नवगीत
कोरोना का शृंगार
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मापनी~~14/14
देख रतनारे अधर ले,
कामुकी सी कामिनी वो।
भय अजब देती वहाँ पर,
जब निकट थी दामिनी वो॥
1
देख के शृंगार दर्शक,
आह कुछ पाषाण भरते।
फिर क्रिया जितने कलापें,
दृश्य मोहक लोग मरते।
कुछ भटकते ताकते से,
चाँदनी थी यामिनी वो।
2
तीव्र श्वासें थामते से,
हाथ हिय पे धर पुकारे।
मौन बोला फिर शहर ये,
कौन ये परियाँ उतारे।
मारने का यंत्र लेकर,
दौड़ती गज गामिनी वो।
3
देख कर सौंदर्य अद्भुत,
फेरते हैं लोग मुखड़े।
जो तड़पते खाँसते से,
हँस रहे हैं आज दुखड़े।
सोच कोरोना डरे हैं,
दिख रही है भामिनी वो।
4
बांध कर मुख आज चलती,
देख फूलन सी जवानी।
विष भरी बहती हवाएं,
लिख रही हैं नव कहानी।
शव कहे क्रंदन करो कुछ,
मौन पसरा धामिनी वो।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
बांध कर मुख आज चलती,
ReplyDeleteदेख फूलन सी जवानी।
विष भरी बहती हवाएं,
लिख रही हैं नव कहानी।
शव कहे क्रंदन करो कुछ,
मौन पसरा धामिनी वो।
वाह बहुत सुन्दर कोरोना का शृंगार नवगीत
सुवासिता जी हार्दिक आभार सुंदर, मनोहारी, प्रेरक शब्दों से भरी प्रेरणा दी है आपने
DeleteSarvshresta shrajan
ReplyDeleteमारने का यंत्र लेकर दौड़ती गज गामिनी.............।
ReplyDeleteबधाई हो।
प्रधान जी हार्दिक आभार सुंदर, मनोहारी, प्रेरक शब्दों से भरी प्रेरणा दी है आपने
Deleteसमसामयिक वाहः👌👌💐💐
ReplyDeleteहार्दिक आभार तेज सहाब
Deleteविष भरी बहती हवाएं,
ReplyDeleteलिख रही हैं नव कहानी।
बिल्कुल सही पंक्तियाँ...
क्या खूब श्रृंगार कर गया आपका गीत हत्यारी कोरोना का
लता सिन्हा ज्योतिर्मय
लता जी हार्दिक आभार सुंदर, मनोहारी, प्रेरक शब्दों से भरी प्रेरणा दी है आपने
Deleteदेख कर सौंदर्य अद्भुत,
ReplyDeleteफेरते हैं लोग मुखड़े।
जो तड़पते खाँसते से,
हँस रहे हैं आज दुखड़े।
सोच कोरोना डरे हैं,
दिख रही है भामिनी वो। वाह बेहतरीन रचना आदरणीय 👌
अनुराधा जी हार्दिक आभार सुंदर, मनोहारी, प्रेरक शब्दों से भरी प्रेरणा दी है आपने
Deleteवाह वाह, इस भयानक वातावरण में श्रृंगार रस को ढूंढना एक अद्भुत सृजन है। अभिनंदन सादर अभिनंदन।
ReplyDeleteविवेक कविश्वर जी हार्दिक आभार सुंदर, मनोहारी, प्रेरक शब्दों से भरी प्रेरणा दी है आपने
Deleteअदभुत
ReplyDeleteहार्दिक आभार अतिया जी
Deleteवाह!! लाजवाब
ReplyDeleteहार्दिक आभार अनन्त जी
Deleteक्या बात है!! सौंदर्य में भय और विद्रूपता को समा एक मक्खियों का छत्ता बना दिया जिसे आज के बाद लोग सोच समझ कर हाथ डालने की बात तो दूर देखेंगे भी सोच समझ कर । बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है ।बधाई
ReplyDeleteविद्योत्मा जी हार्दिक आभार सुंदर, मनोहारी, प्रेरक शब्दों से भरी प्रेरणा दी है आपने
Deleteअद्भुत रचना । नमन आपको।
ReplyDeleteस्निग्धा जी हार्दिक आभार
Deleteअद्वितीय नवगीत
ReplyDeleteआ.सर जी शुभकामनाएं 🙏
सविता जी आत्मीय आभार
Deleteवाह !बेहतरीन सृजन सर 👌
ReplyDeleteअनिता जी आत्मीय आभार
Deleteबहुत सुंदर बेहतरीन सृजन बधाई आपको
ReplyDeleteपूनम जी आत्मीय आभार
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteसंगीता जी आत्मिय आभार
Deleteआपकी अद्भुत कल्पना शक्ति को नमन 🙏🙏🙏 कोरोना जैसे भयानक रोग पर श्रृंगार रस में डूबा नवगीत बहुत ही सुंदर सृजन है ....खूबसूरत बिम्ब,कथन और संदेश 👌👌👌 ढेर सारी बधाई 💐💐💐💐
ReplyDeleteविदुषी जी हार्दिक आभार सुंदर, मनोहारी, प्रेरक शब्दों से भरी प्रेरणा दी है आपने
Deleteमारने का यंत्र लेकर दौड़ी वो गजगामिनी
ReplyDeleteगजब कल्पनाशक्ति
अनिता जी हार्दिक आभार सुंदर, मनोहारी, प्रेरक शब्दों से भरी प्रेरणा दी है आपने
Deleteबहुत सुंदर सृजन !अद्भुत!👌
ReplyDelete---अनीता सिंह "अनित्या"
अनित्या जी आत्मीय आभार
Deleteबहुत सुन्दर सर जी
ReplyDeleteबोधन सहाब आत्मीय आभार आपका
Deleteकुछ हटकर👌👌👌👌👌👌👌👌बेहतरन👏👏👏👏👏
ReplyDeleteअनुपमा जी आत्मीय आभार आपका
Deleteवाह अनमोल एक एक शब्द परिष्कृत
ReplyDeleteबहुत शानदार
ReplyDeleteबहुत शानदार
ReplyDeleteजी वैश्विक आपदा कोरोना पर शानदार सृजन
ReplyDeleteकमाल के कलमकार हैं आप।आपकी रचनाएँ अद्भुत होती ही हैंं।पर यह रचना उससे भी आगे की हैं।रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ बहुत बहुत बधाई💐💐
ReplyDeleteवाहगह् बहुत सुन्दर कोरोना गीत
ReplyDeleteवाह । बहुत बढ़िया । शानदार । हार्दिक बधाई।
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