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Monday, March 9, 2020

महा श्रृंगार छन्द पीर मन की संजय कौशिक 'विज्ञात'



महा श्रृंगार छन्द 
पीर मन की 
संजय कौशिक 'विज्ञात'


शिल्प विधान :- यह चार पक्तियों का छन्द है, प्रत्येक पक्ति में कुल 16 मात्रायें हो ती हैं। प्रत्येक पक्ति का अन्त गुरु लघु से करना अनिवार्य होता है, दूसरी व चौथी पक्ति में तुकांत समतुकांत रहेगा। विशेष ध्यान रखने योग्य कि इस छंद में तुकान्त मिलान  उत्तमता के उद्देश्य से प्रथम और तृतीय तथा द्वितीय और चतुर्थ पंक्ति के तुकांत मिलान सर्वोत्तम आदि में त्रिकल द्विकल व अंत द्विकल त्रिकल से करना चाहिए। आइये अब इस छंद के शिल्प को उदाहरण के माध्यम से समझते हैं। 
16 मात्रा प्रारम्भ 3+2 व अंत 2+3

पीर मन की 
संजय कौशिक 'विज्ञात'


ताकता प्रेमी मन श्रृंगार,
जहाँ गोरी करती आराम।
चाँद का चकोर पावन प्यार,
मेघ करता घूंघट का काम॥ 

चमक है चंद्र-किरण के तुल्य,
देख मुख मण्डल आभा तेज।
दृष्टिपात हुई वही अमूल्य, 
तभी देती संदेशा भेज॥ 

पीर मन की सहते दिन रैन,
आग तब विरह जलाती खूब।
धीर तन-मन खो देता चैन,
जले चिंगारी से ज्यूँ दूब॥ 

विवेकी दिखते कितने लोग,
यहाँ पर जाते हैं सब हार।
प्रेम संबंध कहो या रोग, 
करे मन में पल-पल विस्तार॥

मिले यदि मनको वो मन मीत, 
हर्ष पाता अंतः हरबार।
पथिक जाता मंजिल को जीत, 
प्रेम यूँ बस दर्शन का सार॥ 

संजय कौशिक 'विज्ञात'

22 comments:

  1. सुख, शान्ति एवम समृद्धि की मंगलमयी कामनाओं के साथ आप एवं आप के समस्त परिजनों को पावन पर्व होली की हार्दिक शुभकामनाएँ व शुभ प्रभात

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  2. अति सुन्दर भाव ...👏👏👏👏
    डॉ इन्दिरा गुप्ता यथार्थ

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  3. अति सुंदर एवं भावपूर्ण रचना

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  4. चमक है चंद्र-किरण के तुल्य,
    देख मुख मण्डल आभा तेज।
    दृष्टिपात हुई वही अमूल्य,
    तभी देती संदेशा भेज॥
    बेहतरीन और लाजवाब श्रृंगार छंद
    आप को और आप की लेखनी को नमन गुरु देव

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  5. बहुत खूब उत्तम भाव सर जी बधाई हो सर

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  6. कौनसी लय में गाउँ , समझ नही पा रहा हूँ। छन्द में शिल्प एवम भाव निसंदेह लाजवाब है ,परन्तु धुन मुझसे पकड़ में नही आ पा रही।

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  7. लाजवाब भाव लिये एक और खूबसूरत नया छंद👌👌👌👌👌👌👌👏👏👏👏👏👏👏

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  8. बेहतरीन सृजन
    आ.सर जी शुभकामनाएं 🙏🙏

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  9. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (11-03-2020) को    "होलक का शुभ दान"    (चर्चा अंक 3637)    पर भी होगी। 
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
     -- 
    रंगों के महापर्व होलिकोत्सव की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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  10. वाहः अद्भुत सृजन वाहः
    आप हर विधा में पारंगत हैं💐💐

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  11. आत्मिक- पिपासा के दर्शन को दर्शाता बहुत सुंदर गीत लिखा है आपने । मीरा ,राधा ,गोपियाँ जैसी विभूतियाँ ही ऐसे प्रेम पर जिवित थी । यही तो वह प्रेम है जिसमें न उम्र की कोई सीमा , न कोई बंधन ,न कोई अंकुश ,न कोई दैहिक प्यास ,कुछ पाने की आशा जैसी लोलुपता की आवश्यकता ही नही ।। प्रिय को आत्मा में बसा कर हर रति लीन रहना ही तो प्रेम जो कभी सम नही बन सका ।विषम रह कर सम की पिपासा को बनाये रखता है ।

    कलम का स्पंदन

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  12. वाह क्या बात है बहुत सुन्दर श्रृंगार पर ये रचना

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  13. बहुत खूब जी वाह वाह वाह

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  14. बहुत बहुत बहुत सुंदर रचना सर। नमन आपकी लेखनी को।

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  15. आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 11 मार्च 2020 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  16. सुन्दर छंद
    रचना रसमयी मनमोहक

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  17. श्रृंगार की श्रेष्ठ परिकल्पना जो यथार्थ का बोध होता है।
    बधाई! बधाई!!

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  18. बेहद खूबसूरत रचना 👌👌

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  19. खूबसूरत रचना आ0

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  20. वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर....
    लाजवाब सृजन।

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  21. वाह!बहुत खूबसूरत सृजन ।

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  22. वाह वाह, सुन्दर भाव आद.

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