नवगीत
नेह हृदय कुछ बोल रहा था
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मापनी~~ 16/16
नेत्र प्रवाहित नदिया अविरल,
नेह हृदय कुछ बोल रहा था।
अन्तस् बैठी प्रेम ग्रन्थि को,
धीरे धीरे खोल रहा था।
1
प्राणप्रिया को ढूंढ व्यथित हिय,
खोज वनों में हार चुका था।
फैली जो शाखा कानन में,
सबको देख विचार चुका था।
हिरदे पीड़ा छिपती कैसे,
बिन आत्मा तन डोल रहा था।
नेत्र प्रवाहित नदिया अविरल,
नेह हृदय कुछ बोल रहा था।
2
कण्ठ फँसे थे कंटक लाखों,
रक्त बहा व्यवधान पड़ा था।
षड्यंत्र वहाँ खेला किसने,
पीर सहित आघात कड़ा था।
मौन प्रकृति भी क्रंदन करती,
अन्तः मन सब तोल रहा था।
नेत्र प्रवाहित नदिया अविरल,
नेह हृदय कुछ बोल रहा था।
3
लावा फटना शेष बचा था,
धधक रहा था अंतर्मन में।
धीर विलाप करे सागर सा,
रोता सा पर्वत उपवन में।
कितने झरने फूट रहे थे,
दिखता वो अनमोल रहा था।
नेत्र प्रवाहित नदिया अविरल,
नेह हृदय कुछ बोल रहा था।
4
पत्थर से नारी करदे जो,
हृदय अचल की देखी ज्वाला।
सहमे रोये मेघ वहाँ पर,
चतुर्मास तक सहके छाला।
रीत गया भर पीप गया कुछ,
हिय फोड़ा जब छोल रहा था।
नेत्र प्रवाहित नदिया अविरल,
नेह हृदय कुछ बोल रहा था।
5
विरह वेदना व्याकुल हिय की,
काल बली अजगर सब निगले।
राम भटकते फिरते वन में,
मार्ग रुद्ध थे सारे तिगले।
हार चुका मन ढूंढ ढूंढ कर,
स्वर्ण हिरण का झोल रहा था।
नेत्र प्रवाहित नदिया अविरल,
नेह हृदय कुछ बोल रहा था।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
बहुत ही सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण नवगीत। सीता हरण पश्चात श्रीरामचंद्र की मनोदशा को इतनी खूबसूरती से उकेरा की पूरा दृश्य जीवंत हो उठा। बिम्बों के माध्यम से अभिव्यक्ति रचना को और भी प्रभावी बना देती है। आपकी लेखन शैली बहुत ही आकर्षक और अनुकरणीय है। ऐसा लेखन कठिन है पर प्रयास अवश्य करेंगे 🙏🙏🙏
ReplyDeleteबहुत सुन्दर विरह गीत आदरणीय। प्रभु राम की मनोदशा का हृदयस्पर्शी वर्णन ,👏👏👏👌👌👌
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और भावप्रवण।
ReplyDeleteआदरणीय, बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण गीत
ReplyDeleteअद्भुत सृजन लेखनी को नमन
ReplyDeleteमार्मिक सृजन। शिल्प और कथ्य दोनों में लाजवाब नवगीत।
ReplyDeleteअनुपम गीत,, अहा क्या कहने।
ReplyDeleteश्री राम! के रामत्व से अहिल्या का उद्धार हुआ। फिर भी
ReplyDeleteभगवान श्री राम जी! के नर लीला में प्राण बल्लभी सीता के विरह में राम की मनोदशा का जीवंत चित्रण प्रसंशनीय है। सादर मंगलकामना।
भाव पूर्ण नवगीत सर जी बधाई हो 💐💐👌👌👌
ReplyDeleteउत्तम नवगीत सर जी बधाई हो
ReplyDeleteवाह । अदभुत
ReplyDeleteबेहतरीन नवगीत
ReplyDeleteआ.सर जी शुभकामनाएं 🙏🏻🙏🏻
बहुत खूब बहुत सुन्दर
ReplyDeleteअत्यंत सुन्दर सृजन
ReplyDeleteबहुत सुंदर चित्रण।इसे महाकाव्य का रूप दीजिए सर।
ReplyDeleteअत्यंत मनोहारी गीत
ReplyDeleteअद्भुत मनोहारी गीत
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteबेहतरीन कलाम
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteप्रभु श्री राम की विरह वेदना का आँखों का समक्ष पूरा दृश्य ही उभर गया।अद्भुत,अनुपम👌👌👌👌👏👏👏👏👏👏
ReplyDeleteवाह वाह वाह वाह बेहतरीन रचना बहुत सुंदर
ReplyDeleteबेहतरीन रचना वाहः वाहः वाहः वाहः वाहः
ReplyDeleteवाह.... वाह... अत्यन्त मधुर रचना
ReplyDeleteबेहद सुंदर कृति
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