नवगीत
होली हास्य
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मापनी~~ 16/14
आज लगे ब्रह्मांड घूमता,
इतनी पी लो भंग सभी।
होली मिलती नित्य रहे फिर,
ऐसे रँगलो रंग सभी।
1
रंग बिरंगी कुतिया देखी,
कुत्तों पर होली छाई।
खूब पिटा जब कुत्ता ऐसे,
तब बासन्ती मुस्काई।
मस्त पुरातन नारी का लठ,
खाकर कुतिया चिल्लाई।
बूढ़े का सिर फोड़ दिया था,
बिन चश्मे वह मस्ताई।
गोद लदा फिर वो गोरी के,
सीख यही लो ढंग सभी।
आज लगे ब्रह्मांड घूमता,
इतनी पी लो भंग सभी।
2
आज अचानक भांग पकौड़े,
थाली से दिखते उड़ते।
धूल धँसे कुछ प्रेमी नाचें,
चटनी कीचड़ सी पड़ते।
साफ चमकती नाली ऐसी,
अभियान स्वच्छ में जड़ते।
वृद्ध प्रेमिका ने लठ मारा,
जबड़े हरबार उखड़ते।
नारी का सुन शौर्य यही था,
देख जिसे हैं दंग सभी।
आज लगे ब्रह्मांड घूमता,
इतनी पी लो भंग सभी।
3
होली का उद्देश्य समझ लो,
आज कहे ये कवि प्यारा।
रंगों के स्वर गीत मधुर से,
गाये धुन ये जग सारा।
रंग बिरंगे पंख खुलें जब,
मन मयूर झूमे न्यारा।
रंग अबीरी से मिल जायें,
रंग बहे बनके धारा।
आप गुलाल बहे सरिता में,
स्नान करें इस गंग सभी।
आज लगे ब्रह्मांड घूमता,
इतनी पी लो भंग सभी।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
होली के अवसर पर सुन्दर रचना।
ReplyDeleteआत्मीय आभार शास्त्री जी
Deleteआज अचानक भांग पकौड़े,
ReplyDeleteथाली से दिखते उड़ते।
धूल धँसे कुछ प्रेमी नाचें,
चटनी कीचड़ सी पड़ते।
वाह वाह बहुत खूब नवगीत होली हास्य
आप को और आप की लेखनी को नमन
आत्मीय आभार चमेली जी
Deleteबहुत सुन्दर, आप की हर रचना की तरह, बहुत बहुत बधाई, सादर नमन
ReplyDeleteबहुत ही शानदार होलीं हास्य गीत 👌👌👌 बहुत बहुत बधाई 💐💐💐
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