कलाधर छंद / कालधर घनाक्षरी संजय कौशिक 'विज्ञात'
विधान: आज वार्णिक दण्डक छंद घनाक्षरी में विशुद्ध घनाक्षरी देखते हैं। गुरु लघु की पंद्रह आवृति और अंत में एक गुरु।अर्थात 2 1×15 तत्पश्चात एक गुरु।इस प्रकार 31 वर्ण प्रति चरण। उम्मीद है यह साधारण शिल्प समझ में आगया होगा। मापनी और गण व्यवस्था से भी पुनः समझते हैं ....
मापनी
21212121, 21212121, 21212121, 2121212
गण :
रगण जगण रगण जगण रगण जगण रगण जगण रगण जगण+गुरु वर्ण
उदाहरण :
हिन्द देश है महान, विश्व में बड़ा प्रचार,
योग, वेद, सांख्य, ज्ञान, ध्यान आन जान लो।
मंत्र- तंत्र के प्रभाव, यंत्र के बहाव देख,
घूमता दिमाग देख, वेग जोर मान लो॥
पंच तत्त्व के विवेक, चीर फाड़ काट नित्य
बूटियाँ कमाल दूध, नीर आज छान लो।
हस्त-रेख, सूर्य-केतु, मेष-मीन, भूमि चाल,
शून्य खोज से असंख्य, ढूँढते विधान लो॥
संजय कौशिक 'विज्ञात'
बहुत सुंदर लिखा है और सरल शब्दों में सीखा भी दिया आभार आपका 🙏
ReplyDeleteवाह!! वाह!! जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है
ReplyDeleteशब्द सम्पदा से संपन्न सुंदर वेर्णिक छन्द
ReplyDeleteसुंदर छंद की सुंदर जानकारी 👌👌👌 रचना लाजवाब है...गागर में सागर जैसी रचना। देश की उपलब्धियों का सटीक चित्रण 👏👏👏 बहुत बहुत बधाई आदरणीय शानदार सृजन की ...सादर नमन 🙏🙏🙏
ReplyDeleteवाहः वाहः वाहः वाहः वाहः वाहः
ReplyDeleteआपके सानिध्य में बहुत कुछ सीखने को मिलता है।धन्यवाद
ReplyDeleteवर्णिक छंद और साथ ही साथ मापनी को भी साधते हुये लिखना सहज नहीं है किंतु आपकी लेखनी ने इसको भी बहुत ही सहजता के साथ लिख दिया।बहुत ही सुन्दर छंद👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌
ReplyDeleteसुंदर
ReplyDeleteवाहहहह अद्भुत लेखन,हर विधा को आपकी लेखनी और भी शानदार बना रही है। वाह बेहतरीन छंद 👌👌
ReplyDeleteवाह बहुत सुंदर।
ReplyDeleteहम किनारे पर बैठे लहरें गिनते हैं, तबतक आप डुबकी लगा कर नायाब मोती लेकर जाते हो।
बहुत शानदार सृजन और छंद के बारे में गहन जानकारी सरल शब्दों में ।
कृति बहुत अच्छी बन पड़ी है ।
बधाई और शुभकामनाएं।
लेकर आ जाते हो पढ़ें कृपया।
ReplyDeleteरचना में आध्यात्म गुरु इस महान देश की सभी उपलब्धियों को थोड़े में बहुत सुंदर से सहेजा है प्रशंसनीय।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर बेहतरीन प्रवाह
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteवाह वाह बेहतरीन और लाजवाब सृजन गुरु देव
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा प्रस्तुति दी है आपने
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत सुंदर आपकी यह रचना छंद में एक से बढ़कर एक
ReplyDeleteअति सुन्दर सर जी बधाई हो
ReplyDeleteबेहतरीन सृजन आ.सर जी शुभकामनाएं 🙏🏻🙏🏻
ReplyDeleteबेहतरीन सृजन आ.सर जी शुभकामनाएं 🙏🏻🙏🏻
ReplyDeleteसंपूर्ण कला से परिपूर्ण अद्भुत कला धर छंद
ReplyDeleteबधाई 💐💐
धनेश्वरी धरा
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteसुशीला जोशी , मुजफ्फरनगर
ReplyDeleteसुंदर कलाधर छंद ।गुरु लघु गुरु लघु के चार चरण और अंत मे गुरु । बहुत मनोहारी चाल का छंद । विज्ञात जी एक कुशल छन्दाचार्य । छंद साधने में सदैव प्रयास रत ।बधाई ।नमन ।
सुशीला जोशी
मुजफ्फरनगर
वाह 👌👌 बहुत ही सुन्दर कलाधर छंद।हिंद देश की समस्त विशेषताओं को चित्रण करता हुआ।गागर में सागर जैसा,शब्द-शब्द बोलता हुआ।
ReplyDeleteएक से बढ़कर एक छंदों की छटा बिखेरते हैं आप।हिन्द देश का गुणगान करती बेहतरीन रचना।
ReplyDeleteबहुत खूब आद., कठिन छंद में सुन्दर वर्णन।
ReplyDeleteबहुत खूब *
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना सर।
ReplyDeleteअत्यंत प्रभावशाली रचना सर।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteलाजबाब कलाधर छंद।बधाई हो !👌💐
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना है सर
ReplyDeleteचंद शब्दों में इतने विशाल विषय को प्रस्तुत करना प्रशंसनीय है ।
ReplyDeleteशब्द चित्र के साथ साथ सार्थक चित्रों को समाहित करना आपके प्रस्तुतिकरण को बहुत आकर्षक बना देता है ।
बहुत बहुत बधाई व शुभकामनाएं ।
बेहद शानदार। आप सब के प्रयास ही तो है वरना अगली पीढ़ी तक तो यह सब ख़त्म हो जाता बहुत बहुत बधाई सादर
ReplyDelete