नवगीत
लिखूँ तो क्या लिखूँ ?
संजय कौशिक 'विज्ञात'
संसद की तस्वीर लिखूँ ,
या प्रजातन्त्र की पीर लिखूँ।
जनता आज अधीर लिखूँ,
या अन्तः चीरम चीर लिखूँ।
भूख सताए भूखे मरते,
भीख मांग कर कुछ खाते हैं।
विवश हुए ये देख विवशता
कहाँ कष्ट औषधि पाते हैं।
संसद से संबंध बताया,
बस मत अपना अपनाते हैं।
चिंतन चिंतित नहीं कहीं भी,
बिना भाव के घबराते हैं।
दूध फटे की खीर लिखूँ ,
या निर्धनता प्राचीर लिखूँ।
चीख सुनी कब उस पंडित की,
संसद भवन चैन से सोता।
रोक पलायन सकी न संसद,
घर-दर अपनी बारी खोता।
बिना जुती पर्वत की खेती
शोर मचाती जो ये बोता।
लोकतंत्र ने छाप लगाई,
बेबस स्वयं सदा ही रोता।
केसर का कश्मीर लिखूँ ,
या वो खूनी तासीर लिखूँ।
कहाँ सुरक्षित बहन बेटियाँ,
लाचारी से हैं नित भक्षित।
संसद शिक्षित जहाँ विवेकी,
पढ़ा लिखा पारंगत दीक्षित।
रही उपेक्षित सदियों से यह
चित्र यही होता परिलक्षित।
एक सुगंधित बस सामग्री,
नहीं कहीं से भी जो रक्षित।
बिखरे से मंजीर लिखूँ ,
या मैला निर्धन चीर लिखूँ।
राज्य धर्म भाषा की सीमा,
सबको किसने बाँट दिया है।
अपने अपनों से जुड़ जाते,
किसने धागा काट दिया है।
थूका किसने किसके मुँह पर,
किसने उसको चाट दिया है।
कौन किसे देता सिंहासन,
किसने किसको टाट दिया है।
धर्मों को ही धीर लिखूँ ,
या ठेकेदारी वीर लिखूँ।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
लिखूँ तो क्या लिखूँ ?
ReplyDeleteवीर रस में डूबी सत्य का दर्पण दिखाती शानदार रचना 👌👌👌 इतिहास और वर्तमान सच में ऐसा है कि कभी न कभी कलम यह प्रश्न पूछती जरूर है ....बहुत बहुत बधाई क्या खूब लिखा 💐💐💐 सादर नमन आदरणीय 🙏🙏🙏
बहुत ही सुन्दर एक कवि का मन कहां कहां चलता है बहुत बढ़िया आदरणीय
ReplyDeleteबहुत सुंदर गीत लिखूं तो क्या लिखूं
ReplyDeleteअद्भुत असाधारण सामायिक चिंतन ।
ReplyDeleteसार्थक काव्य वही है जो समय काल की विसंगतियों को उकेरे । बहुत सुंदर ।
सार्थक रचना बहुत ही सुन्दर👏👏👏🙏🙏
ReplyDeleteवाह बहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना आ0
ReplyDeleteलिख दिया आपने जो भी लिखना था
ReplyDeleteअब पढ़ने वाले लिखेंगे इसके बारे में ।
बहुत ही शानदार रचना ।।
बहुत खूब जी वाह वाह
ReplyDeleteबहुत खूब सर बधाई हो
ReplyDeleteदेश की सच्ची तस्वीर दिखाती अनुपम रचना।जिसे पढ़कर निश्चित रूप से हृदय द्रवित हो उठता है आदरणीय! शानदार सृजन 👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌
ReplyDeleteबहुत सुंदर और सार्थक रचना 👌👌💐💐
ReplyDeleteवस्तुस्थिति पर कटाक्ष भी रचनाधर्मिता
ReplyDeleteविषय को बादस्तूर निभाया है