2
मत्तगयन्द सवैया
विधान
मत्तगयन्द सवैया 23 वर्णों का छन्द है, जिसमें सात भगण (ऽ।।) और दो गुरुओं का योग होता है। नरोत्तमदास, तुलसी, केशव, भूषण, मतिराम, घनानन्द, भारतेन्दु, हितैषी, सनेही, अनूप आदि ने इसका प्रयोग किया है।
विधान- *मत्तगयंद सवैया*
भगण ×7+2गुरु, 12-11 वर्ण पर यति चार चरण समतुकान्त।
उदाहरण-
कंकर-कंकर को कहते सब, शंकर देव समान हमारे।
नर्मद से निकले जितने जब, पूजन के अधिकार विचारे॥
भाव बिना भगवान कहाँ यह, सत्य कहूँ सब तथ्य पुकारे।
साफ रखो हिय प्रेम दिखे फिर, ये सुख सागर नाथ सहारे॥
संजय कौशिक "विज्ञात"
3
दुर्मिल सवैया
विधान
दुर्मिल सवैया छंद 24 वर्णों में आठ सगणों (।।ऽ) से सुसज्जित होता है। जिसमें 12, 12 वर्णों पर यति का प्रयोग किया जाता है। अन्त सम तुकान्त ललितान्त्यानुप्रास कहा जाता है। इस छन्द को तोटक वृत्त का दुगुना कहा जाता है। प्रायः इस छंद का लेखन केशव, तुलसी से लेकर रीतिकाल तथा आधुनिक कवियों द्वारा बहुत ही सुंदरता से किया जाता है ।
उदाहरण-
प्रतिबिम्ब खड़ा दिखता मुखड़ा, सरदार पुरातन आन खड़ा।
यह सम्मुख मानव नेक दिखा, नव देश सशक्त विशेष घड़ा॥
अनुशासन और प्रशासन का, अनुपालक एक विधान कड़ा।
यह भारत रत्न प्रमाणिक है, तब भारत ने निज भाल जड़ा॥
संजय कौशिक 'विज्ञात'
4
किरीट सवैया
विधान
किरीट सवैया नामक छंद आठ भगणों से बनता है। तुलसी, केशव, देव और दास ने इस छन्द का प्रयोग किया है। इसमें 12, 12 वर्णों पर यती होती है।
उदाहरण-
जीवन कोजल धार कहें सब, काम करो कुछ तो मन भावन।
देख अपुष्पक पादप ये अब, जो ठहरे कह हो वह पावन॥
सीख मिले कुछ उत्तम ही जब, और निरंतर हो बस सावन।
आज बना चल चित्र मनोहर, लोग कहें बस देख सुहावन॥
संजय कौशिक 'विज्ञात'
5
गंगोदक सवैया
विधान
गंगोदक सवैया को लक्षी सवैया भी कहा जाता है। गंगोदक या लक्षी सवैया आठ रगणों से छन्द बनता है। केशव, दास, द्विजदत्त द्विजेन्द्र ने इसका प्रयोग किया है। दास ने इसका नाम 'लक्षी' दिया है, 'केशव' ने 'मत्तमातंगलीलाकर'।
उदाहरण-
देखके वो भिखारी खड़ा आज है, और वो पात्र भिक्षा न ही खोलता।
आज निश्चेष्ट देखा उसे द्वार पे, जो मरा सा पड़ा है न ही डोलता।
आँख आँसू भरी देह घावों लिये, कृष्ण का नाम बोले लगे तोलता।
द्वारिका धीश है मित्र मेरा कहे, नाम पूछा सुदामा यही बोलता।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
6
मुक्तहरा सवैया
विधान
मुक्तहरा सवैया में 8 जगण होते हैं। मत्तगयन्द आदि - अन्त में एक-एक लघुवर्ण जोड़ने से यह छन्द बनता है; 11, 13 वर्णों पर यती होती है। देव, दास तथा सत्यनारायण ने इसका प्रयोग किया है।
उदाहरण-
कहाँ मकरंद बता मधु है, भँवरा यह पूछ रहा सब आज।
कली सुन शोर तभी खिलती, सब देख रहा यह सभ्य समाज।
पधार रहे अब कौन यहाँ, बगिया महके किसके कह काज।
तभी कवि देख कहे कविता, उमड़े बन प्रेम कली रस राज॥
संजय कौशिक 'विज्ञात'
7
वाम सवैया
विधान
वाम सवैया के मंजरी, माधवी या मकरन्द अन्य नाम हैं। यह 24 वर्णों का छन्द है, जो सात जगणों और एक यगण के योग से बनता है। मत्तगयन्द के आदि में लघु वर्ण जोड़ने से यह छन्द बन जाता है। केशव और दारा ने इसका प्रयोग किया है। केशव ने मकरन्द, देव ने माधवी, दास ने मंजरी और भानु ने वाम नाम दिया है।
उदाहरण-
प्रसंग विधान अनेक प्रकार, प्रचारित ये सरकार करे है।
विशाल समाज सुधार सुमार्ग, प्रसारित ये हर बार करे है॥
उमंग तरंग तिरंग प्रमाण, प्रभासित नित्य पुकार करे है।
सुशासित राज प्रशासित कार्य, प्रधान सदा उपकार करे है॥
संजय कौशिक 'विज्ञात'
8
अरसात सवैया
विधान
अरसात सवैया 24 वर्णों का छन्द 7 भगणों और रगण के योग से बनता है। देव और दास ने इस छन्द का प्रयोग किया है।
उदाहरण-
कावड़ लेकर शंकर की जय, आज कतार दिखें चहुँ ओर है।
ये करते बम जै बम गाकर, और उमा जय आत्म विभोर है॥
मस्त रहें सब भाव बनाकर, वृद्ध विशेष प्रभाव किशोर है।
बालक कावड़ ले महिला सब, भावन चातक भक्त चकोर है॥
संजय कौशिक 'विज्ञात'
9
सुंदरी सवैया
विधान
सुन्दरी सवैया छन्द 25 वर्णों का है। इसमें आठ सगणों और गुरु का योग होता है। इसका दूसरा नाम माधवी है। केशव ने इसे 'सुन्दरी' और दास ने 'माधवी' नाम दिया है। केशव[1], तुलसी [2], अनूप[3], दिनकर[4] ने इस छन्द का प्रयोग किया है।
उदाहरण-
स्वर का तुझको जब ज्ञान नहीं, फिर व्यर्थ कहाँ मुख खोल रहा तू।
यह गायन दुर्लभ है सुनले, श्रम के बिन क्यों अब बोल रहा तू।
पहले करले कुछ कर्म जरा, बिन कर्म कहाँ सब तोल रहा तू।
स्वर कोयल बाग सुने सब ही, रस काग कहाँ यह घोल रहा तू।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
10
अरविन्द सवैया
विधान
अरविन्द सवैया आठ सगण और लघु के योग से छन्द बनता है। 12, 13 वर्णों पर यति होती है और चारों चरणों में ललितान्त्यानुप्रास होता है।
उदाहरण-
भँवरा फिर पाटल से पलटा, करती तितली कुछ सोच विचार
भर पेट चला मकरंद कहाँ, वह टोक रही तब बोल पुकार
बदले कितने कह आज तुम्ही, यह शोभित लोक कहाँ व्यवहार
कुछ बात करो अपनी कहके, सुन मैं कह दूँ हिय चाह अपार
संजय कौशिक 'विज्ञात'
11
मानिनी सवैया
विधान
मानिनी सवैया 23 वर्णों का छन्द है। 7 जगणों और लघु गुरु के योग से यह छन्द बनता है। वाम सवैया का अन्तिम वर्ण न्यून करने से या दुर्मिल का प्रथम लघु वर्ण न्यून करने से यह छन्द बनता है। तुलसी और दास ने इसका प्रयोग किया है।
उदाहरण-
दहाड़ रहे बढ़ते फिर से, यह सैनिक सिंह समान सभी।
पड़े जब कानन गर्जन तो, फिर राह मिले उस काल तभी॥
प्रसिद्ध रहे बल शौर्य जहाँ, सदियों पहले सुन बात कभी।
पुरातन वो दिखता बढ़ता, वह शौर्य यहाँ हर हाल अभी॥
संजय कौशिक 'विज्ञात'
12
महाभुजंगप्रयात सवैया
विधान
महाभुजंगप्रयात सवैया 24 वर्णों का छन्द कहा जाता है, यह छंद आठ यगणों (122) के द्वारा लिखा जाता है। इसे भुजंगप्रयात छंद का दुगुना छन्द कहा जाता है तभी इसका नाम महाभुजंगप्रयात छंद पड़ा है। इस छंद में 12, 12 वर्णों पर यति रखी जाती है।
उदाहरण-
जहाँ आज दीवार देखी घरों में, मुझे लाज आई व आँखें झुकी हैं।
वहाँ शेष आशा निराशा दिखी है, नहीं खास बातें सभी जा चुकी हैं॥
जवानी करे जुल्म ऐसे यहाँ पे, बुढापा रहा देख सांसें रुकी हैं।
मरे मौत सौ सौ मरे भी नहीं हैं, बताएं सभी दोष ये कामुकी हैं॥
संजय कौशिक 'विज्ञात'
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*सुखी सवैया*
सुखी सवैया नवीन सवैया 8 सगण+लघु लघु से बनता है; 11, 14 वर्णों पर यति होती है। सुखी सवैया 8स+2ल के लिखने से यह छन्द बनता है।
उदाहरण-
अपमान करें कुछ लोग जहाँ, तब देख विकार विचार किया कर।
चुप क्यों रहना हर बार वहाँ, फिर उत्तर भी सब आप दिया कर॥
जब आहत वे करते तुमको, उनसे बदला हर एक लिया कर।
फिर त्याग सदा मन से उनको, मनभावन जीवन शेष जिया कर॥
संजय कौशिक 'विज्ञात'