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Saturday, July 30, 2022

नवगीत : खिल उठी रूखी कलाई : संजय कौशिक 'विज्ञात'


नवगीत 
खिल उठी रूखी कलाई 
संजय कौशिक 'विज्ञात' 

मापनी 14/14 

श्रावणी की दिव्यता ले
खिल उठी रूखी कलाई
यूँ बहन की साधना पर
हर्ष फिर बाँटे बधाई।।

इन क्षणों के राग अनुपम 
रागनी उनसे निराली
ताल थिरके मिल सुरों में
वाह लूटे ढेर ताली
नेह की किरणें चमकती
थालियों ने जब सजाई।।

सूत्र का विश्वास बढ़कर
छा गया अंतःकरण में
नेह बहनों का कवच ये
सौरमण्डल के चरण में
बन सुरक्षित बंध उत्तम 
नित महक मीठी जगाई।।

एक औषध है यही वो
कष्ट की घड़ियाँ मिटाती
पारलौकिक प्रेम बंधन 
जो हृदय से नित निभाती
राखियों का रंग चहके
पर्व की शुभता बताई।।

©संजय कौशिक 'विज्ञात'

Friday, July 29, 2022

तुकांत शब्द की परिभाषा, प्रकार एवं उदाहरण : संजय कौशिक 'विज्ञात'



तुकांत शब्द की परिभाषा, 
प्रकार एवं उदाहरण
संजय कौशिक 'विज्ञात' 

छंद अथवा कविता के अंत में समान वर्णों के या शब्दों के अंत पर उच्चारित होने वाले वर्णों या शब्दों की उपस्थिति को तुकांत कहा जाता है।
ये तुकांत मुख्यतया 3 प्रकार के होते हैं 
उत्तम तुकांत 
मध्यम तुकांत 
निम्न तुकांत 
सूचना :- परंतु आजकल एक और तुकांत देखा जाता है जो अन्य भाषाओं में लिखा जाता परंतु हिंदी व्याकरण के अनुसार यह स्वीकार्य नहीं है।
4 अति निम्न तुकांत

उत्तम तुकांत- अटकते, खटकते, चटकते, पटकते, गटकते, लटकते आदि कुछ और देखें जाइए, आइए, गाइए, खाइए, पाइए इत्यादि 
जिन तुकांत में समान मात्रा भार तथा उच्चारण में समान ध्वनि हो जो श्रोता वर्ग को अपने आकर्षण पाश में बांधकर मंत्र मुग्ध करते प्रतीत होते हैं। इनका मुख्य स्वरूप समता का स्वरूप पहचान में रखें। इस प्रकार के तुकांत सदैव उत्तम तुकांत कहे जाते हैं तथा हिन्दी व्याकरण के अनुसार ये तुकांत स्वीकृत हैं। 

मध्यम तुकांत- व्यथा, कथा, प्रथा, व्यवस्था आदि मध्यम प्रकार के तुकांत है इस प्रकार के तुकांत भी हिंदी व्याकरण की स्वीकृति नहीं है परंतु कुछ विशेष स्तर पा चुके साहित्यकारों ने इन्हें हिंदी भाषा में प्रयोग करने की स्वीकृति दी है। उसके पश्चात इस प्रकार के तुकांत देखने में आने लगे हैं आँगन, सावन, तड़पन, छनछन, अनबन इत्यादि मध्यम स्तर के तुकांत हैं।
 हार प्यार मध्यम हार व्यवहार निम्न हार सार उत्तम इस प्रकार से तुकांत के प्रयोग में सावधानी रखनी होगी । 
 
निम्न तुकांत - वियोग, सुयोग, आयोग, प्रयोग, उपयोग इत्यादि इस प्रकार के तुकांत में दो वर्ण समान चलते हैं परंतु तृतीय या चतुर्थ वर्ण के उच्चारण बिल्कुल पृथक हो जाते हैं कहीं इ स्वर है कहीं अ स्वर है कहीं उ स्वर है इस प्रकार के तुकांत हिंदी व्याकरण ने कभी स्वीकृत नहीं किए हैं। 

अति निम्न तुकांत- आज धार आप नाथ सास जाप पाप सांप चाल काट छांट 
इस प्रकार के तुकांत अतिनिम्न तुकांत कहे जाते हैं जो हिंदी व्याकरण के अनुसार अतुकांत ही होते हैं 

इन सबसे हट कर एक तुकांत और प्रचनलन में देखा गया है परंतु हिंदी भाषा ने उसे स्वीकार नहीं किया है अंतिम शब्द की कवि अपनी इच्छा से मात्रा घटाए या बढ़ाए 
जैसे 
आप पाप को चौपाई के अंत में आपा पापा करना या  दोहा सृजन के समय आये गाये को आय गाय करना 
इस प्रकार के तुकांत हिंदी व्याकरण द्वारा अस्वीकृत हैं। 


तुकांत के लाभ/हानि पर मंथन 
1 उत्तम तुकांत के प्रयोग से जहाँ रचनाकर की सतर्कता परिलक्षित होती है। वहीं मध्यम या निम्न स्तर के तुकांत प्रयोग से रचनाकर ढीला ढाला सा दिखता है 
2 पाठक या श्रोता को उत्तम तुकांत आकर्षित करते हैं वहीं मध्यम या निम्न तुकांत नीरस से प्रतीत होते हैं। 
3 कई बार अच्छा तुकांत ही पंक्ति का स्मरण करवा देता है वह कंठस्थ रह जाती है जबकि मध्यम या निम्न तुकांत से ऐसा कभी नहीं हो सकता। 
4 कई बार कविता जो छंदबद्ध नहीं है परंतु उत्तम तुकांत से युक्त है तो वह अपने आकर्षण पाश में श्रोता अथवा पाठक को बांधने में सफल सिद्ध होती है जबकि मध्यम तुकांत तथा निम्न तुकांत के साथ ऐसा होने की संभावना न के बराबर होती है। 
5 उत्तम तुकांत के चयन से विचार बंधे हुए तथा जमे हुए झलकते हैं वहीं मध्यम तुकांत में भावों के बिखराव की संभावना अधिक बलवती होती है। 
6 उत्तम तुकांत उत्तम रचना की और संकेत करता है तो मध्यम तुकांत और निम्न तुकांत अपने स्तर पर ले आएगा रचना को ऐसा कहें तो यह भी तर्क संगत ही होगा।

एक मंथन आपका ..... 
अच्छा पकवान दूध और चावल के मिश्रण से शुद्ध खीर बनती है चावल दाल और पानी के मिश्रण से खिचड़ी बनती है एक बात का और ध्यान रखिए खीर पकवान कहा जाता जबकि खिचड़ी रोगियों का भोज्य पदार्थ 
आप अपना स्तर तथा अपने सृजन का स्तर अपने विवेक से स्वयं निर्धारित करें। जिसे पढ़ रहे हैं उसके साथ ऐसा भी हो सकता है कि या तो वह स्वयं रोगी है या रोगियों के लिए खिचड़ी निर्मित कर रहा हो ..... 
ऐसे में आप को क्या करना चाहिए आप स्वयं विवेकशील प्राणी हैं मंथन करने में सक्षम भी हैं।

©संजय कौशिक 'विज्ञात'

Tuesday, July 26, 2022

गीतिका लिखना सरल है : संजय कौशिक 'विज्ञात'


गीतिका लिखना सरल है।
संजय कौशिक 'विज्ञात'

मापनी - 2122 2122 2122 212

गीतिका में छंद वार्णिक मापनी आधार हो।
शुद्ध सार्थक से कथन का भावमय आभार हो।।

कुछ अधूरा सा कथन कहना नहीं है पंक्ति में।
जब कथन हो स्पष्ट निखरे युग्म वो स्वीकार हो।।

दीर्घ लघु के वर्ण सारे रख चलो गिन गालगा।
शिल्प की ये ही कसौटी ध्यान ये हरबार हो।।

भाव यूँ ढलता दिखे आभूषणों की ज्यूँ ढलाई।
यूँ अलंकृत रस टपकता युग्म का शृंगार हो।

व्याकरण आदेश दे अनुपालना हो शिल्प की।
पंक्ति बस दो ही दिखें पर कुछ गहनमय सार हो।।

शीघ्रता की हड़बड़ी से नित खड़ी हों गड़बड़ी।
भाव मंथन के बिना कब कथ्य का परिहार हो।।

जानते पर कर रहे साधक मिलावट शब्द की।
शुद्ध भाषा से सदा साहित्य का उद्धार हो।

गीतिका लिखना सरल है और आकर्षक दिखे।
फिर जड़ाऊ युग्म खींचे मंच से उच्चार हो।।

दे चमक तुकांत उत्तम गीतिका विज्ञात की।
मोहिनी सी काव्य धारा मोड़ ले तैयार हो।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'