नवगीत
कलम के महारथी (व्यंग्य गीत)
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मापनी ~~ 16/16
सिद्ध हुई है कलम उन्हीं को,
लिखते जो बिन सोच विचारे।
कानी सी साहित्य धरोहर,
आँख दबाई बंद इशारे।
1
सिद्ध विवेकी मूढ़ कलम के,
घूम रहे गलियों में बढ़के।
बिकती कविता स्वाद पकौड़ी,
शब्दों की चटनी सी चढ़के।
चाय समोसे जैसी रचना,
छंद जले हैं इनसे न्यारे।
2
शिल्प विधान समास संधि से,
रचना सिर से मुंडित पाली।
कविगण श्रेष्ठ गुणी अब उत्तम,
क्या तुलसी, रस, करते काली।
वाह कहो इनको ये भूखे,
लालच रूपी कीड़े सारे।
3
दिव्य दृष्टि उल्लू सी लेकर,
गिद्ध बने कुछ अद्भुत ज्ञानी।
एक कहें दो गीत पढ़ें जब,
गणित हुआ है पानी-पानी।
साक्ष्य समीक्षक बगला कुल के,
निम्न सभी जो लक्षण हारे।
4
ज्ञान उसे दो संजय कौशिक,
पार्थ बने जो आज्ञा लहते।
कवि गुरुओं की ज्ञान नदी में,
सबगुण अपना कर वो बहते।
जब विपरीत बहाव बहे तो,
आलोचक कुछ तुच्छ पधारे।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
शानदार कटाक्ष आदरणीय 👌👌👌
ReplyDeleteगुरु शिष्य सम्बंध को दर्शाती अद्भुत पंक्तियां, ज्ञान योग्य को ही दिया जाए तो सार्थक 👏👏👏
ज्ञान उसे दो संजय कौशिक,
पार्थ बने जो आज्ञा लहते।
कवि गुरुओं की ज्ञान नदी में,
सबगुण अपना कर वो बहते।
आत्मीय आभार सुगन्ध जी
Deleteबहुत ही खूबसूरत रचना ....व्यंग के माध्यम से खरी बात कह दी ....लाजवाब 👏👏👏👏
ReplyDeleteआत्मीय आभार विदुषी जी
Deleteबहुत सुंदर आदरणीय आपकी रचना व्यंगात्मक तरिके से बहुत खूब
ReplyDeleteआत्मीय आभार पूनम जी
Deleteबहुत सुन्दर और सटीक
ReplyDeleteआत्मीय आभार शास्त्री जी
Deleteदिव्य दृष्टि उल्लू सी लेकर,
ReplyDeleteगिद्ध बने कुछ अद्भुत ज्ञानी।
एक कहें दो गीत पढ़ें जब,
गणित हुआ है पानी-पानी।
बहुत सुन्दर व्यंग्यात्मक सृजन
नमन आप को और आप की लेखनी को
आत्मीय आभार सुवासिता जी
Deleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 05 मार्च 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आत्मीय आभार यादव सहाब
Deleteसटीक कटाक्ष करती उत्कृष्ट रचना
ReplyDeleteआत्मीय आभार
Deleteजबरदस्त व्यंग्य!!
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