पञ्च-चामर छंद
यह छंद वार्णिक छंद है, चार चरण के इस छंद में 8 लघु 8 गुरु क्रमानुसार (लघु गुरु) एक-एक करके कुल 16 वर्ण होते हैं कम से कम दो चरणों के युग्म में चरणान्त समनान्त रहेगा।
मात्रा भार- 1212121212121212
का अनुकरण करके सृजन किया जा सकता है, पुनः दोहराता हूँ कि इस छंद में मात्र वर्ण विन्यास (लघु गुरु) सावधानी पूर्वक रखना होगा क्योंकि यह वार्णिक छंद है।
जगण रगण जगण रगण जगण गुरु (1) गण विधान से इसे ऐसे समझा जाता है। शौर्य भाव भरी रचना के लिए कवि इस छंद का प्रयोग करते हैं । इस छंद में रावण द्वारा विरचित ताण्डव स्त्रोत बहुत प्रसिद्ध है देखिये:-
जटाटवीगलज्जल प्रवाहपावितस्थले।
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्॥
डमड्डमड्डमड्डमनिनादवड्डमर्वयं।
चकार चंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम॥
इसी शिल्प विधान का अनुकरण करती हुई एक रचना :-
शराब के विनाश से .... संजय कौशिक विज्ञात
शराब के विनाश से समाज को बचा चलो।
उठो प्रबुद्ध शुद्ध हो विचार से नहीं टलो॥
नशा बुरा समाज में विपक्ष में मिलो खड़े।
निगाह लक्ष्य भेद दे विराट भीड़ से अड़े॥
जड़ें उखाड़ दो अभी समाज स्वस्थ हो सके।
शराब बंद हो सके अशुद्ध बोल से पके॥
विभाग साथ दे तभी प्रयास जो हमीं करें।
प्रधान भी विकास की उमंग ये सभी भरें॥
पिता करे न जुल्म यूँ शराब के प्रभाव से।
सहे न जुल्म बेटियाँ विशेष हों सुझाव से॥
नशा मिटे प्रहार से विरुद्ध युद्ध जो बनें।
विचार धार के यही समृद्ध हों सभी जनें॥
पिटें न नारियाँ कभी शराब का विनाश हो।
उतार दो वहीं नशा न द्वेष का प्रकाश हो॥
पढ़ी न बेटियाँ जहाँ शराब के प्रताप से।
प्रकोप झेलते वहाँ लगे महान पाप से॥
पुकार जिन्दगी करे विलास भाव छोड़ दो।
दिखें शराब बोतलें तुरन्त आप फोड़ दो॥
विवेकशीलता दिखे प्रहार रोग पे करो।
समाज ये नशे बिना बना चलो नहीं डरो॥
संजय कौशिक 'विज्ञात'
पञ्च-चामर छंद की विस्तार से जानकारी देने के लिए बहुत बहुत आभार ...हम जैसे नवांकुरों के लिए बहुत ही अमूल्य है यह जानकारी 🙏🙏🙏रचना बहुत ही सुंदर और सार्थक संदेश दे रही है। समाज में बढ़ता शराब का प्रयोग सिर्फ परिवार ही नही समाज के लिए भी घातक है और इसका विनाश होना आवश्यक है। खूबसूरत शब्दचयन रचना में चार चाँद लगा रहें हैं ....अप्रतिम सृजन की बहुत बहुत बधाई आदरणीय 💐💐💐💐
ReplyDeleteआपने तो लिखा है पञ्चचामर छंद
Deleteआत्मीय आभार आपका नीतू जी
बहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteस्निग्धा जी आप भी बहुत सुंदर लिखती हैं पञ्चचामर
Deleteअति सुंदर छन्द रचना बधाई हों।
Deleteअति उत्तम
ReplyDeleteआ0 एक गणेश वंदना चामर छन्द में
गणेश वंदना
आधार चामर छन्द 23 मात्रा,15 वर्ण
गुरू लघु×7+गुरू
**
रिद्धि सिद्धि साथ ले,गणेश जी पधारिये,
ग्रंथ हाथ में धरे ,विधान को विचारिये।
देव हो विराजमान ,आसनी बिछी हुई,
थाल है सजा हुआ कि भोग तो लगाइये।
प्रार्थना कृपा निधान, कष्ट का निदान हो,
भक्ति भाव हो भरा कि ज्ञान ही प्रधान हो ।
मूल तत्व हो यही समाज में समानता,
हे दयानिधे! दया ,सुकर्म का बखान हो ।
ज्ञान दीजिये प्रभू अहं न शेष हो हिये
त्याग प्रेम रूप रत्न कर्म में भरा रहे।
नाम आपका सदा विवेक से जपा करें,
आपका कृपालु हस्त शीश पे सदा रहे।
अनिता सुधीर
अनिता जी बेहद सुंदर प्रस्तुति
Deleteवाह क्या कहने, बहुत ही सुंदर मुक्तक हुए, लाजवाब सृजन की बधाई और शुभकामनाएं आपकी कलम की सुगंध से नित नए छंद रूपी सुगंध उठती रहे
Deleteतुरन्त आप फोड़ दो शराब छोड़ दो बढ़िया
ReplyDeleteफुड़वा दीजिये राजकिशोर साहेब सच में बहुत बुरा रोग है ये
Deleteआत्मीय आभार आपका
अप्रतिम... बहुत सुन्दर...वाह...
ReplyDeleteआभार... आभार... आभार...
Deleteवाह अद्भुत ।
ReplyDeleteसीखने की इच्छा जागृत हो गई है आदरणीय।,🙏🙏🙏
आपके लेखम कौशल से ही प्रेरणा पाते हैं सुधा जी नमन आपको
Deleteआत्मीय आभार आपका
सामाजिक संदेश देती हुई एक बेहतरीन रचना है
ReplyDeleteआभार .... आत्मीय आभार अटल राम चतुर्वेदी साहेब
Deleteअद्भुत सृजन आदरणीय 👏👏👏👏👏👏आज आपकी इस पोस्ट के माध्यम से एक नयी विधा की जानकारी मिली।आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय।
ReplyDeleteसर्व प्रथम हार्दिक स्वागत है आपका
Deleteआत्मीय आभार सराहना पाकर सृजन धन्य हुआ
बहुत ही सुन्दर आदरणीय आपकी रचना एक सुन्दर संदेश देती हुई बहुत बढ़िया
ReplyDeleteआभार आपका
Delete
ReplyDeleteअनुपम सृजन आदरणीय
आभार आपका
Deleteवाह!! कमाल की रचना आदरणीय
ReplyDeleteनमन आपको अनंत साहेब
Deleteआत्मीय आभार
बहुत खूब सर जी।अति उत्तम रचना
ReplyDeleteबिनायक साहेब प्रेरणा पुंज हैं आप सराहना पाकर सृजन धन्य हुआ
Deleteआत्मीय आभार आपका
प्ररेणा दाई सुंदर सृजन।
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका
Deleteआ.सर जी बेहतरीन रचना ����
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका सविता जी
Deleteबहुत बढ़िया रचना आदरणीय संजय कौशिक सर 'शराब के विनाश से'
ReplyDeleteशराबियों ने मचाया हुड़दंग
शराब बेचारी हुई बदनाम,
वो हलाहल सम नहीं है
इमानदारी उसकी फर्ज नाम।
कौन बहकता नहीं बिन पियें
यह बता, शराब बस बदनाम,
बुरे सपनों से लगता है मानना
नशेड़ी है बिन पियें सुबह श्याम।
अजीब अजीब नशे पाल रखें है
लोग बदहवास पर नहीं बदनाम,
बदसलूकी की चरम सीमा गांठी
लोगोंका जीना करदिया है हराम।
फिर भी देखो मात्र शराब बदनाम।।
प्रकाश कांबले
३१-१२-२०१९
बहुत सुंदर सृजन बधाई आपको
Deleteअद्भुत प्रस्तुति आदरणीय 👌👌
ReplyDeleteआप से प्रेरणा प्राप्त कर बढ़ रहे हैं
Deleteमार्गदर्शन अपेक्षित रहेगा अनुराधा जी
आत्मीय आभार आपका
Bahut Mast Kavita hai yah aapki main aapka fan Nilesh Bhardwaj mob. 9462026800
ReplyDeleteपहचाना बिल्कुल
Deleteअनुज खुश रहो
शानदार स्रजन
ReplyDeleteआभार
Deleteमानव निर्मित बुराई की पड़ताल करते हुए समाधान तक पहुंचने की कोशिश में जागरण की एक बेहतरीन रचना, इस हेतु आपको बहुत-बहुत बधाई
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका बघेल सहाब, सुंदर टिप्पणी के लिये पुनः आत्मीय आभार
Deleteउत्तम जानकारी एवं छन्द-रचना। जय जय
ReplyDeleteसतविंदर राणा जी आत्मीय आभार
Deleteआदरणीय कौशिक जी , बहुत ही सुंदर रचना है ,पंचचामर छंद के शिल्प का ज्ञान कराने के लिए आपका बहुत धन्यवाद । यह हमारा सौभाग्य है कि आप से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है।
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका भारत भूषण वर्मा भूषण जी
Delete----भारत भूषण वर्मा
ReplyDeleteइस छंद की स्पष्ट जानकारी सहित, बहुत ही बेहतरीन रचना... बधाई हो सर जी💐💐💐
ReplyDeleteसादर नमन एवं आत्मीय आभार आपका
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