लावणी छंद
◆◆सैनिक की अभिलाषा◆◆
●●संजय कौशिक 'विज्ञात'●●
लावणी छंद एक सम मात्रिक छंद है। इस छंद में भी कुकुभ और ताटंक छंद की तरह 30 मात्राएं होती हैं। 16,14 पर यति के साथ कुल चार चरण होते हैं । और क्रमागत दो-दो चरण तुकांत समतुकांत रहते हैं। इसके चरणान्त में वर्णिक मात्रा भार का कोई विशेष सुझाव नहीं है।बस अंत गाल नहीं हो सकता है। रचना के अनेक बन्ध के अंत में 1 गुरु 2 लघु 2 गुरु आ सकते हैं यही लावणी है
30 मात्रा ,16,14 पर यति,अंत वाचिक {गा} द्वारा करें
चौपाई (16 मात्रा)+ 14 मात्रा
आइये देखते हैं लावणी की एक रचना .....
■◆◆सैनिक की अभिलाषा◆◆■
●●●संजय कौशिक 'विज्ञात'●●●
आज हमारे सैनिक हमसे, पूछ रहे वो बातें सुन
सीमा पर रक्षक हैं जब हम, तुम गाते हो कैसी धुन
घोटालों पर घोटाले हैं, जिसे ला रहे चुनकर तुम
कैसी जिम्मेवारी है ये, बैठे हो फिर क्यों गुमसुम
एक शीश के बदले सत्तर, या फिर तुम दो सौ चाहो
एक बात पर अड़े हुए हैं, उन नेताओं का क्या हो
सैनिक रक्षक बने हुए हैं, सारी जनता है भक्षक
लोह चने चबवाते अरि से, लोग पालते जब तक्षक
खड़े समर में योद्धा पल-पल, पीठ नहीं दिखलाते हैं
यही हुतात्मा पूछ रही हैं, लाज सुनें जब पाते हैं
मान बहन बेटी का मिल के, तुम ऐसे लुटवाते हो
और दृष्टि उठ भी कब पाती, सीना ठोक दिखाते हो
देश भक्ति हम ज्वाला पाले, सँभले ज्योत नहीं छोटी
धिक्कार तुम्हें भारत वासी, काट रहे हो नित चोटी
वीर षड्यंत्र निष्फल करते, सीमा पर घुस पैठ करे
जनता हँसकर तब क्या करती, जातपात की खैर करे
विधिवत रक्षाकारी सैनिक, पुत्र हिमालय बने खड़े
लोग भारती के बेटे हैं, दिखलादे व प्रमाण जड़े
सीमा को हम देख रहे हैं, देखो अंदर आप सभी
सुंदर हो परिवेश धरा का, स्वच्छ बनालो देश अभी
बहन बेटियां रहें सुरक्षित, यत्न करो सब मिल ऐसे
गंगा जैसा पावन भारत, बना चलो तुम फिर वैसे
आज कलम सैनिक बन पूछे, कल को सैनिक आएगा
अगर नहीं जो तुम सब सुधरे, सच में वो पछतायेगा
देश प्रेम का सैनिक पक्का, सैनिक जनता को प्यारा
बने विश्व गुरु भारत अपना, दिखे तिरंगा ये न्यारा
हर सैनिक के हृदय बीच में, और बहुत सी बाते हैं
समय मिलेगा फिर कह देंगे, सोते हम कब राते हैं
संजय कौशिक 'विज्ञात'
बहुत ही शानदार रचना
ReplyDeleteJai Hind🙏
ReplyDeleteबेहतरीन भावों से सजी, सैनिकों की अभिलाषाओं का चित्रण करती रचना
ReplyDeleteवीर रस से भरपूर एक और शानदार सृजन आदरणीय 👌👌👌👌👌👌
ReplyDeleteOsam
ReplyDeleteसैनिक अदम्य साहस से हर ऋतु हर परिस्थिति में देशरक्षा हित डटा रहता है, उसे हक है ऐसे प्रश्र पूछने का ,
ReplyDeleteहम नागरिक धर्म की अवहेलना करते रहते हैं, नित नये षड़यंत्र देश के कर्णधारों के हाथ होते हैं, वहां वो घर द्वार रिश्ते भूला जुटा रहता है रक्त की अंतिम बूंद तक ।
सटीक और सार्थक सृजन बहुत सुंदरता से पूरे सामायिक परिवेश को समेटे असाधारण रचना ।
आपकी समर्थ लेखनी जो चमत्कार न दिखादे वो कम है।
अनुपम,अभिनव अभिव्यक्ति।
देशभक्ति की भावना से ओत-प्रोत बेहतरीन सृजन
ReplyDeleteआ.सर जी🙏🏻
बहुत सुंदर आदरणीय आपकी लावणी छंद
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ज्ञानवर्धक एवं संग्रहणीय ।नमन आपकी लेखनी को सर।
ReplyDeleteबहन बेटियां रहें सुरक्षित, यत्न करो सब मिल ऐसे
ReplyDeleteगंगा जैसा पावन भारत, बना चलो तुम फिर वैसे
वाह वाह बहुत खूब बेहतरीन और लाजवाब सृजन गुरु देव नमन उनको और आप की लेखनी को ✍️🙏🙏🙏
👌👌👌
ReplyDeleteReally fantastic
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना 👏 👏
ReplyDeleteजय हींद
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार २४ जनवरी २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
अति सुंदर रचना
ReplyDeleteजयहिंद
ReplyDeleteमन देश के हालात से व्यथित हो जाता है ,परसब ठीक और सुधार के लिए सबको स्वयं को ही सुधार करना होगा
सादर
अद्भुत रचना, सादर नमन और बधाई
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteवीर रस से ओत प्रोत संग्रहणीय रचना
ReplyDeleteबधाई आपको।
धरा
बहुत खूब... ,सत सत नमन वीर सपूतों को सादर नमन आपको
ReplyDeleteउत्कृष्ट रचना ,आदरणीय !👌
ReplyDeleteवीर रस की ओज पूर्ण रचना राष्ट्र प्रहरियों की अभिलाषा के माध्यम से देशवाशियो को सार्थक सन्देश। विज्ञात जी अशेष बधाई।
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