नवगीत
लाचारी
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मापनी~16/14
चिड़िया आग दहकती में क्यों
आज स्वयं को झोंक रही।
जलते दिखते वृक्ष घौंसले,
कितनी कुतिया भौंक रही।
1
तिनके चुगती मस्त रहे जब,
कितना क्रंदन काग करें।
कोयल के चंगुल फँसते फिर,
शर्मसार हो आह भरें।
यह विधि की विधना है कैसी,
बड़े डराते सभी डरें।
एक समय जब दाँव लगे तो,
हाथी चींटी मौत मरें।
राजनीति की दाल गले कब,
कौन यहाँ पर छौंक रही।
जलते दिखते वृक्ष घौंसले,
कितनी कुतिया भौंक रही।
2
जिस तरुवर पर धागे बांधे,
वट सावित्री के नारी।
चिड़िया इसको मान सुरक्षित,
नीड़ बना बैठी प्यारी।
क्षोभ अग्नि से शहर जला क्यों?
किसने फूंकी फुलवारी।
अपना सब कुछ जलता देखा,
दाह करे वो बेचारी।
शायद कुछ भी शेष नहीं था,
जिन्हें नेह से धौंक रही।
जलते दिखते वृक्ष घौंसले,
कितनी कुतिया भौंक रही।
3
सर्प बहुत से बाहर निकले,
अजगर की देखी जकड़न।
दावानल का शोर मचा था,
अपनों की सिसकी तड़पन।
बेबस सी लाचार रही वो,
एक नहीं थी बस अड़चन।
व्याकुल मन से अंतिम निर्णय,
जोड़े - तोड़े सब बन्धन।
श्वेत वर्ण कुछ बुगली आई,
गिद्ध अश्रु भर चौंक रही।
जलते दिखते वृक्ष घौंसले,
कितनी कुतिया भौंक रही।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
निम्न दो लिंकों पर एक सी ही पोस्ट है और दोनों ने अपने-अपने नाम से पोस्ट की हैं। पता नहीं कि इस पोस्ट का वास्तविक रचयिता कौऩ है? नीतू ठाकुर या संजय कौशिक विज्ञात?
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (04-03-2020) को "रंगारंग होली उत्सव 2020" (चर्चा अंक-3630) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदरणीय यह रचना आदरणीय संजय कौशिक 'विज्ञात' सर की है है उनसे प्रेरित होकर मैने उनके लिखे मुखड़े पर लिखा है। हम 'विज्ञात' नवगीत माला मंच पर विज्ञात सर द्वारा दी गई पंक्ति पर सृजन कर नवगीत सीखने का प्रयास कर रहे हैं 🙏🙏🙏 सर हम सबके मार्गदर्शक हैं ।https://mansenituthakur.blogspot.com/2020/03/blog-post.html पंक्ति एक है पर अंतरे अलग 🙏🙏🙏
Deleteजी !
Deleteअब बात समझ में आ गयी है।
चर्चा मंच के लिंक में सुधार कर दिया है।
आत्मीय आभार शास्त्री जी
Deleteबहुत ही कमाल का नवगीत 👌👌👌 चिड़िया के माध्यम से मानव मन की लाचारी का सटीक चित्रण 👏👏👏 आदरणीय बहुत ही प्रेरणादायक लेखन है आपका ....सादर नमन 🙏🙏🙏 लिखने का प्रयास अवश्य करेंगे 🙏🙏🙏
ReplyDeleteआत्मीय आभार विदुषी जी
Deleteअदभुत तीखा तंज और चुभते अल्फाज हम कौन थे क्या हो गाए आज ॥ नमन आ .विज्ञात ज़ी
ReplyDelete👏👏👏👏👏👏👏👏
डॉ़ इन्दिरा गुप्ता यथार्थ
आत्मीय आभार डॉ. इंदिरा गुप्ता जी
Deleteआधुनिक समाज की लचर व्यवस्था पर उत्तम कटाक्ष,आपकी लेखनी कमाल का असर छोड़ती है,नमन आपकी लेखनी को🙏🙏👏👏
ReplyDeleteआत्मीय आभार निधि सहगल जी
Deleteशानदार कटाक्ष आदरणीय 👌👌👌👌
ReplyDeleteएक समय जब दाँव लगे तो,
हाथी चींटी मौत मरें।
प्रेरणादायक सृजन 🙏🙏🙏
आत्मीय आभार पूजा जी
Deleteहर बंध सामायिक विसंगतियों पर सीधा प्रहार कर रहा है ।
ReplyDeleteसार्थक यथार्थ वादी लेखन।
गेयता के सतत प्रवाह ने गीत को और अधिक आकर्षक बना दिया।
अभिराम अनुपम।
आत्मीय आभार कुसुम जी
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति सार्थक यथार्थ वाली लेखन आदरणीय नतमस्तक हूं आपकी लेखनी पर
ReplyDeleteआत्मीय आभार पूनम जी
Deleteनमन है आपकी लेखनी को। बहुत ही शानदार रचना 🙏
ReplyDeleteआत्मीय आभार अनंत सहाब
Deleteयह विधि की विधना है कैसी,
ReplyDeleteबड़े डराते सभी डरें।
एक समय जब दाँव लगे तो,
हाथी चींटी मौत मरें।
वाह वाह बहुत खूब बेहतरीन और लाजवाब सृजन
आप को और आप की लेखनी को नमन है
आत्मीय आभार चमेली जी
Deleteबहुत ही सुंदर सृजन आदरणीय सर
ReplyDeleteसादर
आत्मीय आभार अनिता जी
Deleteहृदय को बींधता कटाक्ष 👏👏👏👏👏👌👌👌👌👌
ReplyDeleteआत्मीय आभार
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