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Wednesday, May 18, 2022

हास्य रस. : गीतिका : संजय कौशिक 'विज्ञात'


हास्य रस
गीतिका 
संजय कौशिक 'विज्ञात'

212 1222 212 1222

बात बात पे इटली रोज वो घुमाती है।
इक जहाज पानी का स्वप्न में उड़ाती है।।

एक रेल गाड़ी को देख कर मुझे बोली
मार मार सीटी ये क्यों मुझे बुलाती है।।

गाँव में बुलाया मैं फोन पे रिझाया मैं 
बैठ एक झोटे पे सैर वो कराती है।।

प्यार फेसबुक वाला पड़ गया मुझे भारी
डायना बनी डायन बस नकद उड़ाती है।।

चैट फेसबुक वाली जब पढ़ी जरा सी ही 
मार-मार के बेलन पीठ को सुजाती है।।

कर रही बहाने है माँगती नहीं इमली
और वो कहे बाबू फिर मुझे नचाती है।।

खेत में चलो कौशिक झट निकाल के नैनो
भागती चली बुग्गी गाल से चलाती है।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

11 comments:

  1. सादर नमन गुरुदेव 🙏
    हास्य रस में डूबी मनभावन गीतिका 👌
    शानदार सृजन की हार्दिक बधाई 💐💐💐

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  2. बहुत सुंदर हास्य रस से भरपुर

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  3. बहुत सुंदर सृजन
    अनुकरणीय
    नमन गुरु देव 🙏💐

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  4. बहुत ही शानदार गीतिका क्या कहने प्रणाम गुरुदेव

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  5. हास्य से भरपूर, सुन्दर गीतिका👌👌👌

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  6. हास्य रस पर मजेदार गीतिका

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  7. बहुत सुंदर सृजन आदरणीय।

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  8. ंबहुत सुंदर रचना

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