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Monday, March 23, 2020

नवगीत : विश्वास टूटा : संजय कौशिक 'विज्ञात'




नवगीत 
विश्वास टूटा 
संजय कौशिक 'विज्ञात'

मापनी~~ 14/12 

अवरोध बन विश्वास टूटा, 
मन तड़पता रह गया।
फिर रोष से अन्तस् भरा तब, 
तन भड़कता रह गया।

1
प्रतिशोध को त्यागे हृदय क्यों,
आज यूँ उनके लिये।
अम्बर पटल से ताकता वो, 
प्रज्वलित लेकर दिये।
धरणी पुकारे नेत्र से फिर, 
छन अकड़ता रह गया।

2
नाविक किनारा छोड़ आया, 
जो भँवर फँसता चला।
षड्यंत्र ही कारण बना कुछ, 
छिद्र कश्ती का खला।
आज किस्सा याद है वो, 
कुण जकड़ता रह गया।

3
आदेश ऐसे मानता था, 
जब कही हर बात वो।
कहता अगर मैं रात को दिन, 
मानता था रात वो।
देखा उसी को आज मैंने, 
सुन कड़कता रह गया।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

7 comments:

  1. बहुत सुंदर मार्मिक नवगीत ...भावपूर्ण रचना जिसमें व्यंजना का प्रयोग ख़ूबसूरती से किया गया है। सादर नमन 🙏🙏🙏 बधाई 💐💐💐💐

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  2. बहुत सुंदर आदरणीय बहुत ही प्यारी

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  3. बहुत सुंदर आदरणीय!🌷🙏🌷

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  4. बेहतरीन सृजन आदरणीय सर
    सादर

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  5. बहुत बहुत सुन्दर नवगीत। छायावादी रचनाओं को याद दिलाती रचनाएं।नमन आपकी लेखनी को सर।

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  6. बेहतरीन सृजन आदरणीय 🙏🙏🙏

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