लावणी छंद
◆प्रतिबिम्ब◆
●संजय कौशिक 'विज्ञात'●
लावणी छंद एक सम मात्रिक छंद है। इस छंद में भी कुकुभ और ताटंक छंद की तरह 30 मात्राएं होती हैं। 16,14 पर यति के साथ कुल चार चरण होते हैं । और क्रमागत दो-दो चरण तुकांत समतुकांत रहते हैं। इसके चरणान्त में वर्णिक मात्रा भार का कोई विशेष सुझाव नहीं है।बस अंत गाल नहीं हो सकता है। रचना के अनेक बन्ध के अंत में 1 गुरु 2 लघु 2 गुरु आ सकते हैं यही लावणी है
30 मात्रा ,16,14 पर यति,अंत वाचिक {गा} द्वारा करें
चौपाई (16 मात्रा)+ 14 मात्रा
आइये देखते हैं लावणी की एक रचना .....
लावणी छंद (आधारित गीत)
शिल्प विधान
16,14 पर यति
दो-दो पंक्ति समतुकांत
अंत में गुरु लघु अनिवार्यता मुक्त
बिम्ब पुत्र प्रतिबिम्ब पौत्र हैं, जहाँ बुढापा रीत गया।
उत्तम और श्रेष्ठ था बचपन, अपना था जो बीत गया॥
खो-खो कँचें रस्सी कूदो, और पुराना खेल गया।
गिल्ली डंडा, चोर सिपाही, गिट्टे का वो मेल गया।
तेल कहाँ वो सरसों में अब, रहटों का संगीत गया।
उत्तम और श्रेष्ठ था बचपन, अपना था जो बीत गया॥
नीचे घर ऊंची मर्यादा, गाँव गाँव में मिलती थी।
सिर पे पल्लू हया आँख में, सुंदरता तब खिलती थी।
देख आधुनिक चलन काल के, मन क्यों हो भयभीत गया।
उत्तम और श्रेष्ठ था बचपन, अपना था जो बीत गया॥
बागों के वो ताज़ा फल जो, चोरी चुपके खाते थे।
माली लिये शिकायत घर तक, पीछे-पीछे आते थे।
झूल झूलते थे सावन में, आधा रह वो गीत गया।
उत्तम और श्रेष्ठ था बचपन, अपना था जो बीत गया॥
केवल कागे स्वर आलापें, कोयल का स्वर भूल गए।
मित्र निभाते जहाँ मित्रता, अब तो वो घर भूल गए॥
धरा धारती हरित वसन जब, सरसों बूटी चीत गया।
उत्तम और श्रेष्ठ था बचपन, अपना था जो बीत गया॥
संजय कौशिक 'विज्ञात'
बहुत सुंदर विज्ञात जी ...👌👌
ReplyDeleteबचपन तो गया पर बचपना नही जाना चाहिए
आत्मीय आभार राजकुमार मसखरे जी
Deleteबहुत सुंदर छंद सृजन आदरणीय 👌
Deleteबागों के वो ताज़ा फल जो, चोरी चुपके खाते थे।
ReplyDeleteमाली लिये शिकायत घर तक, पीछे पीछे आते थे।
झूल झूलते थे सावन में, आधा रह वो गीत गया।
उत्तम और श्रेष्ठ था बचपन, अपना था जो बीत गया वाह!! बेहतरीन प्रस्तुति आदरणीय 👌👌
आत्मीय आभार अनुराधा जी
Deleteक्या बात
ReplyDeleteउत्कृष्ट बचपन की यादें
आत्मीय आभार अनिता जी
Deleteअद्भुत आद. । सच में लगता है सब गया।
ReplyDeleteआत्मीय आभार शर्मा जी
Deleteबहुत ही सुन्दर बचपन कंचे खिलौने रहट करता कुछ नहीं पिरोया आपने लावणी छंद में हमभी उस जमाने में पहुंच गए जो वो सब कुछ बित गया..... बहुत खूब
ReplyDeleteआत्मीय आभार पूनम जी
DeleteBahut khub
ReplyDeleteआत्मीय आभार
Delete
ReplyDeleteखो-खो कँचें रस्सी कूदो, और पुराना खेल गया।
गिल्ली डंडा, चोर सिपाही, गिट्टे का वो मेल गया।
वाह वाह बहुत खूब बेहतरीन सृजन बचपन की यादें ताजा हो गय
आत्मीय आभार चमेली जी
Deleteबहुत सुंदर छंदबद्ध गीत
ReplyDeleteआत्मीय आभार रजनी जी
Deleteवाह बचपन लौट आया ।
ReplyDeleteआत्मीय आभार अनिता जी
Deleteबचपन याद आ गया वाहः
ReplyDeleteआत्मीय आभार नायक जी
Deleteबचपन याद आ गया वाहः
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर मार्मिक रचना।
ReplyDeleteआत्मीय आभार सिद्धि जी
Deleteपुत्र बिम्ब प्रतिबिंब पौत्र
ReplyDeleteकितना प्यारा वर्णन 👌👌
आत्मीय आभार मोहन्ता जी
Deleteसच में!क्या ऐसा भी प्रतिबिंब होता है???न जाने कितनी ही बचपन की यादें ताज़ा हो गयीं आपकी इस रचना को पढ़कर।हृदय को छूती पंक्तियाँ 👌👌👌👌👌👌👌👌
ReplyDeleteआत्मीय आभार अनुपमा जी
Deleteचरणान्त खाते थे...आते थे वाली पँक्तियाँ देख लें।बाकी बहुत खूबसूरत।👌
ReplyDelete👌 सुंदर समीक्षा ममता जी
Deleteछंद के बारे में विस्तृत जानकारी उपयोगी , बहुत सुंदर सृजन बचपन के दिनों की मधु स्मृति।
ReplyDeleteअभिनव ।
वाह वाह वाह जी बचपन के पल याद आ गए 👌👌👌👌☺️
ReplyDeleteवाह बहुत तरीके से गीत छंदों की विधा को प्रेषित करती आपकी रचना बेहद खुबसूरत है,
ReplyDeleteबचपन ऩ रीते हर दुख बीते,अधरों पे सिसकता गीत गया
जीवन के कोलाहल में न जाने क्यों स्वर से संगीत गया..!
लता सिन्हा ज्योतिर्मय
बहुत सुंदर आदरणीय बहुत सुंदर
ReplyDeleteअनुपम, बेहतरीन सृजन
ReplyDeleteआ.सर जी शुभकामनाएं 🙏
अपना बचपन बीत गया सही में
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteलावणी छंद आधारित गीत पढ़ कर मन आनंदित हुआ
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