कुकुभ छंद
एक याचना लिखी कलम ने
◆◆ संजय कौशिक 'विज्ञात' ◆◆
कुकुभ छंद भी ताटक छंद की तरह 16/14 मात्रा भार में लिखा जाने वाला सम मात्रिक छन्द है। इस छन्द में चार चरण होते हैं।क्रमागत दो-दो चरण तुकांत समतुकांत रहते हैं
विषम चरण 16 मात्राएँ और सम चरण 14 मात्राओं का नियम निभाना होता है। प्रथम चरण अर्थात विषम चरण का अन्त बिना किसी विशेष आग्रह के लिखा जाता है। परन्तु सम चरण का अंत दो लघु और दो गुरु अनिवार्य होता है। अर्थात ये कुकुभ छन्द के ही प्रारूप में 2 लघु 11 को एक गुरु नहीं माना जाता है
16,14 पर यति अंत में 2 गुरु अनिवार्य
कुकुभ छंद
रचना कहती अपनी बातें, बातों की बात पुरानी।
कलम लिखेगी आज यकीनन, नूतन फिर आज कहानी॥
धर्म बाँटता देश कहाँ है, पर हम तो बांट चुके हैं।
अन्यायी फिर कदम बढ़ाता, भारत आन रुके हैं॥
एक याचना लिखी कलम ने, रुक कर थोड़ा सुन लेना।
जो भी हो फिर निर्णय करना, हमें वही तुम कह देना॥
धूर्त पडौसी एक हमारा, कितना उसको समझाया।
उसे समझ में कितना आया, कौन समझ है यह पाया॥
खूब सुनाओ जितनी चाहो, सारे अब मिलकर बोलो।
और ईंट से ईंट बजादो, हाथ पाक पर सब खोलो॥
क्रांति अमर की आँधी जैसी, घोर गर्जना करनी है।
शिव काशी से पहुँच कराची, गंगा धारा भरनी है॥
मत छेड़ो माँ के लालों को, रक्त खौलता हम लावा।
हस्ती तक कर देंगे स्वाहा, तूफानों का पहनावा॥
समझ कपास लिया है कैसे, नहीं दही के हम प्याले।
विषधारी शिव नीलकंठ के, हम कट्टर भक्त निराले॥
अमृत रस बांटा है जग को, मगर जहर पी हम लेते।
क्षमावान दयालु बन ऐसे, अभय सभी को वर देते॥
प्रेम भाव का प्रथम पाठ वो, हमने जग को सिखलाया।
मान चुकी सारी दुनिया ये, गर्वित मन कर दिखलाया॥
हद में रहना भूल गया ये, लातों का भूत बना है।
छल में रहता लिप्त सदा ही, लालच में क्रूर घना है॥
सदा म्यान में हम रखते हैं, सर कलमी सब तलवारे।
आज इसे वो स्थान दिखादो, जीतेंगे हम, वह हारे ॥
कुछ बातों की बात सुनादो, मर्यादा लांघ न पाये।
नानी इसको याद करादो, करने क्यों विचरण आये॥
और गज़ब का क्रंदन होगा, हथियार कलम बन जाये।
मानवता जो तार-तार है, पावनता दर्शन पाये॥
रहता दिल में उत्तम सोचें, वही जगानी इस बारी।
भूल गया वो हर मर्यादा, हमें निभानी पर सारी॥
सीमाओं पर रक्त बहाना, मिलकर अब बन्द करायें।
सैनिक भी माँओं के बेटे, बढ़ आगे कण्ठ लगायें॥
'कौशिक' तेरी कलम उगलती, बँटवारे का दुख सारा।
फिर भी मर्यादित रहने का, उत्तम आह्वान तुम्हारा॥
संजय कौशिक 'विज्ञात'
Bahut khoob surat , josh or oj ka srijan 👌👌💐💐
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका
Deleteदेश भक्ति से भरी यथार्थ दिखाती भावपूर्ण अभिव्यक्ति 👌👌👌 बहुत सुंदर 👏👏👏 आभार आदरणीय एक नए छंद की जानकारी देने के लिए 🙏🙏🙏
ReplyDeleteआत्मीय आभार विदुषी जी
Deleteप्रोत्साहित करती टिप्पणी
आत्मीय आभार
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति। वर्तमान परिस्थितियों को सुंदर शब्दों में प्रस्तुत किया गया है। 👌👌
ReplyDeleteआत्मीय आभार अनंत जी
Deleteदेशभक्ति से ओतप्रोत एक और ने छंद के साथ, बेहतरीन प्रस्तुति 👌👌👌
ReplyDeleteआत्मीय आभार अनुराधा चौहान जी
Deleteबढिया
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका
Deleteदेश भक्ति पूर्ण रचना और अद्भुत छंद की जानकारी सुन्दर रचना
ReplyDeleteआत्मीय आभार अर्चना जी
Deleteओज पूर्ण देशप्रेम से ओतप्रोत सृजन आ0
ReplyDeleteआत्मीय आभार अनिता जी
Deleteओजस्वी रचना, मुहावरों का सशक्त प्रयोग,सुन्दर
ReplyDeleteशब्दावली, बेहतरीन रचना
आत्मीय आभार अभिलाषा जी
Deleteएक याचना लिखी कलम ने,श्लाघनीय छंद बंद्ध रचना हेतु ढेरों बधाइयाँ ।
ReplyDeleteआत्मीय आभार मंजरी जी
Deleteदेश-भक्ति से ओतप्रोत एक ओजपूर्ण रचना व साथ ही एक और नये छंद की जानकारी 👌👌👌👌👌👌👌👌
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका
Deleteवर्तमान परिस्थितियों को सुंदर शब्दों में प्रस्तुत किया गया है। 👌👌
ReplyDeleteआभार पुत्तर जी
Deleteबहुत खूब सर जी बधाई हो
ReplyDeleteआत्मीय आभार बोधन जी
Deleteवाह वाह बहुत खूब बेहतरीन और लाजवाब देश भक्ति अनुपम काव्य प्रवाह में प्रवाहित करते हुए सुन्दर कृति।
ReplyDeleteरहता दिल में उत्तम सोचें, वही जगानी इस बारी।
भूल गया वो हर मर्यादा, हमें निभानी पर सारी॥
प्रणाम आप को और आप की कलम को 🙏🙏🙏
आत्मीय आभार चमेली जी
Deleteअनुपम सृजन आ.सर जी🙏🏻
ReplyDeleteआत्मीय आभार सविता जी
DeleteAti utam rachna
ReplyDeleteआत्मीय आभार बीनू जी
Deleteबहुत सुन्दर ज्ञानवर्धक एवं संग्रहणीय।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर भाव संजोये बेहतरीन रचना । गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं आदरणीय
ReplyDeleteदेश प्रेम से सजी ओजपूर्ण सृजन
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने कहा है " साहित्य में वह शक्ति है जो तोप, तलवार और बम के गोलों में नहीं। विज्ञात जी!आपकी देशभक्ति पूर्ण रचना उपरोक्त वाक्य रेखांकित किया है।
ReplyDeleteसादर शुभकामना।