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Wednesday, February 5, 2020

नवगीत ● युक्ति मार्ग● संजय कौशिक 'विज्ञात'


नवगीत ... संजय कौशिक 'विज्ञात'
मार्ग युक्ति के कम जीवन में,
नुक्ता चीनी ज्यादा है। 
भाव विभोर सिंधु के मन में,
लहरों से कुछ वादा है।

1
नदिया बंध तोड़ती पल में, 
वेग लहर का सँभले कब।
थोड़ा सा जो मोड़ देख ले, 
शोर मचा देती है तब।
मधुर मोहिनी बल खाती सी,
कभी विनाशी चाल गजब।
जब से अनुपम शील स्वभावी,
रखे सिंधु मर्यादा है।

2
मेघ शराबी होकर बरसे,
झरने सारे लूट चुके।
मैले थे तालाब बावड़ी,
मैल हृदय के चूट चुके।
समझा समझा लोग कुओं को,
कब के सारे टूट चुके।
फूट चुके जब घाव रिसे तो,
देखा वो आमादा है।

3
तृप्त वेदना झंकृत वीणा, 
दृश्य टूटते तारों का।
कार्य नहीं ये गैर किसी का, 
है अपने मक्कारों का।
निर्भरता पर वार सदा ही, 
होता अपने प्यारों का।
लुटती रही महत्वाकांक्षा,
अच्छा जीवन सादा है।

संजय कौशिक 'विज्ञात' 

@vigyatkikalam

17 comments:

  1. सुन्दर भावों से सजा अनुपम नवगीत👌👌👌👌👌

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  2. बहुत सुंदर नवगीत 👌मानवीकरण का बहुत अच्छा प्रयोग...बहुत बहुत बधाई शानदार सृजन की 💐💐💐

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  3. अति सुंदर छंद मे आपकी ये रचना मैने बोलते हुवे पढ़ा है

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  4. बहुत ही सुन्दर नवगीत. मानवीकरण शानदार प्रयोग
    सादर

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  5. बहुत सुंदर नवगीत आदरणीय

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  6. बहुत सुंदर नव गीत , अभिराम अनुपम।

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  7. आदरणीय विज्ञात जी !भाव पूर्ण आपकी लेखनी के भावपूर्ण अभिव्यक्ति प्रत्येक पाठक को पाथेय हों रचना के लिए मंगल कामना।

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