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Sunday, August 28, 2022

नवधा भक्ति के प्रकार, रूप, एवं उदाहरण : संजय कौशिक 'विज्ञात'


नवधा भक्ति के प्रकार, रूप, एवं उदाहरण

गत कई दिनों से पूछा जा रहा था नवधा भक्ति का क्या अर्थ है इसके रूप कैसे हैं और इनको करने वाले भक्तों के नाम आदि भी जिज्ञासा प्रकट रूप से मेरे समक्ष आई थी तो आज मैं नवधा भक्ति के साथ उपस्थित हुआ हूँ।
वैसे तो नवधा भक्ति को हम इस श्लोक के माध्यम से समझ सकते हैं। कुछ सरलता के उद्देश्य से मैंने कुछ दोहे कहे हैं देखिये और समझिए ये प्रयास सरलता से कहाँ तक स्पष्ट हो सका ..... 
श्लोक :-
श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्।
अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥

दोहे :-

भक्ति मार्ग प्रत्यक्ष कब, कहते इसे परोक्ष।
ध्यान धरे साधक अगर, भक्ति भुक्ति दे मोक्ष।।

करता नवधा भक्ति जो, पा लेता है लक्ष्य।
लख चौरासी योनियाँ, तत्क्षण होती भक्ष्य।।

श्रवण भेद नवधा प्रथम, कथा भक्त की प्यास।
श्रवण परीक्षित ने किया, पूर्ण हुई फिर आस।।

कीर्तन भेद द्वितीय है, इसमें स्तुति का गान।
नाम सुना शुकदेव जी, कीर्तन की पहचान।।

रखते 'स्मरण' तृतीय पर, नित्य स्मरण कर शक्ति।
यूँ बालक प्रह्लाद के, हृदय जगी थी भक्ति।।

भक्ति पादसेवन कही, यह चतुर्थ है रूप।
जैसे लक्ष्मी ने किया, पाया स्थान अनूप।।

अर्चन पंचम भेद है, कर्म वचन मन साध।
राजा पृथु ने ज्यों किया, अर्चन नित निर्बाध।।

वंदन षष्ठम भेद है, करना नित्य प्रणाम।
सेवक बन अक्रूर ज्यूँ, नमन करे निष्काम।।

दास्य भक्ति सप्तम कही, बन स्वामी का दास।
राम भक्ति हनुमान की, करती हृदय उजास।।

सख्य भेद अष्टम कहा, समझ ईश को मित्र।
पार्थ सुदामा द्रोपदी, सख्य सुगंधित इत्र।।

आत्मनिवेदन है नवम, भक्ति भाव का रूप।
जैसे राजा बलि हुए, आत्मनिवेदित भूप।।

मीरा के प्रेमी बने, कृष्णचन्द्र घनश्याम।
साध्य कहें निज प्रेमिका, अड़े सँवारे काम।।

शबरी के आतिथ्य से, हर्षे राम प्रचण्ड।
खाये जूठे बेर ज्यूँ, वो था भाव अखण्ड।।

भक्ति कही है भाव की, भावों का उद्योग।
योग साधना है पृथक, और पृथक हठयोग।।

इस नवधा से भी पृथक, हुए करोड़ों भक्त।
जिसकी जैसी भावना, वैसे देव सशक्त।।

मुक्त हुए वसुदेव जब, सांकल ताले तोड़।
पुत्र रूप भगवान का, ये था अद्भुत जोड़।।

गंगा से पावन कही, भक्त अश्रु की बूँद।
भजता है जो भाव से, अपनी आँखें मूँद।।

सुमरण खा जीवन चले, विद्या पी विद्वान।
भक्ति में खोकर मिले, भक्तों को भगवान।।

कोमल तथा सशक्त से, रहें भक्त के भाव।
केवट चरण पखारके, पार लगाते नाव।

नवधा भक्ति से खुले, विषय मुक्ति का द्वार।
प्रभु के सुमिरन के बिना, नही जीव उद्धार।।

©संजय कौशिक 'विज्ञात'

12 comments:

  1. सादर नमन गुरुदेव 🙏
    आकर्षक दोहों के माध्यम से इस कठिन विषय को बड़ी ही सरलता से समझा दिया आपने। बहुत ही ज्ञानवर्धक जानकारी और अनुपम उदाहरण 💐💐💐💐💐
    ऐसे ही हम सभी का मार्गदर्शन करते रहें 🙏

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  2. बहुत ही आकर्षक दोहे गुरदेव ज्ञान वर्धक जानकारी दोहों के माध्यम से सादर प्रणाम बहुत सुन्दर💐💐💐💐💐💐

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  3. आदरणीय गुरूदेव नमन है आपको, 🙏🙏🙏🙏🙏

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  4. वाह बहुत सुंदर सटीक नवधा भक्ति की सर्वोपयुक्त जानकारी गुरुदेव को सादर नमन।

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  5. दोहों के माध्यम से नवधा भक्ति जैसे कठिन विषय को बड़ी सरलता से समझाया है गुरुदेव ने। सादर नमन गुरुदेव।

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  6. बेहद खूबसूरत दोहे आदरणीय 👌👌 दोहों के माध्यम से बहुत सुंदर और ज्ञानवर्धक जानकारी दी आपने 🙏

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  7. वाह बहुत सुंदर, अनुकरणीय रचना
    नमन गुरुदेव 🙏💐

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  8. आपकी लेखनी को नमन गुरुदेव बहुत ही बेहतरीन सृजन🙏🙏🙏🙏🙏

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  9. अति सुंदर जय हो गुरू देव

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  10. सादर नमन गुरुदेव....नमन आपकी लेखनी को....बहुत खूब लिखा है आपने....

    सुमरण खा जीवन चले, विद्या पी विद्वान।
    भक्ति में खोकर मिले, भक्तों को भगवान।।
    👍👍🙏🌹

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  11. अति सुंदर गुरुदेव
    बहुत ही शोधपरक सृजन
    बधाई..... तोषण चुरेन्द्र

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  12. सादर नमन गुरुदेव अति सु दर सृजन

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