नवगीत
खिल उठी रूखी कलाई
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मापनी 14/14
श्रावणी की दिव्यता ले
खिल उठी रूखी कलाई
यूँ बहन की साधना पर
हर्ष फिर बाँटे बधाई।।
इन क्षणों के राग अनुपम
रागनी उनसे निराली
ताल थिरके मिल सुरों में
वाह लूटे ढेर ताली
नेह की किरणें चमकती
थालियों ने जब सजाई।।
सूत्र का विश्वास बढ़कर
छा गया अंतःकरण में
नेह बहनों का कवच ये
सौरमण्डल के चरण में
बन सुरक्षित बंध उत्तम
नित महक मीठी जगाई।।
एक औषध है यही वो
कष्ट की घड़ियाँ मिटाती
पारलौकिक प्रेम बंधन
जो हृदय से नित निभाती
राखियों का रंग चहके
पर्व की शुभता बताई।।
©संजय कौशिक 'विज्ञात'
सादर नमन गुरुदेव 🙏
ReplyDeleteशानदार नवगीत 👌👌👌👌
आकर्षक बिम्ब एवं कथन 💐💐💐
बहुत सुंदर नवगीत 👌🙏🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर सृजन। नमन गुरुदेव।
ReplyDeleteअनुमप गुरूदेव 🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteवाह वाह, बहुत सुंदर, अनुपम, अद्भुत, अनुकरणीय सृजन आदरणीय गुरुदेव सादर नमन🙏💐
ReplyDeleteबहुत सुंदर गुरुदेव
ReplyDeleteसादर नमन गुरुदेव अत्यंत सुंदर नवगीत 👌👌🙏🙏🌷🌷
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना बहुत प्यारी रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर नवगीत! राखी और भाई बहन के अनुपम स्नेह को साकार करता सृजन।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर 👌👌👌👌🙏🙏
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावनाएं सर
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