नवगीत
चाँद के पार
संजय कौशिक 'विज्ञात'
*****
मापनी- 14/10
मुखड़ा ..…..
क्या चलोगे साथ मेरे,
चाँद के उस पार।
प्रश्न इकतारा करे ये
कर मधुर झंकार॥
1
अंतरा ......
आज सहसा बोलता है,
सरगमी आलाप।
मौन धारे ऋषि खड़ा है,
कर रहा वो जाप।
पूरक पंक्ति ......
चाँद-सूरज सम अडिग ये,
नाद है ओंकार।
क्या चलोगे साथ मेरे,
चाँद के उस पार।
2
कर रहे गुंजार भौंरे,
बन रहे स्वर राग।
रागिनी शृंगार प्रेमिल,
है मधुर अनुराग।
उड़ रहीं मधुमक्खियाँ,
लेकर शहद का भार।
क्या चलोगे साथ मेरे,
चाँद के उस पार।
3
चारु अंतरिक्ष किन्तु,
तेज हिय की आस।
देखता विचलित खड़ा है,
बन रहा विश्वास।
अर्द्ध रात्री में हुई है,
उल्लुओं की हार।
क्या चलोगे साथ मेरे,
चाँद के उस पार।
4
प्रेम की अनुरक्ति करती,
लक्ष्य का संधान।
हंस बैठे हैं ठिकाने,
मिट गए व्यवधान।
विजय श्री पद चूमती है,
जीतते संसार।
क्या चलोगे साथ मेरे,
चाँद के उस पार।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
@vigyatkikalam
👌👌👌
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई आपको इतना सुन्दर नवगीत बहुत बढ़िया
ReplyDeleteसुन्दर कल्पना,सुन्दर शब्द संयोजन
ReplyDeleteबहुत खूब अति सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुंदर नवगीत आदरणीय
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर नवगीत आदरणीय,
ReplyDeleteचारु अंतरिक्ष किन्तु,
तेज हिय की आस।
देखता विचलित खड़ा है,
बन रहा विश्वास।
बहुत ही सुन्दर लगा मुझे यह अंतरा जो हृदय में जिज्ञासा जाग्रत कर रहा है।यह संपूर्ण नवगीत का
सबसे सशक्त और सार्थक अंतरा है। भावनाओं की
अभिव्यक्ति 👌👌 नमन आपकी लेखनी को👌👌🙏🌹
अनुरोध शैली की बेहतरीन कृति ..
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteउत्तम सृजन
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति और कल्पना शीलता उत्कृष्ट।बेहतरीन गीत,शब्द संयोजन गजब का ।मुझे आपका ये नवगीत बहुत भाया आदरणीय।
ReplyDeleteसुशीला जोशी ,मुजफ्फरनगर ।।
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत गीत । मनलचाई गति और लय ।सुंदर शब्दावली । सुगठित कलेवर । उतने ही सुंदर भाव ।
कोटि कोटि बधाई ।
सुशीला जोशी
मुजफ्फरनगर
नाद है ओंकार ,ब्रह्मांड को प्रतिबिंबित करता हुआ ,और ध्यान की अवस्था में यही ओंकार अंदर गूंजता ,
ReplyDeleteबिम्ब प्रतिबिम्ब से सजी रचना ,
शहद का भार ,शायद आपने इच्छाओं के लिए लिखा है
नमन
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति नवगीत के रूप में।
ReplyDeleteदमक रहे पलाश ज्यों शरद ऋतु की धूप में।
नवगीत क्या,,,एक सुखद अनुभूति है,,,,खुशबू के ताजे झोंके की तरह 🌺🌺🌺👌👌👌👌👍👍👍लाजवाब सृजन🌺🌺🙏🏻🙏🏻🌺🌺
बहुत ही शानदार बहुत ही उम्दा कविता है दिल को छू गई बहुत ही उत्कृष्ट
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरती के साथ आपने अपनी भावनाओं को शब्दों में पिरोया है इस नवगीत में।सुन्दर भावनात्मक सृजन 👌👌👌👌👌👌👌
ReplyDeleteवाह वाह, बहुत खूब आद.
ReplyDeleteसुंदर सृजन आदरणीय..
ReplyDeleteउत्कृष्ट सृजन... बधाई
ReplyDeleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteलाजवाब प्रस्तुति
ReplyDelete.मनोरम एवं सरस नवगीत *
ReplyDeleteअद्भुत वाहः
ReplyDeleteछायावादी रचनाओं के टक्कर की रचना। नमन आपकी लेखनी को।
ReplyDeleteशानदार अभिव्यक्ति, शानदार रचना 👌👌
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन।
ReplyDeleteवाह बहुत सुंदर नव गीत गेय सुमधुर।
ReplyDeleteबहुत सुंदर उपमाएं ,ऋषि मौन और एकतारा ओंकार नाद कर रहा है ,एक का काम दूसरा वो भी सरगम लय में ।
हंस का ठिकाने बैठना आसा का सुंदर सौपान ।
बहुत सुंदर छाया वादी सृजन प्रकृति और उसके सजीव घटकों का स्वभाव अनुरूप सुंदर चित्रण।
उल्लू बेचारे जब सबसे ताकतवर होते हैं उसी समय में हारे, शायद अतंरिक्ष का अनुपम उजला सौंदर्य ही उन्हें पर भ्रमित कर गया।
अभिनव, अभिराम।
अति उत्तम नव गीत आपको हृदय से बधाई,,,,,,👌👌👌👌🌺🌺🌺👏👏👏
ReplyDeleteबहुत सुंदर नवगीत, बेहतरीन अभिव्यक्ति 👌👌
ReplyDeleteप्रकृति के उपमानों को बखूबी प्रयोग किया है ।अद्भुत भाव संयोजन ।नमन है आपके सृजन को 💐🙏
ReplyDeleteप्रकृति के उपमानों को बखूबी प्रयोग किया है ।अद्भुत भाव संयोजन ।नमन है आपके सृजन को 💐🙏
ReplyDeleteनैसर्गिक उपमाओं का सङ्गोपांग चित्रण। जीवन में विश्वास की डोरी मजबूत होती है। दिव्य भाव ,श्लाघनीय रचना। विज्ञात जी! भूरी- भूरी प्रशंसा के पात्र हैं।
ReplyDeleteबहुत सुंदर गीत
ReplyDeleteस्वर्णीम रचना 😊😊
ReplyDeleteबहुत ही भावप्रवण व सुंदर नवगीत। बहुत बधाई हो कौशिक जी।👌💐
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर गीत के माध्यम से सन्देश
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कृति
ReplyDeleteउपमाओं में नए और लुभावने प्रयोग
मोहक शब्द रचना
काव्यमयता उत्तम