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Friday, June 17, 2022

गीतिका लिखने की सरल विधि एव उदाहरण : संजय कौशिक 'विज्ञात'

गीतिका लिखने की सरल विधि एव उदाहरण 
संजय कौशिक 'विज्ञात'


गीतिका से परिचय :- 
निराला जी की गीतिका को सप्त स्वरों के समागम से आयोजित एक विशेष समारोह कहा जाता है। गीतिका हिन्दी साहित्य के लिए एक बहुत सुन्दर उपहार है। गीतिका में चित्रो की रेखाएँ, पुष्ट वरणों का विकास किसी सूर्य से कम नहीं है। गीतिका का दार्शनिक पक्ष अत्यंत  गम्भीर और व्यंजना मूर्तिमती होती है। आलम्बन के प्रतीक, उन्हीं के लिए अस्पष्ट होते होंगे जिन्होंने यह नहीं समझा है कि रहस्यमयी अनुभूति, युग के अनुसार अपने लिए विभिन्न आधार का चयन किया करती है। गीतिका विधा में केवल कोमलता ही कवित्व का मापदण्ड नहीं होता। गीतिका ओज, सौंदर्य भावना और कोमल-कल्पना सहित शक्ति-साधना की उज्ज्वल परिचायक है।

गीतिका को शिल्पीय दृष्टिकोण से कैसे देखते हैं ??

गीतिका को भी हिन्दी छंद विधा (वार्णिक तथा मात्रिक) की तरह ही लिखा जाता है जिसमें मात्रा पतन मान्य नहीं होती। 1 गुरु को 2 लघु के रूप में स्वीकार कर लिया जाता है वह नव स्वरूप मूल छंद का वाचिक स्वरूप कहलाता है। जिस मापनी में लघु का जो स्थान जहाँ सुनिश्चित है उसे वहीं रखना अनिवार्य है।

गीतिका विधा सरल भाषा में समझते हैं गीतिका क्या है? 
गीतिका दो-दो पंक्ति के युग्म पर आधारित बहुत ही सुंदर तथा आकर्षक विधा है। गीतिका के सृजन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण इसके शिल्पीय दृष्टिकोण के विषय में पहले ही बता चुका हूँ। फिर भी पाठक वर्ग सरलता से समझ सके इस उद्देश्य से गीतिका लेखन में प्रयुक्त होने वाली मापनी को उदाहरण स्वरूप लेकर युग्म सरलता से कैसे लिखना होगा ये भी समझते हैं। गीतिका का सबसे पहले हमें स्थाई युग्म लिखना होता है। स्थाई युग्म जिसकी दोनों पंक्तियों में तुकांत समान लिखने होते हैं तुकांत पर भी चर्चा करेंगे 
सर्व प्रथम मापनी देखते हैं 
12122 12122 12122 12122
मापनी को समझें 
इस मापनी में गण व्यवस्था पर चर्चा न करके सीधे इसके वर्णों को समझते हैं 
इस मापनी में कुल 20 वर्ण हैं 
वर्णों की संख्या बता रही है कि बात को जिस आकार में लिखना है तो उसके लिए एक अदृश्य यति की आवश्यकता पड़ेगी जो हमें सभी पंक्तियों में निभानी है। 
यह अदृश्य यति लगभग कुल वर्णों की संख्या के आधे में ले 10-10 वर्ण में या 12-8 या 13 -7 वर्णों की व्यवस्था करे। यह सृजनकार पर निर्भर करता है। पर ध्यान रखने की महत्वपूर्ण बात यह है कि जो प्रयोग स्थाई युग्म में कर लिया वही प्रयोग प्रत्येक युग्म में अनिवार्य रूप से करना होगा। अभी हम 10-10 के साधारण स्वरूप को समझते हैं। 20 वर्ण हुए तो 10 पर अदृश्य यति 16 वर्ण हुए तो 8 वर्ण पर अदृश्य यति अब आप इस विधि से अन्य वर्ण संख्या जो भी आपके समक्ष आएगी उसको देख कर साधारण वाले स्वरूप आधे-आधे को सरलता बाँट कर लेखन कार्य प्रारम्भ कर पाएंगे। 
अब बात करते हैं *तुकांत के विषय में*

12122 12122 12122 12122
मापनी है हमारे पास अंतिम 5 वर्णों के स्वरूप को देख कर समझते हैं तुकांत कैसे आएंगे इस मापनी में 
12122 
निशांत *आए*
विरुद्ध *पाए*
आए, पाए के तुकांत को देखें तो इससे पूर्व एक जगण अनिवार्य रूप से लिखा गया है। युग्म के कथन में नव्यता रहेगी जगण इस और संकेत करता है। यदि आप मात्रिक छंद के अभ्यास करने वाले विद्यार्थी रहे हैं तो मात्रिक छंदों में जगण प्रयोग वर्जित अनेक बार सुना होगा और जगण प्रतिबंध के कारण जिन शब्दों को कभी लिखा ही नहीं वे रचना में नव्यता का आभास देंगे यहाँ आप जगण के कुछ तुकांत ढूँढ सकते हैं हम जब इस मापनी में जगण के तुकांत ढूँढेंगे तब हमें एक समान्त के प्रयोग की भी आवश्यकता रहेगी। आइए समझते हैं इसे भी ... 
जैसे मैंने आप सरलता से समझ सकें इस उद्देश्य से जगण तुकांत संचय करने का एक प्रयास किया है ...... 

सुनीति - उत्तम नीति
अपीति - विनाश, प्रवेश, मृत्यु, प्रलय, विलय
अभीति - निर्भीक
अशीति - संख्या 80
प्रगीति - गीति काव्य, एक प्रकार का छंद 
प्रतीति - प्रतीत होने की क्रिया, जानकारी, ज्ञान
विनीति - विनय
प्रणीति 
समीति - (समिति का वर्तनी रूप) समाज ,सभा
अनीति - अनैतिक, अन्याय 
कुरीति - कुप्रथा 
विगीति - निंदा , झिड़की, परस्पर विरोधी

इन सभी तुकांत के साथ अब हम समान्त के प्रयोग पर भी चर्चा कर लेते हैं यह प्रत्येक तुकांत के पश्चात अनिवार्य रूप से स्थापित करना पड़ेगा। 
कुरीति *देखी*
अनीति *देखी*

चयनित शब्द में *कुरीति तथा अनीति तुकांत हैं* इनके पश्चात प्रयोग होने वाला शब्द *देखी समान्त के रूप में प्रयोग किया गया है* इसके स्थान पर अन्य कुछ और शब्द भी समान्त के रूप में प्रयोग किया जा सकता है जैसे *उसकी* शब्द को दोनों पंक्ति में प्रयोग करके देखें और ये भी समझें कि दोनों में प्रयोग सार्थक हो .......
कुरीति *उसकी* 
अनीति *उसकी*
जँचे तो ये भी समान्त बनाया जा सकता है 
यहाँ स्त्रीलिंग तुकांत है तो समान्त भी स्त्रीलिंग में ही रहेगा 
समान्त को पुल्लिंग करेंगे तो कथन में दोष दिखाई देगा
जैसे 
*कुरीति देखा* ❌
*अनीति देखा* ❌
*कुरीति उसका* ❌
*अनीति उसका* ❌
समान्त के प्रयोग के साथ साथ *हमने स्त्रीलिंग और पुल्लिंग के अंतर को भी सरलता से समझा है।*

अब प्रश्न है स्थाई युग्म की दोनों पंक्तियों में तुकांत अनिवार्य रूप से प्रयोग होंगे ऐसे में कौन से दो तुकांत लिए जाने चाहिए।

2 तुकांत नीति के हैं वे दोनों एक साथ स्थाई युग्म में आये तो ईति के तुकांत लेने पड़ेंगे और नी का प्रयोग आवश्यक हो जाएगा (नी की बंदिश हो जाएगी)
इसलिए ये दोनों तो नहीं आएंगे। 
प्रथम पंक्ति लिखते हैं 

प्रथम पंक्ति :- 
*समाज दिव्यांग सा खड़ा है विधान की ये कुरीति देखी।*

स्थाई युग्म लेखन में कथन तथा भावों के अनुसार पहली पंक्ति यदि संतुष्ट करती है तो दूसरी पंक्ति की तरफ बढ़ा जाए।
पर अब प्रश्न ये है कि युग्म की दूसरी पंक्ति में अपनी बात को सरलता से कहें तो कौन से तुकांत को लें 
यहाँ एक बात का और ध्यान रखना होगा हम जिस भी तुकांत का प्रयोग करें वह पहली पंक्ति में रमा हुआ गुँथा हुआ होना चाहिए भावों के अनुसार एक आकर्षक युग्म दिखाई दे गुँथी हुई वेणी के समान।

ऊपर लिखित बातों के मंथन के पश्चात मेरे मन ने मुझे संकेत दिया कि प्रथम पंक्ति कुरीति पर है तो अगली बात नीति पर हो तो मेरा स्थाई आकर्षक बन सकता है। इसके चयन का उत्तर भी सम्भवतया आगे मिल जाएगा। 
नीति के मेरे पास दो तुकांत हैं सुनीति तथा अनीति 
इन दोनों में से मुझे किसी एक तुकांत का यहाँ प्रयोग करना है।
तो आइए सबसे पहले दोनों तुकांत को लेकर अपनी पंक्ति कहने का प्रयास करता हूँ फिर पहली पंक्ति के साथ भावात्मक तथा कथनात्मक रूप से एकीकरण कर लेगी उसी पंक्ति को स्थाई युग्म में स्थापित करने का निर्णय कर लेंगे।

दूसरी पंक्ति पहले तुकांत के साथ 
*वहीं प्रशासन खड़ा विमुख हो यही अनैतिक अनीति देखी।।*

दूसरी पंक्ति दूसरे विकल्प वाले तुकांत के साथ 
*सदैव चिंतित विलुप्त चिंतन सुधारती कब सुनीति देखी।।*

अब स्थाई युग्म के लिए मेरे द्वारा किये गए प्रयास में तुकांत की व्यवस्था देखते हुए अपनी दो पंक्ति के उत्तम तथा गुँथे हुए भाव जो मुझे लिखने थे वह आप सभी के समक्ष प्रस्तुत है :- 
👇👇👇
प्रथम पंक्ति👇
समाज दिव्यांग सा खड़ा है विधान की ये कुरीति देखी।
द्वितीय पंक्ति 👇
1
वहीं प्रशासन खड़ा विमुख हो यही अनैतिक अनीति देखी।।
2
सदैव चिंतित विलुप्त चिंतन सुधारती कब सुनीति देखी।।

अब मंथन करने का विषय है यह है कि मेरे पास कुरीति तुकांत के साथ अगली पंक्ति के तुकांत को लिखने के दो विकल्प तैयार हैं 
मुझे एक का चयन करना है। तो मैं सीधे चयन करके आगे बात करता हूँ। 

*समाज दिव्यांग सा खड़ा है विधान की ये कुरीति देखी।*
*वहीं प्रशासन खड़ा विमुख हो यही अनैतिक अनीति देखी।।*

मेरा चयन आप ने देखा। मैं मेरे पहले विकल्प के साथ आया हूँ। आत्मा की प्रथम आवाज परमात्मा की होती है ऐसा भी समझ सकते हैं। पर सच जानते हैं सुनीति तुकांत को मैं विरोध में लिख रहा हूँ चिंतनीय विषय दिखा रहा हूँ पर उसमें विरोध के भाव पंक्ति का अंत होते होते स्पष्ट हो जाते हैं 
युग्म की कोमलता नष्ट सी प्रतीत हो रही है सुनीति वाली पंक्ति के भावों से 
कुरीति के साथ अनीति क्यों अधिक सटीक लग रही है इसका कारण भी मंथन करते हैं 
1 दोनों खड़े हैं और दोनों मौन हैं कुछ नही कर रहे। और यही कथन की गहनता से भी है।
2 भेद मात्र इतना है कि एक दुर्बल है तो दूसरा सबल है परस्पर विरोधाभास नहीं है। 
3 कुरीतियाँ ही अनीति की जन्मदात्री हैं। ऐसा कहें तो भी इस युग्म के दोनों तुकांत के चयन को उत्तम कहा जा सकता है। 
4 या ये कहें कि अनीति से ही कुरीतियाँ उपजती हैं और उन्हें बल मिलता है। ऐसा कहें तो भी दोनों पंक्ति अपनी बात को स्पष्ट करती प्रतीत होती हैं । 

विश्वास है अब युग्म लिखने में सभी को सरलता  रहेगी फिर भी यदि कोई चुनौती दिखाई देती है तो बिना किसी संदेह के अपनी जिज्ञासा व्यक्त करें ....

संजय कौशिक 'विज्ञात'

10 comments:

  1. उपयोगी जानकारी का खजाना है ये पोस्ट
    नमन गुरुदेव 🙏💐

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  2. नमन गुरुदेव 🙏
    बहुत ही ज्ञानवर्धक जानकारी 👌👌👌
    आप हमेशा ही ऐसी पोस्ट लाते हैं जिसे पढ़कर लेखन को एक नई दिशा मिलती है। गीतिका जैसी कठिन विधा को बहुत ही सरल तरीके से समझाया है आपने 💐💐💐💐
    हार्दिक आभार 🙏

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  3. श्र्लाघ्य !! उपयोगी ज्ञान चक्षु खोलने योग्य जानकारी हर नवांकुर के लिए एक साध्य परिपाटी।
    सादर साधुवाद आपके परिश्रम और लगन को।
    नमन गुरुदेव।🙏

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  4. उपयोगी जानकारी आदरणीय।

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  5. आ0 गुरुदेव सादर अभिवादन
    अत्यंत महत्वपूर्ण जानकारी

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  6. बढ़िया जानकारी👌
    नमन गुरुदेव 🙏

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  7. ज्ञानवर्धक जानकारी। नमन गुरु जी को ।

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  8. प्रणाम गुरुदेव जी 🙏🙏
    ज्ञानवर्धक लेख 👌👌🙏🙏

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  9. बहुत उत्तम व सार्थक जानकारी ।आपको नमन गुरुदेव ।

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