नवगीत
मीठा राग मल्हार
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मापनी
स्थाई/पूरक पंक्ति 12/11
अंतरा 12/12
फाल्गुनी गाती फिरे
मीठा राग मल्हार
यूँ अबीरी साँझ का
गूंजे आज प्रचार।।
पंखुड़ी भी पुष्प की
ठोकती है तालियाँ
प्रीत की गाथा यही
बोलती हैं बालियाँ
यूँ बयारी नृत्य का
देखा नव्य प्रकार।।
मस्त नाचे ये धरा
गीत के आभार पे
अम्बरों ने पुष्प से
बात बोली सार पे
भीगते से गात में
दौड़ा प्रेम प्रसार।।
रंग की बातें नई
यूँ वधू के मध्य में
हास्य गूँजे मोहिनी
पाश बाँधे वृध्य में
कौन ऐसे रोक ले
मारे देख प्रहार।।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
सादर नमन गुरुदेव 🙏
ReplyDeleteशानदार नवगीत आकर्षक बिम्बों के साथ 💐💐💐
बहुत सुंदर गुरुदेव की रचना और लेखनी को नमन ।
ReplyDeleteवाह वाह 👌 बहुत सुंदर
ReplyDeleteनमन गुरु देव
बहुत सुंदर बेहद खूबसूरत बिंबों के साथ 👍👍👍🌷🙏
ReplyDeleteप्रणाम गुरुदेव 🙏🌷
सादर नमन गुरुदेव 🙏🙏
Deleteबहुत सुंदर नवगीत 👌👌
बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर मीठा नवगीत सादर प्रणाम
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत नवगीत आदरणीय 👌👌👌👌
ReplyDeleteफाल्गुनी रंगों से सराबोर सुंदर नवगीत,
ReplyDeleteआकर्षक बिंब और कथन।
सुंदर श्रृंगार नवगीत।
मन की देहरी पर फाल्गुन की दस्तक का आभास कराता नवगीत👌👌👌👌👌👌
ReplyDeleteबहुत बढ़िया l
ReplyDeleteबेहतरीन रचना आदरणीय ।
ReplyDeleteसादर प्रणाम गुरुदेव 🙏
ReplyDeleteआकर्षक बिंबो से सजा हुआ बहुत सुंदर नवगीत 👌
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (26-02-2022 ) को 'फूली सरसों खेत में, जीवित हुआ बसन्त' (चर्चा अंक 4353) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
पंखुड़ी भी पुष्प की
ReplyDeleteठोकती है तालियाँ
प्रीत की गाथा यही
बोलती हैं बालियाँ... वाह!बहुत ही सुंदर सराहनीय लिखा सर।
सादर