नवगीत
कुठाराघात
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मापनी ~~ 16/16
सागर की लहरों के ऊपर,
झूल रही जीवन की नौका।
देख कुठाराघात समय का,
ढूंढ रही खुशियाँ भी मौका।
1
एकाकी का अजगर जकड़े,
है बारात भले तारों की।
मित्र तिमिर है भाग्य हमारा,
आज परख हो सब प्यारों की।
चमक रहे खद्योत कहाँ पर,
दूर निकट फिर उन सारों की।
झींगुर कितने गूंज रहे हैं,
और सुनें ध्वनि उन नारों की।
नाभि चुभी सूई की पीड़ा,
श्वान कहाँ से समझे भौका।
देख कुठाराघात समय का,
ढूंढ रही खुशियाँ भी मौका।
2
दूर खड़ा वो देख गगन ध्रुव,
आज अकेला वो भी कहता।
सत्य अटल हिय शाश्वत सच सा,
नित्य निरन्तर देखो दहता।
झूल रहा मैं जिन पलड़ों में,
पीड़ा शूलों जैसी सहता।
पैर नहीं टिकते धरणी पर,
अधर- अधर ही हर क्षण रहता।
दिव्य क्षणों की बल्लेबाजी,
मार रही जो छक्का चौका।
देख कुठाराघात समय का,
ढूंढ रही खुशियाँ भी मौका।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
अच्छी सृजन आदरणीय
ReplyDeleteआत्मीय आभार उमाकांत टैगोर जी
Deleteबहुत नयापन लिए सुन्दर रचना
Deleteइस एकाकी अहसास का साथ निभाने मेरा एक छ्न्द समर्पित
समय बलवान है, यह शाश्वत सत्य है।निर्विवाद लेखनी के रचनाकार कोटिशः बधाई।
ReplyDeleteआत्मीय आभार प्रधान जी
Deleteअद्भुत! नवगीत के लिए जैसे नये बिंब चहिए सटीक वैसे ही नव्या और अभिनव बिंब ,जिन तक पहुंचने के लिए हमें भी सतत प्रयास करने होंगे ।
ReplyDeleteकल तक प्रतिस्थापित बिंबों की जड़ से नमी कोंपल प्रस्फूटित करनी होगी ।
बहुत बहुत अभिराम अनुपम ।
आत्मीय आभार कुसुम कोठारी जी
Deleteआपके बिम्ब बहुत सशक्त होते हैं
वाह !बहुत ही सुंदर सृजन आदरणीय सर
ReplyDeleteसादर
आत्मीय आभार अनिता सैनी जी
Deleteबहुत सुंदर शिल्प👌👌
ReplyDeleteआत्मीय आभार वंदना सोलंकी जी
Deleteवाह, शानदार विम्ब का प्रयोग हुआ आदरणीय
ReplyDeleteलाजवाब सृजन
आत्मीय आभार रजनी रामदेव जी
Deleteआदरणीय आपकी रचना का कोई जवाब नहीं एक से बढ़कर एक, नमनl
ReplyDeleteबेहतरीन रचना आदरणीय 👌👌
ReplyDeleteआत्मीय आभार अनुराधा जी
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteअद्वितीय बिम्ब से सजी आ0 सुंदर सृजन
ReplyDeleteआत्मीय आभार अनिता जी
Deleteअप्रतिम रचना
ReplyDeleteआत्मीय आभार अभिलाषा जी
Deleteनाभि चुभी सूई की पीड़ा,
ReplyDeleteश्वान कहाँ से समझे भौका।
देख कुठाराघात समय का,
ढूंढ रही खुशियाँ भी मौका।
वाह आदरणीय
अप्रतिम सृजन आदरणीय 👏👏👏
आत्मीय आभार पूजा जी
Deleteदिव्य क्षणों की बल्लेबाजी,
ReplyDeleteमार रही जो छक्का चौका।
देख कुठाराघात समय का,
ढूंढ रही खुशियाँ भी मौका।
वाह बहुत खूब बेहतरीन सृजन गुरु देव
चमेली कुर्रे जी आत्मिय आभार
Deleteबेहतरीन नवगीत
ReplyDeleteआ.सर जी शुभकामनाएं 🙏🏻🙏🏻
आत्मीय आभार सविता जी
Deleteबहुत सुंदर आदरणीय आपकी यह रचना वाह
ReplyDeleteआत्मीय आभार पूनम दुबे जी
Deleteउत्तम रचना सर जी
ReplyDeleteआत्मीय आभार बोधन जी
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteआत्मीय आभार अनुपमा जी
Deleteजन्म दिवस की हार्दिक मंगलकामनाएं 🎂🎂🎂💐💐💐
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteआत्मीय आभार अतिया जी
Deleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति :)
ReplyDeleteआत्मीय आभार भास्कर सहाब
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