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Thursday, June 9, 2022

गीतिका : छिपाया गया है : संजय कौशिक 'विज्ञात'


गीतिका
मापनी - 122 122 122 122

सदा सत्य जो भी छिपाया गया है।
उसे आज काँधे सजाया गया है।।

मरी कल्पना जब चढ़ी फूल माला।
लगे व्यर्थ बोझा चढ़ाया गया है।।

हरा पेड़ फल का दिखे आज हँसता।
लगे एक उपवन खिलाया गया है।।

दिखे स्वप्न कोई हुआ आज खंडित।
लगा शेख चिल्ली जगाया गया है।।

चुभा शूल देखा किया प्रेम चुम्बन।
उसे फिर गले से लगाया गया है।।

कहे व्यंजना के सभी गीत अनुपम।
सुना आज वो जो सुनाया गया है।।

पड़ी एक ठोकर गिरा शोर करके।
अपाहिज हुआ पर चलाया गया है।।

कहो आप संजय युगल फिर खटकता।
लगे मर्म कोई बताया गया है।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

6 comments:

  1. सादर नमन गुरुदेव 🙏
    बहुत ही सुंदर गीतिका 👌
    कथन और भाव अनुपम 💐💐💐

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  2. सादर नमन सूंदर गीतिका 👌👌👌

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  3. बहुत सुन्दर गीतिका गुरुदेव सादर प्रणाम

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  4. बहुत सुंदर। नमन गुरु जी की लेखनी को।

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  5. वाह 👌👌 बहुत सुंदर, अनुपम सृजन
    नमन गुरु देव 🙏💐

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