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Thursday, May 26, 2022

गीतिका संजय कौशिक विज्ञात



*गीतिका*
मापनी - 21221 21222

पीर भी गीत फिर सुनाती है।
जब सिसक ताल सुर लगाती है।।

रात का घाव है अँधेरा ये
चाँदनी लेप से मिटाती है।।

शूल की नोंक रक्त से भीगी
पाँव की चोट को छिपाती है।।

नेत्र की धार यूँ बहे झरना
तोड़ के स्वप्न सा रुलाती है।।

चैन की चोट यूँ करे क्रंदन
चीख हरबार ये बढ़ाती है।।

ये व्यथित झूल यूँ पड़ी सूनी
याद की गोद फिर झुलाती है।।

कष्ट की मोच त्रस्त यूँ करती
पाँव को तोड़ जो चलाती है।।

टीस की रीस क्यों करे कौशिक
देख दिन रात जब जगाती है।।

©संजय कौशिक 'विज्ञात'

10 comments:

  1. सादर नमन गुरुदेव 🙏
    बहुत ही आकर्षक गीतिका
    मोहक बिम्ब और उतकृष्ट शब्द चयन 💐💐💐

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  2. शानदार रचना गुरुदेव को नमन

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  3. बहुत ही सुन्दर 👌 अनुपम, अनुकरणीय रचना
    नमन गुरु देव 🙏💐

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  4. अति सुंदर भावबिंब आदरणीय

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  5. गजब लेखनी है गुरुवर की

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  6. गुरु देव नमः

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  7. नवगीत सा सूंदर बिम्ब से सजे , बहुत सुंदर

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  8. बेहतरीन सृजन आदरणीय 🙏

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  9. बहुत ही सुन्दर रचना 👌 गुरुदेव 🙏

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