प्रयाण नवगीत
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मापनी ~~ 16/12
वीर प्रयाण गीत अब लिख कर,
फिर हुंकार भरेंगे।
सागर मसि की कलम गर्जना,
वो ललकार भरेंगे।
1
अम्बर चुम्बी जयकारों से,
रिपु दल होता कम्पित।
शस्त्र अस्त्र की व्याख्या भी ये,
वीर प्रभाव अकल्पित।
चर्चित शौर्य सिपाही बढ़के,
यूँ उदगार भरेंगे।
वीर प्रयाण गीत अब लिख कर,
फिर हुंकार भरेंगे।
2
आतंकी की छाती दहके,
सब षड्यंत्र भुलाकर।
छंद धरे हैं वीर रसों में,
निर्मित घोल धुलाकर।
खाट तखत सब छोड़ चुके हैं,
जो संस्कार भरेंगे।
वीर प्रयाण गीत अब लिख कर,
फिर हुंकार भरेंगे।
3
विजय तिलक ये भाल भले बन,
लिखें गीत का मुखड़ा।
भारत माँ के हृदय कमल का,
हर लेंगे सब दुखड़ा।
भाव सभी में मानवता के,
लाखों बार भरेंगे।
वीर प्रयाण गीत अब लिख कर,
फिर हुंकार भरेंगे।
4
कष्ट मुक्त ये रहे भारती,
आज मिटें अन्यायी
भगत, राजगुरु, आजाद खड़े,
कोटि खड़े अनुयायी।
कृष्ण पार्थ की इस धरती पर,
यूँ टंकार भरेंगे।
वीर प्रयाण गीत अब लिख कर,
फिर हुंकार भरेंगे।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
बहुत सुंदर 👌👌👌वीर रस में डूबा आवाह्न करता शानदार नवगीत...भाव,कथन,शब्द चयन सब लाजवाब...उत्कृष्ठ उदाहरण है।सादर नमन 🙏🙏🙏
ReplyDeleteउत्कृष्ट सृजन आदरणीय 👌👌👌
ReplyDeleteअति उत्तम
ReplyDeleteअम्बर चुम्बी जयकारों से,
ReplyDeleteरिपु दल होता कम्पित।
बेहतरीन और लाजवाब सृजन गुरु देव
बहुत सुंदर वीर रस में ओतप्रोत आपकी यह रचना
ReplyDelete