पञ्चचामर छंद
दहाड़ सिंह तुल्य
संजय कौशिक 'विज्ञात'
पञ्चचामर छंद वार्णिक छंद है, चार चरण के इस छंद में 8 लघु 8 गुरु क्रमानुसार (लघु गुरु) एक-एक करके कुल 16 वर्ण होते हैं कम से कम दो चरणों के युग्म में चरणान्त समनान्त रहेगा।
मात्रा भार- 1212121212121212
का अनुकरण करके सृजन किया जा सकता है, पुनः दोहराता हूँ कि इस छंद में मात्र वर्ण विन्यास (लघु गुरु) सावधानी पूर्वक रखना होगा क्योंकि यह वार्णिक छंद है।
जगण रगण जगण रगण जगण गुरु (1) गण विधान से इसे ऐसे समझा जाता है। शौर्य भाव भरी रचना के लिए कवि इस छंद का प्रयोग करते हैं । इस छंद में रावण द्वारा विरचित ताण्डव स्त्रोत बहुत प्रसिद्ध है देखिये:-
जटाटवीगलज्जल प्रवाहपावितस्थले।
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्॥
डमड्डमड्डमड्डमनिनादवड्डमर्वयं।
चकार चंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम॥
इसी शिल्प विधान का अनुकरण करती हुई एक रचना :-
पञ्चचामर छंद
दहाड़ सिंह तुल्य
संजय कौशिक 'विज्ञात'
दहाड़ सिंह तुल्य है तिरंग प्रेम आग है।
प्रसंग वीरता भरे कहे विशाल भाग है॥
अनंत काल देखता प्रभाव ज्ञान शून्य का।
समस्त भूमि को दिया विचार सत्य पुण्य का॥
अजेय शौर्य की कथा बखान वीरता भरी।
विराट देश शूर की परम्परा करे हरी॥
विराग राग देख के प्रभाव ज्ञान के सुनो।
बहाव रंग ढंग के समान भाव को चुनो॥
प्रबुद्ध शुद्ध बोल हैं प्रवाह टेक एक है।
हुतात्म वीर देश के कहें यहाँ हरेक है॥
हुतात्म= शहीद
कमान हाथ हिन्द की विशेष रूप नाम के।
पहाड़ रेत अम्बु में हितार्थ देश काम के॥
विराट युद्ध भेदते विशाल शत्रु खेलते।
सपूत देखलो यही प्रहार नित्य झेलते॥
समक्ष कौन है टिका महान शूरवीर ये।
जवान जोश से भरे समर्थ आज धीर ये॥
सुहाग, पुत्र रूप में कहीं पिता व भ्रात है।
जवान खण्ड खण्ड के धरा अखण्ड मात है॥
सपूत शीश रोपते निहारते पुकारते
स्वतंत्रता मिली हमें कठोर रूप धारते
विधान देख लो भले महान ये पुराण से।
सदैव कर्म-धर्म से पवित्र ये प्रमाण से॥
अनादि रोशनी करें वही प्रकाश व्याप्त है।
दिखा रहे सुपंथ जो विकास आज प्राप्त है॥
प्रतीक वीर विश्व में महान सत्य भारती।
उतारते सपूत हैं प्रभात-सांझ आरती॥
संजय कौशिक 'विज्ञात'
Great sir ji 🙏🙏
ReplyDeleteसच में सिंह दहाड़ तुल्य रचना👌👌👌👌👌👌
ReplyDeleteबहुत ही शानदार रचना
ReplyDeleteभारतीय सैनिकों के वीरता को दर्शाता हुआ जबरदस्त
वाह अद्भुत लेखन 👌 आपके खजाने से आज एक और बेहतरीन रचना पढ़ने मिली। बहुत सुंदर प्रस्तुति 👌👌
ReplyDeleteदुनिया भर में मिलते हे आशिक कई,
ReplyDeleteमगर वतन से खूबसूरत कोई सनम नहीं होता,
नोटों में भी लिपट कर, सोने में सिमटकर मरे हे कई,
मगर तिरंगे से खूबसूरत कोई कफ़न नहीं होता...
जय हिन्द
बहुत सुन्दर
गणतंत्र दिवस के अवसर पर वीर रस में डूबी यह शानदार रचना बहुत ही प्रेरणादायक और लाजवाब है।पञ्चचामर छंद के विषय में जानकारी भी सोने पर सुहागा है। आपकी लेखनी को नमन 🙏🙏🙏 गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 💐💐💐💐
ReplyDeleteवाह बहुत खूब
ReplyDeleteFantastic and heart touching!
ReplyDeleteNice ✌✌👌👌👌👌
ReplyDeleteRahul chhoker 👌👌bahut ache👌👌👌
ReplyDeleteGreatest of all time ��������
ReplyDeleteबहुत सुंदर आपका लेख
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस हार्दिक शुभकामनाएं आपको आदरणीय बहुत सुन्दर
अद्भुत ,नमन लेखनी को
ReplyDeleteआपकी कलम को नमन है आदरणीय
ReplyDeleteबहुत खूब
धरा
Deleteअद्भुत
ReplyDeleteधरा
बेहतरीन रचना आ.सर जी बधाई व शुभकामनाएं 🙏
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस के अवसर पर शोर्य और ओज से भरी अनुपम रचना बहुत ही प्रेरणादायक और गेय है।पञ्चचामर छंद के विषय में जानकारी बहुत उपयोगी।
ReplyDeleteबहुत बहुत सुंदर।
बहुत सुन्दर व प्रेरक रचना!
ReplyDeleteअत्यंत सुंदर रचना
ReplyDeleteअति उत्तम शौर्य भाव से परिपूर्ण पञ्चचामर छंद।
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