नवगीत
होलिका दहन
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मापनी 14/14
हारती जब झूठ देखी,
जीत ने झण्डा उठाया।
होलिका जलती रही फिर,
बच निकल प्रह्लाद आया।
1
मूढ़ता हावी बहुत थी,
द्वेष विष अन्तस् भरा था।
पूर्णिमा की रात काली,
शशि ग्रहण ने यूँ हरा था।
राहु की शैतानियाँ में,
तामसी शासन खरा था।
मोक्ष वो निश्चित हुआ तब,
चाँद ने यौवन दिखाया।
होलिका जलती रही फिर,
बच निकल प्रह्लाद आया।
2
बाप निष्ठुर मिल बुआ से
रच चिता को जब रहा था।
बन पिता जल्लाद जैसा,
यातना दे सब रहा था।
जीव अजगर की पकड़ में,
फूल ऐसे तब रहा था।
पुत्र खाता श्वान भूखा,
आज उसको भी लजाया।
होलिका जलती रही फिर,
बच निकल प्रह्लाद आया।
3
पाप घट जब-जब भरा है,
फूटना तय सब समझते।
आतिताई को मिटाने,
प्रभु हमारे रूप धरते।
आज फिर नरसिंह बनकर,
रवि प्रकट होकर चमकते।
लाख थे खद्योत मिलकर,
सब असर उनका मिटाया।
होलिका जलती रही फिर,
बच निकल प्रह्लाद आया।
4
तोड़कर तटबंध नदिया,
बाढ़ बन बर्बाद करती।
आज रिश्तों में चुभन थी,
जो वहाँ आजाद करती।
फागुनी के मस्त झटके,
वो लहर अब नाद करती।
ये विजय की दुंदुभी थी,
शंख भी जिसने बजाया।
होलिका जलती रही फिर
बच निकल प्रह्लाद आया।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
पाप घट जब-जब भरा है,
ReplyDeleteफूटना तय सब समझते।
आतिताई को मिटाने,
प्रभु हमारे रूप धरते।
वाह वाह बहुत खूब बेहतरीन सृजन गुरु देव
आप की सोच और आपकी लेखनी को नमन
आत्मीय आभार चमेली जी
Deleteबहुत खूब।
ReplyDelete--
रंगों के महापर्व
होली की बधाई हो।
आत्मीय आभार शास्त्री जी
Deleteएक एक शब्द लाजवाब है👌👌👌👌👌👏👏👏👏👏नमन आपकी लेखनी को आदरणीय सर 🙏🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteसुन्दर होलिका दहन पर नवगीत।
ReplyDeleteउत्तम शब्द संयोजन
बधाई, शुभकामनाएँ
आत्मीय आभार अर्चना जी
Deleteबहुत सुंदर सार्थक काव्य सृजन।
ReplyDeleteअनुपम अभिनव।
जन्म दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं और ढेरों बधाइयां।
आत्मीय आभार कुसुम जी
Deleteहोलिका दहन पर बेहतरीन नवगीत
ReplyDeleteबहुत-बहुत बधाई व ढेरों शुभकामनाएं आ.सर जी 🙏🙏
आत्मीय आभार सविता जी
Deleteबहुत ही शानदार रचना 👌👌
ReplyDeleteआत्मीय आभार अनंत जी
Deleteबहुत शानदार रचना आ0
ReplyDeleteआपको होली की शुभकामनाएं
आत्मीय आभार अनिता जी
Deleteवाह वाह आद.। गज़ब गीत।
ReplyDeleteहोली की हार्दिक शुभकामनाएँ।
आत्मीय आभार मुकेश जी
Delete"जाको राखे सांइयाँ मार सके न कौय।" भक्त पर भगवान की असीम कृपा का उत्कृष्ट उदाहरण आपकी रचना में परिलक्षित होता है। विज्ञात जी!रचना के लिए अशेष बधाई सह होली की अनन्त शुभकामनाएं।
ReplyDeleteआत्मीय आभार प्रधान जी
Deleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteसाधुवाद
बहुत ही खूबसूरत रचना
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत आपकी लेखनी बहुत सुन्दर आपकी यह रचना आदरणीय
ReplyDeleteसुंदर सृजन, होली की शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सृजन सर जी। बधाई हो
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