नवगीत
क्षोभ
संजय कौशिक ' विज्ञात'
मापनी~~ 14/14
क्षोभ का भाजन बने जब,
खूब बादल फिर बरसते।
बाँट ते उपहार देखो,
दृश्य जितने भी तरसते।
1
देख आकर्षक मनोहर,
वो घटा घनघोर अनुपम।
वारते सब भूमि पर हैं,
ये सुधामय जल सुरोपम।
व्यक्ति पूछे प्रश्न जितने,
दे उन्हें उत्तर सँवरते.....
2
देख खुशबू की लहर फिर,
गा रही कुछ गीत उत्तम।
फिर खुशी महकी उठे तब
इंद्र धनुषी रंग सप्तम।
ये हवा जो प्राण बसती,
कह रही चहुँ दिश विचरते...
3
गूंजते है झुनझुने से,
लावणी गाती दिशाएँ।
धूप मिलकर चाँदनी से,
दृश्य कुछ अच्छे बनाएँ।
नेत्र से जल धार बहती,
दृग पटल ये फिर निखरते....
संजय कौशिक ' विज्ञात'
ये हवा जो प्राण बसती,
ReplyDeleteकह रही चहुँ दिश विचरते...
वाह वाह बहुत खूब
सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteसुन्दर भाव बधाई
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