संख्या बता रही है कि बात को जिस आकार में लिखना है तो उसके लिए एक अदृश्य यति की आवश्यकता पड़ेगी जो हमें सभी पंक्तियों में निभानी है। 
यह अदृश्य यति लगभग कुल वर्णों की संख्या के आधे में ले 10-10 वर्ण में या 12-8 या 13 -7 वर्णों की व्यवस्था करे। यह सृजनकार पर निर्भर करता है। पर ध्यान रखने की महत्वपूर्ण बात यह है कि जो प्रयोग स्थाई युग्म में कर लिया वही प्रयोग प्रत्येक युग्म में अनिवार्य रूप से करना होगा। अभी हम 10-10 के साधारण स्वरूप को समझते हैं। 20 वर्ण हुए तो 10 पर अदृश्य यति 16 वर्ण हुए तो 8 वर्ण पर अदृश्य यति अब आप इस विधि से अन्य वर्ण संख्या जो भी आपके समक्ष आएगी उसको देख कर साधारण वाले स्वरूप आधे-आधे को सरलता बाँट कर लेखन कार्य प्रारम्भ कर पाएंगे। 
अब बात करते हैं *तुकांत के विषय में*

12122 12122 12122 12122
मापनी है हमारे पास अंतिम 5 वर्णों के स्वरूप को देख कर समझते हैं तुकांत कैसे आएंगे इस मापनी में 
12122 
निशांत *आए*
विरुद्ध *पाए*
आए, पाए के तुकांत को देखें तो इससे पूर्व एक जगण अनिवार्य रूप से लिखा गया है। युग्म के कथन में नव्यता रहेगी जगण इस और संकेत करता है। यदि आप मात्रिक छंद के अभ्यास करने वाले विद्यार्थी रहे हैं तो मात्रिक छंदों में जगण प्रयोग वर्जित अनेक बार सुना होगा और जगण प्रतिबंध के कारण जिन शब्दों को कभी लिखा ही नहीं वे रचना में नव्यता का आभास देंगे यहाँ आप जगण के कुछ तुकांत ढूँढ सकते हैं हम जब इस मापनी में जगण के तुकांत ढूँढेंगे तब हमें एक समान्त के प्रयोग की भी आवश्यकता रहेगी। आइए समझते हैं इसे भी ... 
जैसे मैंने आप सरलता से समझ सकें इस उद्देश्य से जगण तुकांत संचय करने का एक प्रयास किया है ...... 

सुनीति - उत्तम नीति
अपीति - विनाश, प्रवेश, मृत्यु, प्रलय, विलय
अभीति - निर्भीक
अशीति - संख्या 80
प्रगीति - गीति काव्य, एक प्रकार का छंद 
प्रतीति - प्रतीत होने की क्रिया, जानकारी, ज्ञान
विनीति - विनय
प्रणीति 
समीति - (समिति का वर्तनी रूप) समाज ,सभा
अनीति - अनैतिक, अन्याय 
कुरीति - कुप्रथा 
विगीति - निंदा , झिड़की, परस्पर विरोधी

इन सभी तुकांत के साथ अब हम समान्त के प्रयोग पर भी चर्चा कर लेते हैं यह प्रत्येक तुकांत के पश्चात अनिवार्य रूप से स्थापित करना पड़ेगा। 
कुरीति *देखी*
अनीति *देखी*

चयनित शब्द में *कुरीति तथा अनीति तुकांत हैं* इनके पश्चात प्रयोग होने वाला शब्द *देखी समान्त के रूप में प्रयोग किया गया है* इसके स्थान पर अन्य कुछ और शब्द भी समान्त के रूप में प्रयोग किया जा सकता है जैसे *उसकी* शब्द को दोनों पंक्ति में प्रयोग करके देखें और ये भी समझें कि दोनों में प्रयोग सार्थक हो .......
कुरीति *उसकी* 
अनीति *उसकी*
जँचे तो ये भी समान्त बनाया जा सकता है 
यहाँ स्त्रीलिंग तुकांत है तो समान्त भी स्त्रीलिंग में ही रहेगा 
समान्त को पुल्लिंग करेंगे तो कथन में दोष दिखाई देगा
जैसे 
*कुरीति देखा* ❌
*अनीति देखा* ❌
*कुरीति उसका* ❌
*अनीति उसका* ❌
समान्त के प्रयोग के साथ साथ *हमने स्त्रीलिंग और पुल्लिंग के अंतर को भी सरलता से समझा है।*

अब प्रश्न है स्थाई युग्म की दोनों पंक्तियों में तुकांत अनिवार्य रूप से प्रयोग होंगे ऐसे में कौन से दो तुकांत लिए जाने चाहिए।

2 तुकांत नीति के हैं वे दोनों एक साथ स्थाई युग्म में आये तो ईति के तुकांत लेने पड़ेंगे और नी का प्रयोग आवश्यक हो जाएगा (नी की बंदिश हो जाएगी)
इसलिए ये दोनों तो नहीं आएंगे। 
प्रथम पंक्ति लिखते हैं 

प्रथम पंक्ति :- 
*समाज दिव्यांग सा खड़ा है विधान की ये कुरीति देखी।*

स्थाई युग्म लेखन में कथन तथा भावों के अनुसार पहली पंक्ति यदि संतुष्ट करती है तो दूसरी पंक्ति की तरफ बढ़ा जाए।
पर अब प्रश्न ये है कि युग्म की दूसरी पंक्ति में अपनी बात को सरलता से कहें तो कौन से तुकांत को लें 
यहाँ एक बात का और ध्यान रखना होगा हम जिस भी तुकांत का प्रयोग करें वह पहली पंक्ति में रमा हुआ गुँथा हुआ होना चाहिए भावों के अनुसार एक आकर्षक युग्म दिखाई दे गुँथी हुई वेणी के समान।

ऊपर लिखित बातों के मंथन के पश्चात मेरे मन ने मुझे संकेत दिया कि प्रथम पंक्ति कुरीति पर है तो अगली बात नीति पर हो तो मेरा स्थाई आकर्षक बन सकता है। इसके चयन का उत्तर भी सम्भवतया आगे मिल जाएगा। 
नीति के मेरे पास दो तुकांत हैं सुनीति तथा अनीति 
इन दोनों में से मुझे किसी एक तुकांत का यहाँ प्रयोग करना है।
तो आइए सबसे पहले दोनों तुकांत को लेकर अपनी पंक्ति कहने का प्रयास करता हूँ फिर पहली पंक्ति के साथ भावात्मक तथा कथनात्मक रूप से एकीकरण कर लेगी उसी पंक्ति को स्थाई युग्म में स्थापित करने का निर्णय कर लेंगे।

दूसरी पंक्ति पहले तुकांत के साथ 
*वहीं प्रशासन खड़ा विमुख हो यही अनैतिक अनीति देखी।।*

दूसरी पंक्ति दूसरे विकल्प वाले तुकांत के साथ 
*सदैव चिंतित विलुप्त चिंतन सुधारती कब सुनीति देखी।।*

अब स्थाई युग्म के लिए मेरे द्वारा किये गए प्रयास में तुकांत की व्यवस्था देखते हुए अपनी दो पंक्ति के उत्तम तथा गुँथे हुए भाव जो मुझे लिखने थे वह आप सभी के समक्ष प्रस्तुत है :- 
👇👇👇
प्रथम पंक्ति👇
समाज दिव्यांग सा खड़ा है विधान की ये कुरीति देखी।
द्वितीय पंक्ति 👇
1
वहीं प्रशासन खड़ा विमुख हो यही अनैतिक अनीति देखी।।
2
सदैव चिंतित विलुप्त चिंतन सुधारती कब सुनीति देखी।।

अब मंथन करने का विषय है यह है कि मेरे पास कुरीति तुकांत के साथ अगली पंक्ति के तुकांत को लिखने के दो विकल्प तैयार हैं 
मुझे एक का चयन करना है। तो मैं सीधे चयन करके आगे बात करता हूँ। 

*समाज दिव्यांग सा खड़ा है विधान की ये कुरीति देखी।*
*वहीं प्रशासन खड़ा विमुख हो यही अनैतिक अनीति देखी।।*

मेरा चयन आप ने देखा। मैं मेरे पहले विकल्प के साथ आया हूँ। आत्मा की प्रथम आवाज परमात्मा की होती है ऐसा भी समझ सकते हैं। पर सच जानते हैं सुनीति तुकांत को मैं विरोध में लिख रहा हूँ चिंतनीय विषय दिखा रहा हूँ पर उसमें विरोध के भाव पंक्ति का अंत होते होते स्पष्ट हो जाते हैं 
युग्म की कोमलता नष्ट सी प्रतीत हो रही है सुनीति वाली पंक्ति के भावों से 
कुरीति के साथ अनीति क्यों अधिक सटीक लग रही है इसका कारण भी मंथन करते हैं 
1 दोनों खड़े हैं और दोनों मौन हैं कुछ नही कर रहे। और यही कथन की गहनता से भी है।
2 भेद मात्र इतना है कि एक दुर्बल है तो दूसरा सबल है परस्पर विरोधाभास नहीं है। 
3 कुरीतियाँ ही अनीति की जन्मदात्री हैं। ऐसा कहें तो भी इस युग्म के दोनों तुकांत के चयन को उत्तम कहा जा सकता है। 
4 या ये कहें कि अनीति से ही कुरीतियाँ उपजती हैं और उन्हें बल मिलता है। ऐसा कहें तो भी दोनों पंक्ति अपनी बात को स्पष्ट करती प्रतीत होती हैं । 

विश्वास है अब युग्म लिखने में सभी को सरलता  रहेगी फिर भी यदि कोई चुनौती दिखाई देती है तो बिना किसी संदेह के अपनी जिज्ञासा व्यक्त करें ....

संजय कौशिक 'विज्ञात'

Thursday, June 16, 2022

गीतिका : संजय कौशिक विज्ञात : मापनी ~ 1212 212 122 1212 212 122



गीतिका 
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मापनी ~ 1212 212 122 1212 212 122

उधार खाता शुरू हुआ अब प्रबंध हुंडी नई-नई है।
महाजनी ऋण लिखा गया सब निखार मुंडी नई-नई है।।

पड़ाव अद्भुत विराट अनुपम समझ यही आ रहा प्रतिष्ठित।
निवास चौखट विशाल दिखती किवाड़ कुंडी नई-नई है।।

विभक्त हो छोड़ के गया घर रहस्य जीवन नहीं पता कुछ।
उदर अगन कष्ट भूख बिलखे अशांत टुंडी नई-नई है।।

उसे मिलें तो नहीं दिखे कुछ नहीं मिलें तो करे लड़ाई।
डरें सभी जन गली-गली में प्रसिद्ध गुंडी नई-नई है।।

पुकारता मन चला गया यूँ जगा नहीं नेह राग उसका।
ठहर अगर वो कहीं विचारे विरुद्ध मुंडी नई-नई है।।

बदल लिया आज धर्म उसने चला शिवाले उमंग लेकर।
प्रचार होता त्रिपुंड मस्तक विशेष चुंडी नई-नई है।।

विरोध जिसने किया तुम्हारा वही विरोधी तड़प उठे जब।
भड़ास मन में अटक गई वो खुली न घुंडी नई-नई है।।

किसान रोये खड़ा वहाँ पर उपज हुई वो विनष्ट जब से।
नहीं मिला जब सुझाव संजय बिसार सुंडी नई-नई है।।

कठिन शब्दों के अर्थ :- 
हुंडी - महाजन द्वारा गुप्त भाषा में लिखित राशि।
मुंडी - महाजन के बही खातों में लिखी जाने वाली भाषा 'हिंदी मुंडी' जिसे मुंडी भी कहते हैं। 
कुंडी - द्वार बंद करके ताला लटकता है जहाँ वह  यंत्र 
टुंडी - नाभि 'धरण का डिगना' जिससे पेट एकदम खाली हो जाता है अर्थात दस्त लगना 
गुंडी - स्त्री गुंडी जैसे पुरुष गुंडा होता है
मुंडी - चेहरा 
चुंडी - चोटी ( गंजा होने के बाद छोड़ी जाने वाली शिखा) 
घुंडी - मन में दबी हुई रहस्य की बात 
सुंडी - उपज को खराब करने वाला कीड़ा

©संजय कौशिक 'विज्ञात'

Thursday, June 9, 2022

गीतिका : छिपाया गया है : संजय कौशिक 'विज्ञात'


गीतिका
मापनी - 122 122 122 122

सदा सत्य जो भी छिपाया गया है।
उसे आज काँधे सजाया गया है।।

मरी कल्पना जब चढ़ी फूल माला।
लगे व्यर्थ बोझा चढ़ाया गया है।।

हरा पेड़ फल का दिखे आज हँसता।
लगे एक उपवन खिलाया गया है।।

दिखे स्वप्न कोई हुआ आज खंडित।
लगा शेख चिल्ली जगाया गया है।।

चुभा शूल देखा किया प्रेम चुम्बन।
उसे फिर गले से लगाया गया है।।

कहे व्यंजना के सभी गीत अनुपम।
सुना आज वो जो सुनाया गया है।।

पड़ी एक ठोकर गिरा शोर करके।
अपाहिज हुआ पर चलाया गया है।।

कहो आप संजय युगल फिर खटकता।
लगे मर्म कोई बताया गया है।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

Monday, June 6, 2022

गीतिका : फिर विश्व गुरु बनें हम : संजय कौशिक विज्ञात


*गीतिका*
फिर विश्व गुरु बनें हम 
मापनी :-221 2121 1221 212

फिर विश्व गुरु बनें हम उपहार चाहिए।
गूँजे सभी दिशा अब जयकार चाहिए।।

प्रतिशत व शून्य खोज निराला हमें करे।
दें ज्ञान इस तरह नित अधिकार चाहिए।।

शिक्षा विधान से जन बनते महान हैं।
कोई मिले यहाँ पद आधार चाहिए।।

कुरुक्षेत्र ने सुनी वह गीता पुकारती।
लड़ युद्ध धर्म का बस हथियार चाहिए।।

घनघोर जिस तिमिर पर चलता प्रकाश है।
उस दीप का कभी फिर आभार चाहिए।।

उस श्याम सी घटा पर ज्यूँ मोर नाचता।
यूँ हर्षमय दिखे नित त्यौहार चाहिए।।

निरपेक्ष गुट बनाकर हम शांति दूत हैं।
कल्याण नीति से नित उद्धार चाहिए।।

वसुधैव पर कुटुम्ब व विज्ञात ढूँढते
होना यहीं कहीं पर अवतार चाहिए।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'