नवगीत
मधुमास
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मापनी 14/14
गीत अनुपम राग सरगम,
गूँजते मधुमास में फिर।
देख भँवरा,कोकिला को,
घूमता विश्वास में फिर।
1
रंग वासंती छटा के,
मुग्ध तन-मन कर रहे थे।
फिर विशेषण ढूँढ़ कर कुछ,
गुण अलंकृत भर रहे थे।
ज्यों समाहित संधि करती,
यूँ चमत्कृत वर रहे थे।
युगल संस्कारी मनोहर,
दृश्य बैठे पास में फिर।
गीत अनुपम राग सरगम,
गूँजते मधुमास में फिर।
2
मंजरी उस आम की जब,
फूट कर निकली वहाँ से।
वो महक कुछ बावली सी,
बाग में बरसी कहाँ से।
कौन अटकल से बचाए,
दूर थी थोड़ी जहाँ से।
वाक्य माँगे शब्द जैसे,
वर्ण बढ़ते आस में फिर।
गीत अनुपम राग सरगम,
गूँजते मधुमास में फिर।
3
ये मधुर संसार कितना,
देख मधु मक्खी बताए।
वो शहद को ढूँढ़ती है,
जो कसैले से बचाए।
मास का संदेश इतना,
पाठ मीठे का पढ़ाए।
सीख इससे ले बढ़ो कुछ,
हो लगन सुखवास में फिर।
गीत अनुपम राग सरगम,
गूँजते मधुमास में फिर।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मधुमास
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मापनी 14/14
गीत अनुपम राग सरगम,
गूँजते मधुमास में फिर।
देख भँवरा,कोकिला को,
घूमता विश्वास में फिर।
1
रंग वासंती छटा के,
मुग्ध तन-मन कर रहे थे।
फिर विशेषण ढूँढ़ कर कुछ,
गुण अलंकृत भर रहे थे।
ज्यों समाहित संधि करती,
यूँ चमत्कृत वर रहे थे।
युगल संस्कारी मनोहर,
दृश्य बैठे पास में फिर।
गीत अनुपम राग सरगम,
गूँजते मधुमास में फिर।
2
मंजरी उस आम की जब,
फूट कर निकली वहाँ से।
वो महक कुछ बावली सी,
बाग में बरसी कहाँ से।
कौन अटकल से बचाए,
दूर थी थोड़ी जहाँ से।
वाक्य माँगे शब्द जैसे,
वर्ण बढ़ते आस में फिर।
गीत अनुपम राग सरगम,
गूँजते मधुमास में फिर।
3
ये मधुर संसार कितना,
देख मधु मक्खी बताए।
वो शहद को ढूँढ़ती है,
जो कसैले से बचाए।
मास का संदेश इतना,
पाठ मीठे का पढ़ाए।
सीख इससे ले बढ़ो कुछ,
हो लगन सुखवास में फिर।
गीत अनुपम राग सरगम,
गूँजते मधुमास में फिर।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
@vigyatkikalam
मधुमास बहुत ही सुंदर नवगीत लगा जिसमें प्राकृतिक बिम्ब बहुत ही खूबसूरती से प्रयोग किये गए हैं जिसके कारण पूरा दृश्य जीवंत हो उठता है 👌👌👌 बहुत बहुत बधाई आदरणीय शानदार सृजन की 💐💐💐💐
ReplyDeleteआत्मीय आभार विदुषी जी
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteअनुपम नवगीत सृजन आ.सर जी शुभकामनाएं 🙏🏻🙏🏻
ReplyDeleteआत्मीय आभार सविता जी
Deleteवाह बेहतरीन नवगीत, अद्भुत प्रस्तुति 👌👌
ReplyDeleteआत्मीय आभार अनुराधा जी
Deleteअनुपम कृति। बहुत सुंदर संदेश देती रचना।
ReplyDeleteआत्मीय आभार स्निग्धा जी
Deleteवाह वाह बहुत सुंदर बहुत बढ़िया नवगीत क्या कहने आदरणीय
ReplyDeleteआत्मीय आभार पूनम जी
Deleteबहुत सुन्दर ंंनवगीत
ReplyDeleteआत्मीय आभार शीला जी
Deleteअनुपम नवगीत आदरणीय
ReplyDeleteप्रकृति का सुंदर चित्रण
आत्मीय आभार राधा जी
Deleteमधुमास का चरित्र वर्णन आपके नवगीत में रोम-रोम को झंकृत करता, प्रणय मिलन मे श्वास-प्रश्वास का स्पंदन स्वयं को ही उत्तेजित करता हो। बहुत उम्दा नवगीत। हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteमधुमास का बहुत ही सुन्दर वर्णन
ReplyDeleteवाक्य माँगे शब्द जैसे,
वर्ण बढ़ते आस में फिर।
गीत अनुपम राग सरगम,
गूँजते मधुमास में फिर।
बेहतरीन सृजन
आत्मीय आभार चमेली जी
Deleteबहुत सुंदर सरस नवगीत।
ReplyDeleteवसंत में आम्र ही नहीं बौराते,
कवि की लेखनी भी बौरा जाती है ।
अनुपम, अभिनव अभिराम अभिव्यक्ति।
आत्मीय आभार कुसुम जी
Deleteबहुत सुन्दर... बहुत ही सुन्दर..
ReplyDeleteअति मनोहारी बेहतरीन शब्द सँजोजन बधाई हो।
ReplyDeleteआत्मीय आभार अनिता मिश्रा जी
Deleteअति उत्तम नवगीत
ReplyDeleteआत्मीय आभार अनुपमा जी
Deleteअति सुंदर एवं उत्कृष्ट रचना
ReplyDeleteआत्मीय आभार अतिया जी
Deleteप्रकृति का मनोहारी चित्रण 👏👏👏👏👏👏बहुत सुन्दर नवगीत बन पड़ा है👌👌👌👌
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteआत्मीय आभार आशा शैली जी
Deleteवाह.... बेहतरीन नवगीत
ReplyDeleteआत्मीय आभार मसखरे सहाब
Deleteविज्ञात जी की तूलिका से मधुमास के दिव्य आनन्द की अनुभूति।
ReplyDeleteआत्मीय आभार प्रधान जी
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